रविवार, 31 अगस्त 2008

सिक्स पे कमीशन और बाबु की व्यथा

जब से सिक्स कमीशन की रिपोर्ट क्या आई है ,ऐसा लगता है की भूचाल आ गया है ऐसे में मैंने सोचा चलो अपने कलक्टर के पेशकार मुरारी लाल से पूछ्तें हैं की वेतन बढोत्तरी के बारे में उनके नेक ख़यालात क्या हैं | जा कर देखा तो वे टुन्न पड़े हुए थे बोले शांत रहने में ही भलाई है आज बाबू वर्ग तनख्वाह को लेकर नहीं बल्कि रिश्वत को लेकर परेशां है तनख्वाह की दरें चेंज हों या न हों लेकिन रिश्वत की दरें revise होनी चाहियें वेतन का क्या है साडी दुनिया जान जाती है एक रूपया वेतन बढ़ता है तो महंगाई दो रुपया बढ़ जाती है बाबू वर्ग की जेब तो तार तार हो जाती है इस महंगाई के चलते |
पे पर तो सिक्स कमीशन बैठ चुके किंतु रिश्वत पर एक भी नहीं |यदि कोई कमीशन बैठता तो हम भी अपनी बात कहते | जब कोई कमीशन ही नहीं बैठा तब बाबू वर्ग को छोड़ कर बाकि लोग मौज करें
मैंने कहा मुरारी लाल जी क्या चिंतन है मैं तो पे की बात कर रहा था कितना फायदा हुआ और आप घूस को ले कर रोए जा रहे है
" वेतन को मारिये गोली |वेतन से आज तक किसी का भला हुआ है जो होगा मैंने तो किसी को होते नहीं देखा तो इस पर बात करना बेकार है , घूस की बात करो घूस की , जिसे देने वाला और लेने वाला दोनों माला माल हो रहे है
घूस जिससे दिन भर में कोठी तैयार होती है तथा रात भर में लक्सारी कार | घूस जिसका दस बीस लाख खा कर अफसर मस्त रहता है करोड़ पचास लाख खा कर नेता |
छापा के बहने पर जाने पर पता चलता है की इन इमानदारों के घरों में कितना माल संडास में छुप्पा है बाकी सब ले दे कर बराबर |उधर येही अफसर और नेता शिकायत सुन लें की किसी बाबू की जेब में पचास रुपये की नोट है तो बाबू जेल के अन्दर |क्या साडी इमानदारी का ठेका बाबू वर्ग ने ही ले रखी है |क्या हम चंदन लागतें है तो इसलिए
केवल राम राम जपतें रहे , अपने पांडे जी को देखिये बड़ा लाल टीका लागतें है माथे पर लेकिन क्या मजाल है फाइल को बढ़ने दें बिना कुछ दक्षिणा लिए | मैं समझ गया वे गुरु जी की बात कर रहे थे माथे पर लाल टिका विनम्रता की प्रतिमुर्ती कि आप जब मिलोगे तो विनम्रता से खड़े हो जायेंगे किंतु फाइल पर जो बात जायेंगे तो बिना फाइव स्टार लिए उठेंगे नहीं |हनुमान जी के भक्त हैं संकट मोचन में जा कर एक ही चौपाई सीख सकें है
" राम दूआरे तुम रखवारे , होत ना आज्ञा बिन पैसा रे || यही गुनगुनाते रहतें है लोग समझ जातें है कि दरवाजे पर लाल टीका लगाये यह सख्स बिना पैसा के कोई आर्डर निकलने नहीं देगा
मैंने मुरारी लाल को कहा आप भी तो पेशकार हैं आप को दिल छोटा करने की क्या जरूरत है , वे बिफर गए " हाँ बाबू सवेरे से शाम तक टकटकी लगा कर देखे दस या पाँच के पत्तों के लिए उधर अगला संडास में सोना छिपाता फिरे ""
"यार लाल साहब ये बात जम नहीं रही , संडास में सोना चांदी की बात ठीक नहीं' मैंने कहा
मुरारी लाल बोले जा कर देखो तो उनके संडासों में , जरा इन पाखण्ड विकास अधिकारीयों को देखो मैंने कहा' यार खंड विकास कहो" वे भड़क कर बोले" खंड कहो या पाखंड बात एक ही है ब्लाक डेव्हलपमेंट के नाम पर क्या ये डेव्हलपमेंट
को ब्लाक नहीं कर रह्नें है कोई पूछने वाला है ये साल दो साल कि नौकरी में इतना विकास कहाँ से हो रहा है कि तमाम लक्सारी कारें इन्हे ही मिल जा रही है और तुर्रा ये कि उन्ही गाडीयों पर उत्तर प्रदेश सरकार भी लिखवा दे रहे है यदि मैं राज्यपाल होता तो i am pleased to seize all वेहिकल्स कि जब माल सरकार का ही है तो इधर लाओ" |
तब तक मुरारी लाल पर नशा हाबी हो चुका था बोले ये बाबू वर्ग की ट्रेजेडी है की वो बाबू है इस लिए बदनाम है बाद होने के लाख फायदे बदनाम होने के लाख नुक्सान |बीबी वेतन और रिश्वत की पाई पाई वसूलने के बाद भी समझती है की उससे कुछ छिपा कर रकम डंप की गयी है अफसर साला भी येही समझता है की हो ना हो कुछ रकम का फील गुड बाबू ने कर दिया है
उस पर से ये पे कमिशान की कामिनी रिपोर्ट जिसने एरीअर की ख़बरों को भी लीक कर दिया है , दामाद बेटियों को तंग करते हैं , बहुएं बेटों को एहन तक की चुन्नू मुन्नू को भी पता हो गया है की वेतन बढ़ गया है सबकी एक ही रट है बाबू जी से कहो - कहो कहते जाओ बू वर्ग तो अभ्शाप्त है केवल सुनने के लिए दफ्तर में अफसर की फरमाइशें पुरी करते रहो अपनी दस पैसों में से तथा घर पर बेटो बेटियों दामादों से सच पुछो तो नफरत
हो गयी है ये बाबू डम से पहले की बात कुछ और थी घुस कमिसन में इमानदारी से सकदे में अट्ठानी मिलाती थी तो उसमे बरक्कत थी अब उसमे इन बे ईमानों ने सैकडो मुसीबतें खडी कर दी है | सैकडा खाने वालों ने हमारी अट्ठानी भी कहानी शुरू कर दी |आज सैकडा खाने वाला इमानदार है तथा अट्ठानी खाए जो वो बदनाम
हम बाबू वर्ग तो घर पब्लिक परिवार सबके सामनें नंगे हो गए हमारी रिश्वत के रेट वही नेहरू जी के ज़माने के ही चलें आ रहे हैं वही पाँच दस रुपये सरकार इन रुपयों का चलन बंद कर दे तो शायद कुछ बदलाव आए हमसे अच्छे तो भिखारी हैं जो आटा- चावल के स्थान पर एक दो रुपये लेने शुरू कर दिए पर हम पेशकार वर्ग अभी भी तारीखों को देने के नाम पर वही पुराना दो रुपया ही लेते चले आ रहे हैं है कोई ऎसी कॉम जो पब्लिक हित में अपना इम्मन दस पाँच में बेचती हो
मैं मुरारी लाल की इस व्यथा को सुन कर " करुना कर के करुणानिधी रोए " की स्थिती में आ गया हूँ है कोई सुनने वाला है? जो इस अनोमाली को पे कमीशन के सामने ला कर पे बैंड की तर्ज पर ले बैंड या दे बैंड बना कर इन मासूम बाबू वर्ग को निर्दयी अफसर साहूकारों के चंगुल में जा रहे उनकी अट्ठानी को कपंन्शेट कर सके

