सोमवार, 28 जुलाई 2008

आज का अखबार पढ़ा क्या ?

और लोगों की तरह मैं भी रोज अखबार पड़ता हूँ ठीक उसी तरह से जैसे खाना खता हूँ पानी पिता हूँ काम नहीं करता फ़िर भी तन्खवाह लेता हूँ
अख़बारों में कुछ खास नहीं होता क्यों होवे वास्तव में अख़बारों की कोई गलती नहीं है , गलती गैरों की है जो गैर बन कर हमारे और आपके बीच में बन कर वारदात कर रहा है \ जो हमारे विश्वासों को रोज कुचल रहा है येही वो सकश है जो अविश्वास पैदा कर रहा है दरअसल जो जमीं पर घट रहा है वोही तो अख़बारों में छप रहा है घटना घट रही है वारदात हो रही हैं अख़बार वाला इन्तेजार कर रहा है जो हो रहा है हो जाने दो
आज जो विसंगतियां हैं वोही तो ख़बर है कल का सड़कछाप आज सत्ताधारी है गदाधारी है कल वाला आज को धकेल कर कल सत्ता पर काबिज हो जाएगा फिर कोई तीसरा आएगा जो इन दोनों को पडल की रह दिखायेगा चौथा गणित लगा रहा है देर तो होगी पर अंधेर नहीं होगी आज हेलिकोप्टर वाला कल कहाँ लैंड कर जाएगा या क्रश करेगा पता नहीं येही तो रोजाना का हाल है यही अख़बारों की खबरें
स्थाई ख़बरों के स्तम्भ में खबरें अस्थाई होती हैं ,स्तम्भ स्थाई चलता वोही है जो चलनें लायक नहीं है\ जो चलनें लायक थे वो हार कर बैठ गए एक बार बात गए तो कोई उठाने वाला नहीं मिलता किंतु जो एक बार चल पड़े वोह तो चलही रहा है इस रफ्तार से की कहाँ जा कर रूकेगा पता नहीं
तीसरे पन्नें की खबरे लोकतंत्र की तजा तस्वीरें कत्ल डकैती ,पकड़ फिरौती
हड़ताल प्रदर्शन ,मानस प्रवचन धोखाधडी अपहरण , भगवती जागरण अनाचार व्यभिचार सामहिक बलात्कार
पाँच बच्चों की माँ , आठ बच्चों के बाप के साथ भागी आतंग्वाद की कठोर सब्दों में निंदा, कायरता पूर्ण कारवाही
क्यों आप से प्रसंशा पाने के लिए वे ये सब ये करतें है क्या जो निंदा से वे सर्मिन्दा होने लगेगें
सल्फास खा कर प्रेमी युगल मरें , दहेज़ हत्या के आरोपी सास ससुर गिरफ्तार , ट्रक और स्कूटर भिडे लुटेरे फरार
आदि आदि
एक और ख़बर जो मुझे पसंद है वोह है आतंकवाद को देख कर सहर में रेड एलर्ट जारी एक कुत्ते को लेकर पुलिस का बंदक्या सूंघता है ( पता नहीं) लेकिन ये रेड एलर्ट कब ग्रीन सिग्नल हो जाता है पता नहीं चलता है
घाटना हो जाने पर पुलिस वाले अपनें ही घर के कुछ लोगों की तस्वीर का स्केच फ़ौरन जारं करतें है तथा तलाश और सुराग की खबरें रोज जरी होने लगती हैं फ़िर खामोश हो जाती है इस तरह की तमाम बातें जिसे पढ़ना या न पढ़ना एक ही बात है
फ़िर आता है बाजार भावः चांदी लुढ़की सोना उचला गुड गिरा में काजू और बादाम में नरमी नमक तेज
सेंसेक्स में उछाल सेक्स में गिरावट अमुक बैंक को तिमाही में ४२० करोड़ का सुद्ध लाभ निवेसकों कों ghabdanein की जरूरत नहीं ,वित्त मंत्री
विज्ञापनों की दुनिया ही वो पन्ना है जो घटिया होते हुए भी सभी अख़बारों के पापी पेट का भरण पोषण करता है
विज्ञापन भी कैसे कैसे ,नौकरिया ही नौकरिया ,दसवीं फेल इंटर पास करें ,बेरोजगार निराश न हों , असली शिलाजीत रुद्राक्ष लिंग्वर्धक यन्त्र असली जवानी , चमत्कारी आयल ,कोचिंग कालेज में प्रवेस ले सफलता की गारंटी बौराम सर जी की क्लास , १५ घंटे में न अंग्रेजी सीखें , जापानी कुत्तें ज्योतीस भृगु संहिता मूठ वशीकरण नजर का काट २४ घंटें में , जोश और जवानी चस्मा लगायें बिकावू है माकन दूकान , रिश्ते ही रिश्ते .....
आकर्षक वैबाहिक विज्ञापन इतना आकर्षक की बुढ्ढे भी मचल उठें ,मनपसंद जीवन साथी ऐसे विगयापन की वाकई जाती बंधन धर्म बंधन को छोड़ कर बंधनें की इच्छा जाग उठाती है कास नारद जी को भी भगवान् नें येही पढ़ा दिया होता तो वो न श्राप देतें न रामायण का इतना लफडा होता किसी न किसी कन्या से तो नारद जी बाँध ही जाते,कन्या ही कन्या ६ फ़ुट आकर्षक एम् ऐ बी ऐ डिप्लोमा सजातीय वर २३/१६५/५०००/ जाती बंधन नहीं ईसाई खुले विचारों वाली ,परित्यक्ता निर्दोष तलाकशुदा , बाँझ ,दो बच्चों का बाप ,अधेड़ किंतु आकर्षक अपना मकान नौकर वाले पेंसनर को नीसंतान जीवन संगिनी चाहिए लिखें पोस्ट बाक्स फलां फलां लिखें ऐसा की लिखते लिखते ही लव हो जाए पढ़ते पढ़ते ही सब हो जाए येही तो इन विज्ञापनों की विसेषता है
फ़िर फिल्मी चुटकियाँ , मैं चूजी हो गयीं हूँ चूजी हो चाहे चूजा नवजवानों का तो बेडा गर्क कर चुकी हो ,मुझे नग्नता से परहेज नहीं यदि कहानी की मांग हो तो किंतु मैं बिकनी नहीं प्रयोग करुँगी , बलात्कार की मांग हो तो करूंगी किंतु बोल्ड किस का सीन मंजूर नहीं आदि आदि सुवचनों से पिधियन उत्प्ररित होतीं हैं
इसी तरह की तमाम बकवासों से भरीं बातें घिसे पिटे संसकारों की तरह छापतीं रहतीं है तथा फ़ौरन भुला दी जातीं है कल का अखबार हतावो आज वाला दो मिनट बाद रद्दी वाले को बुला कर बेच देना

