बुधवार, 17 सितंबर 2008

मुशर्रफ़ रमजान के महीने में हक की कमाई से खैरात देंगे


क्या क्या नहीं किया अमेरिका के इशारों पर
चुनाव करा कर अपनी ही जड़ें खोद डाली
कहने पर ही वर्दी डाली उनके ही कहने पर
तालिबानों के खिलाफ और दहशतगर्दों के खिलाफ जंग छेड दिया अंत में नेकी का जीवन बिताने के लिए रमजान के महीने में आखिरकार मुस्सरफ साहिब ने ये फैसला किया कि जमीर की बात मानेंगे तथा हक़ कि कमाई से खैरात देंगे इंशाल्लाह ये ख्वाहिश पुरी हो .... आमीन

शनिवार, 13 सितंबर 2008

विस्फोट की जानकारी हमें थी

जब जब कोई बम विस्फोट होता है तो हमारे माननीय गृह मंत्री जी का यह बयान आता है
जनता संयम बरते
आतंकवादियों और दहशतगर्दो (नया शब्द उर्दू में समझाने हेतु ) को बख्शा नहीं जायेगा
आंतकवादियों के विरुद्ध अभियान चलता रहेगा
आंतकवाद के खात्मे के लिए सरकार कटिबद्ध , जनता से सहयोग की अपील
ऐसी घटना की कठोर शब्दों में निंदा की जाती है
आंतकवादियों की यह कारवाही हताशा का परिणाम कायरतापूर्ण कार्यवाही ........
ऐसे बयां पढ़ कर लगता है कोई ऐसी घटनाओं की बषॅगाँठ मना रहा हो तथा संदेश व शुभकामनाएं दे रहा हो |
मुझे तो लगता है कुछ बयान रेडिमेड रूप से तैयार कर रखे हुए हैं केवल मीडिया को याद दिला दिया जाता है कि अमुक नम्बर वाला गृह मंत्री का फलां प्रधान मंत्री का ,बाकी सब श्री प्रकाश जैसवाल के लिए छाप दो फ़िर ये सब नेता गृह मंत्री जी सफ़ेद कोट व सफ़ेद शेरवानी तथा श्री प्रकाश जी ग्रे कलर कि सफारी या कोट जो भी धुली हो पहन कर टी वी का सामने आ जाते हैं
हमें यह पूर्व सूचना थी कि कोई बड़ा धमाका होने वाला है हमने पहले ही राज्य सरकारों को सतर्क कर दिया था भेड़िया आया लेकिन सरकारों ने सामयिक कदम नहीं उठाया देखिये हमने तो पहले से ही बयान तथा साफ़ धुले हुए सफ़ेद शेरवानी तैयार कर रखी थी हाँ तारीख का पता नहीं था यहीं तो ये साले आतंकवादी बताते नहीं वरना हम घटना स्थल पर पहले ही पहुँच कर नागरिकों को आतंकवाद से कैसे लड़ाई की जाए का सेमीनार उसी जगह उदघाटन कर दें और जब लोग मर जायें तो हम बयान दे दे कि नागरिकों की लड़ाई में अन्तिम विजय नागरिकों की होगी इस देश की होगी | लेकिन आंतकवादी हमें यही नहीं बताते हम ने कई बार कहा भी कि यार साल में एक दो बार तो ऐसा मौका दे दो खैर हम क्या करें अब हम फेडरल सुरक्षा की बात कर रहे है जिसमे मोदी को भी विशेष रूप से बुलाया जायेगा
हमारे एक गृहमंत्री जो देखने में चाचा चौधरी लगते है आयरन मैन भी कहा जाता है आंतकवादियों से निपटने में सक्षम है उन्होंने एक बार ललकारा तो आंतकवादी संसद में उनसे मिलाने ही जा रहे थे कि मार गिराए गए | ऐसा गृह मंत्री होना चाहिए | आज उनका एक बयान आया कि मोदी साहेब ने १० दिन पूर्व ही बता दिया था कि दिल्ली में बम फटने वाला है | वाह भाई वाह पहले गृहमंत्री बताते थे कि हमने राज्य सरकारों को फलां तारीख को ही सतर्क कर दिया था | अब राज्य के मुख्या मंत्री यही बात दुहराएंगे कहाँ कहाँ जबाब देंगे श्री प्रकाश और पाटिल साहेब
पाटिल साहेब ने ये बताया कि 'ऐसी घटना की आशंका तो थी किंतु स्थान और दिन का पता नहीं था ' अरे तो मोदी और आडवानी साहेब से पूछ लिए होते खैर इस मासूम बयान पर मेरा दिल भर आया कि बेचारा पाटिल क्या करे यदि आंतकवादियों का आमंत्रण पत्र मिल गया होता तो वे भी आज आडवानी कि तरह लौह पुरूष नहीं तो कम से कम कांस्य पुरूष तो कहलाते लेकिन बेडा गर्क हो आई एस आई सिमी फिम्मी का ये सब बताए तब न
बेकार चिंता कर रहे हैं एक ज्योतिषी रख लीजिये वह सब बता देगा कि क्या कब होने वाला है लेकिन आज कल के ज्योतिषी भी चालक हो गए हैं जैसे वे बताते हैं कि इस माह एक बड़े नेता की मौत होगी प्राकृतिक उपद्रव होगा सत्ता परिवर्तन होगा , अब यदि मंगरू राम मर गए तो वे बड़े नेता घोषित कर दिए जातें है उन ज्योतिषी द्वारा यदि बाढ़ आगयी तो ठीक नहीं तो सूखा को ही उपद्रव घोषित कर दिया जायेगा रही बात आतंकी घटनावों की तो ये ज्योतिषी गण हिंसात्मक घटनाओ में वृदधी बता कर ही अपना पाला झाड़ लेते हैं फ़िर क्या होगा
खैर जो भी हो 'बलि जाऊँ लाला इन बोलन पर ' पहले का एक बयान याद करें जब नेता यह कहते थे कि कोई भी धर्म हिंसा नहीं सिखाता सुन कर ऐसा लगता था कि इसे पढ़ कर उग्रवादी शर्म से गड़ जायेंगे या आत्महत्या कर लेंगे कि घटना करने के पहले हमने सारे धार्मिक ग्रंथो को क्यों नहीं पढ़ा
अब ऐसे बयान ना आने से उग्रवादियों ने भी राहत कि साँस ली है बलि जाऊं लाला इन बोलन पर
आप सभी नेता गण अपने सफ़ेद वस्त्रों को धुला कर रख लेई \पुलिस का बयान कि उसे कुछ ठोस सुराग मिल गएँ है तथा कुछ स्केच जो उन अफसरों के अपने ही बचपन की दुबली पतली ब्लैक व्हाइट फोटो से बनी होती है वह जारी हो जायेगी एकाध लाख कि घोषणा हो जायेगी जनता खोजे आख़िर लड़ना तो जनता को ही है ना