शुक्रवार, 29 अगस्त 2008

व्यंग्य कविता

छुपे हैं चोर थाने में , पकड़ने हम किसे जायें
दरोगा बन गया साला अकड़ने हम कहाँ जायें

लगा है शौक पढने का हमें यारों बुढापे में
बंधी भैंसे मदरसे मैं तो पढने हम कहाँ जायें |

खुजा कर सर किया गंजा , न आई बात भेजे में
लिया जब जन्म अगडों में पिछड़ने हम कहाँ जायें |

बिजली है , न पानी है ना सीवर है न सड़कें है
बसाया घर बनारस में , तो उजड़ने हम कहाँ जायें|

कटें है सीरियलो में दिन गुजारी रात फिल्मों में
जो घर में हो डिश टीवी बिगड़ने हम कहाँ जायें

पढ़ी है जब से लोगो ने पे कमिशन न्यूज अखबारों में
बढाये दाम बनियों ने , तो बताने हम कहाँ जायें |

सभी बेटों ने कर लिया एम् सी ऐ , और एम् बी ऐ ,
बेचते पार्ट एच सी एल के , बतानें हम कहाँ जायें |

एक दोहा
रहिमन अब वे पुलिस कहाँ ,धीर वीर गंभीर ,
थाने - थाने देखिये हरिजन और अहीर |
( ये दोहा किसी जाति विशेष के प्रति विरोध के लिए नहीं है बल्कि थानों में दरोगाओं के जातिवार नियुक्ति को ले कर कोटा सिस्टम के प्रति टिपण्णी है | अतः सुधी पाठकों से क्षमा याचना सहित )