स्त्री देह विमर्श

स्त्री पुरुष संबंधो पर राजेंद्र यादव की बेलाग टिप्पणियो ने हिन्दी जगत में हमेशा तूफान खड़ा किया है पर उनकी बातें हमेशा सोचने को विवश करती हैं१ स्त्री को हजारो साल से देह के सिवा कुछ नहीं माना गया सारे साहित्य कलाओं में स्त्री के सारे उपमान कुच- नितम्ब -कटि के ही मिलेंगे बहुत कम जगह स्त्री के मन की बात की गयी है जब तक स्त्री अपनी देह से बाहर नही निकलेगी उसके बारे मी खुद फैसला नहीं लेटी तब तक उसकी मुक्ति का कोई अर्थ नहीं है२ - पुरुष ने divide and rule का पहला प्रयोग स्त्री पर ही किया इससे एक हिस्सा दुसरे हिस्से पर शासन करने में मदद करता है हमनें स्त्री को दो हिस्सों में बांटा है स्त्री कमर से उपर आनंद है कविता है कमर से नीचे स्त्री नरक का द्वार है३- मूलतः पुरुष स्त्री से डरता है इसी लिए उसके बारे में अजीब कल्पनाएँ गढ़ता रहता है जैसे स्त्री सुपर सेक्स है स्त्री मे काम वासना आदमी से आठ गुना ज्यादा होती है पुरुष स्त्री को संतुष्ट नहीं कर सकता है इसी लिए वोह उसे कुचलता रहता है आज तक आपने कभी स्त्री की काम वासना बढ़ाने के लिए दवाओं का विज्ञापन देखा है इन्टरनेट की कुछ साइट्स अपवाद हो सकतीं स्त्री वास्तव में हमारे लिए आज भी देह पहले है कुछ और बाद में हम उसके अंगो के लिए क्या क्या उपमानों का प्रयोग करते हैं संस्कृत में पिन पयोधरा ,बिम्बधारी क्षीण -कटी बिल्व - स्तनी सुभगा आदि सारी संस्कृति सारी नैतिकता सारा धर्म स्त्री की देह पर ही आकर क्यों टिका हुआ है अजीब बात है स्त्री का जरा सा सरीर दिख जाए तो अश्लील है ग़लत है संस्कृति के खिलाफ है सारा धर्म और संस्कृति का ठेका सिर्फ़ स्त्री देह के ही इर्द गिर्द क्यों घूमता है समझ में नहीं आता कभी किसी पुरूष के लिए किसी ने नहीं कहा की उसकी इस हरकत से संस्कृति खतरे में है अगर आदमी बाजार में दीवार के सहारे जिप खोल कर खड़ा हो जाए तो कोई बात नहीं किंतु यदि किसी मजबूरी में औरत येही काम छिप कर भी करे तो अश्लील घनघोर अश्लील यदि आँचल से दूध पीते हुए बालक ने जरा सा आँचल हटा दिया तो स्त्री बदचलन और अश्लीलता की वाहक हो जाती है कृपया इस पर विचार करें की ये दोहरी मानसीकता कब तक चलेगी
प्रस्तुतकर्ता arun prakash पर 8:53 AM