सेलेब्रेट हिन्दी दिवस

आज १४ सितम्बर है हिन्दी दिवस का नाम लेकर कई समारोहों की खबरे कल के अख़बारों में होगी | क्या इन दिवसों को मनाने के बाद भी हिन्दी के प्रयोग उसे राजभाषा के रूप में प्रतिष्ठित होने का स्वप्न पूरा हुआ ? शायद हम जितने वर्षों से हिन्दी दिवस मन रहे है उतनी ही पश्च गति से राजभाषा के रूप में सही मायनों में हम हिन्दी की दुर्गति ही कर रहे है आधुनिक बोलचाल की भाषा में हिन्दी की वाट लग रही है क्षमा करें जो इस शब्द का प्रयोग किया लेकिन जो पत्र पत्रिकाओं की हिन्दी प्रय्क्त हो रही है उसमे भी हिन्दी के ऐसे ऐसे शब्द प्रयुक्त हो रहे हैं की ईश्वर ही मालिक है जैसे - हड़काया , तीन गोल से रौंदा , चार विकेट से धोया आदि निश्चित रूप से ये पत्रकार अन्ग्रेज़ी के शब्दों का ज्यों का त्यों अनुवाद कर हिन्दी पड़ोस रहे है जो हिन्दी हम आज की पीढी को दे रहे हैं उससे हम यह कल्पना कर लें की साहित्य व संस्कृति को समझने की क्षमता विकसित हो रही है एक छलावा मात्र है
आइये हिन्दी दिवस की बात पर पुनः लौटें तो केंद्रीय कार्यालयों में वितीय संस्थानों में लाल -नीले बैनर में हिन्दी दिवस या हिन्दी पखवारा मनाने की घोषणा हो रही होगी | हिन्दी में कुछ कार्यशालाएं तथा वही घिसे पिटे निबंध पढ़े जायेंगे राजभाषा शील्ड किसी को ,मिलेगी फूल माला होगी हिन्दी ही देश को एकता के सूत्र में जोड़े रख सकती है या निज भाषा उन्नति --- के नारों का पाठ होगा | कुछ कार्यलाध्यक्ष अपने भाषणों में हिन्दी दिवस को सेलेब्रेट करेंगे हिन्दी को कैसे यूजफुल बनाया जाए इस पर विचार होगा फ़िर १५ दिनों तक पखवारा मनाया जाएगा
एक दिलचस्प बात यह है की हिन्दी पखवारा और वार्षिक श्राद्ध का महीना एक ही है इसी बहाने पितरों के साथ हिन्दी का भी श्राद्ध मना लिया जाता है फर्क इतना है कि ये राजभाषा वाले लोग सर नहीं मुंडाते लेकिन मूंछ जरूर मुंडवा लेते होंगे | हिन्दी की बात उनकी सारी एक समारोह में एक अधिकारी ने भावुकता में ये भी कह डाला कि उनकी सारी शिक्षा हिन्दी माध्यम से हुई है उन्होंने इसी माध्यम से एम् ऐ इंग्लिश भी किया |
खैर जैसे और सभी दिवस मानते हैं उसी तरह से इसे भी मन कर संतोष कर लिया जाए कि कुछ तो याद किया जैसे पितरों को पानी दिया वैसे ही हिन्दी को भी पानी पी पी कर याद तो किया मातृ नवमी को मातृ
भाषा का श्राद्ध हो गया तिथि ग्रह सब तो अनुकूल ही है |