रविवार, 24 अगस्त 2008

लोक तंत्र

लोक प्रतिनिधि की वंदना करूँ मैं बारम्बार

लोक के प्रति निष्ठां नहीं निधि से नेह अपार

बोले कुर्सी बिहंसी के हूँ वेश्या की जात

आने वाले पान खाय जाने वाले लात

सारा जग अँधा हुआ भूले भटके लोग

जोगी ढूंढे भोग को भोगी ढूंढे जोग

तन्त्रहि लोक भावे नहीं नहिं भावे लोक तंत्र ,

एक गुलामी कर रहा है दूजा परम स्वतंत्र

रोवे लोक रोटी नहिं पड़ी लंगोटी छोट ,

चाहे उनको वोट दें , चाहे उनको वोट

मोटर चमके तंत्र की बत्ती नीली लाल ।

चीखा जन नंगे हुए मेरी उतरी खाल

मारा - मारा जन फिरे , इनके उनके धाम ,

सबके निश्चित काम हैं सबके निश्चित दाम

भुला भटका जन लगे तंत्र द्वारे जाए

कुकुर मिठाई खा रहे देखि देखि ललचाय

जन जैसा निर्धन नहिं , तंत्र सरिस धनवान ,

निर्धन को धन दे प्रभु !! धन वालों को ज्ञान



अंधे युग को क्या कहूँ चढा करेला नीम ,

सबे शिखंडी हो गए क्या अर्जुन क्या भीम

पहिले जस दानी कहाँ , कहाँ दान और मान ,

sabhii सुदामा हो गए , रोवें कृपानिधान

सोमवार, 18 अगस्त 2008

सोना सस्ता बेकार है सोने का मैडल

जब से निशानेबाज बिंद्रा ने गोल्ड मैडल क्या जीता सोने और चाँदी दोनों के भाव गिरते ही चले जा रहे है विश्वास न हो तो पुराने सराफा बाजार की खबरें देख लें बिंद्रा ने कहा कि यह स्वर्ण कईयों को प्रेरित करेगा \किंतु सत्यानाश हो इन सर्राफा बाजार वालों का जो सोना तो सोना , चाँदी का भी दाम गत आठ महीनों के न्यूनतम मूल्य पर ला कर पटक दिए बिंद्रा का कहना था उसका केवल लक्ष्य मैडल कि ओर ही था किंतु भला हो अन्य निशानेबाजों राठौर आदि आदि का जो सराफा बाजार कि ख़बरों पर ध्यान देते हुए सोच लिए कि ये फायेदे का सौदा नहीं कि मैडल ले जाओ जिसकी कीमत ओलम्पिक ख़त्म होते होते पता नहीं कहाँ तक गिर जाए
वास पता नहीं सोना भी कितने कैरट का है इन चीनियों का क्या भरोसा जब इन्हे भारत के मेहमानों कि लिस्ट में मनमोहन सिंह में ही खोट नजर आ गया तो इनकी नियत मैडल बनाने में कितनी साफ़ होगी ची चंग ही जाने \
फेल्प्स आठ स्वर्ण ले जा रहे हो न बाद में पता चलेगा कि ये सारे स्वर्ण संघाई के कबाडी बाजार से पीतल के बने हुए हैं खैर इसमे तुम क्या कर सकते भी हो तुम्हारा देश तो ऐसे भी कुछ करने वाला नहीं है सिवाय निंदा के ...
कांस्य पदक शायद ठीक ठाक हो इसमे हमारे बाक्सेर लगे हुए हैं देखना स्वर्ण मृग के चक्कर में तुम सब मत आ जाना हम सब उन वीरों कि संतानें है जिन्होंने सोने को लोष्ठ्वात ( ढेले) से ज्यादा कुछ नहीं समझा बिंद्रा अभी नादान है शादी शुदा है नहीं वो नहीं जानता कि सोने के पीछे भागेगा तो भागता ही रहेगा सीखना है तो क्रिकेट टीम से सीखो जो रोज बयान दे रही है कि मेंडिस कि काट मिल गई है और हर बार मेंडिस ही काट रहा है एक दो हार से जिन्दगी तो ख़त्म नहीं हो जायेगी मन बहलाने के लिए बिंद्रा का मैडल काफी है आप सब आ जाओ कामनवेल्थ और मिशन लन्दन कि बात करनी है

शनिवार, 2 अगस्त 2008

क्षणिकाएं फूटकर कवितायें

गुप्त रिपोर्ट (टाप सीक्रेट )
सेवा में .......
aapkaa पत्र मिला
अर्ज है
यह बड़ा अनुसाशनहीन है
न खाता है , न खिलाता है
खान पान का सख्त विरोधी है
पूरा दफ्तर परेशान है हैरान है ,
आचरण निंदनीय है
अतः तबादला जनहित (बहुजन हित ) में
अनिवार्य है गुप्त रिपोर्ट आपकी सेवा में
कार्यवाही हेतु प्रेषित है
भवदीय
(आ. प् .लेले )
कुछ नयी बीमारियाँ ----
रिपोर्ट आई है कुछ बीमारियाँ घट रही हैं तो कुछ नई आ रही हैं
पक्षाघात घट रहा है
पक्षपात बढ़ रहा है
मलेरिया घट रहा है ,
मॉल एरिया बढ़ रहा है ॥ (माल शब्द के कई अर्थ है कृपया सभी को देखें )
चेचक मिट गयी है
चक _चक बढ़ गयी है
पर व्यक्ती खुराक घट गयी है ,
पर वजन बढ़ रहा है
दिल के दौरे बढ़ गए हैं
दिल का आकार छोटा हो गया है
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