गुरुवार, 11 सितंबर 2008

शेर ओ शायरी

मुन्न्वर के शेर दिल को छूने वाले होते हैं
पेश है कुछ चुने हुए शेर जो संबंधों को नए अर्थ दे रहे है

मुनव्वर’! माँ के आगे यूँ कभी खुल कर नहीं रोना
जहाँ बुनियाद हो इतनी नमीं अच्छी नहीं होती

अब देखिये कौम आए जनाज़े को उठाने

यूँ तार तो मेरे सभी बेटों को मिलेगा

मसायल नें हमें बूढ़ा किया है वक़्त से पहले

घरेलू उलझनें अक्सर जवानी छीन लेती हैं

हमारे कुछ गुनाहों की सज़ा भी साथ चलती है

हम अब तन्हा नहीं चलते दवा भी साथ चलती है

जहाँ पर गिन के रोटी भाइयों को भाई देते हों

सभी चीज़ें वहाँ देखीं मगर बरकत नहीं देखी

जो लोग कम हों तो काँधा ज़रूर दे देना

सरहाने आके मगर भाईभाई मत कहना

तुम्हारी आँखों की तौहीन है ज़रा सोचो

तुम्हारा चाहने वाला शराब पीता है

कुछ उम्दा शेर ----

उन घरों में जहाँ मिट्टी के घड़े रहते हैं

क़द में छोटे हों मगर लोग बड़े रहते हैं

किसी भी मोड़ पर तुमसे वफ़ादारी नहीं होगी

हमें मालूम है तुमको ये बीमारी नहीं होगी

वो ख़ुश है कि बाज़ार में गाली मुझे दे दी

मैं ख़ुश हूँ एहसान की क़ीमत निकल आई

( साभार माँ से )

बुधवार, 10 सितंबर 2008

ईमानदार और बेईमान की परिभाषाएं

कुछ आधुनिक परिभाषाएं
बेईमानी और इमानदारी की बातें प्रायः हरि अनंत हरि कथा अनंता शैली में सदियों से चली आ रही हैं प्रत्येक युग में अलग अलग गुण धर्म रहे है इन शब्दों के , किंतु साधारण आदमी के लिए यह एक अबूझ पहेली बनी हुई है कि
हम किसे बेईमान कहें और किसे इमानदार | कुछ परिभाषाओं के मध्यम से आप अपने को या दूसरे को माप सकतें है कि वह कैसा है
हर व्यक्ती अपने को इमानदार दूसरे को बेईमान समझता है |
हम सब कहीं कहीं थोड़ी या ज्यादा बेईमानी करतें है | कुछ लोग अपवाद हो सकतें हैं |
एक चोरी करता है दूसरा चोरी में परोक्ष या अपरोक्ष रूप से मदद करता है और तीसरा चोरी का इरादा मन में रखता है |इस दृष्टि से सभी तीनो चोर है |
यह भी सत्य है कि चाहे जितनी भी चोरी करो , बेईमानी कारों इस पापी पेट के लिए किंतु यह पापी पेट दो रोटी में ही भर जाता है वह चाहे चुपडी हो या सादी ....
आज के युग में बेईमानी और बेईमान सब तरफ़ से सुरक्षित सरंक्षित है |
सरकारी नौकरी में सुधारवादियों की कोई जगह रिक्त नहीं है इसकी जरूरत ही है बस इतना ही कोई कर सकता है कि कोई हमारे नाम पर खाए , हमारे सामने खाए ,और हमारी शिकायत आए यही बचा कर चले तो समझो सफल हैं
चोर पकड़ने से अच्छा है अपना माल ही चोरी हो जाए इसी पर ज्यादा ध्यान दें वह माल अपनी मर्यादा इज्जत नाम कुछ भी हो सकता है क्यों कि बेईमानों के हाथ काफी लंबे है
अपने प्रति इमानदार रहना ही सफलता और आत्मसंतोष कि गारंटी है |
पहले यह कहा जाता था कि यह अफसर बेईमान है रिश्वत लेकर काम करता है | आज कल लोग ये कहते हैं कि यह अफसर भ्रष्ट है रिश्वत ले कर भी काम नहीं करता है |
हर आदमी दूसरे को बेईमानी के लिए प्रेरित करता है आपकी कीमत की टोह में है अगर आपने अपनी कोई कीमत का अंदाजा नहीं दिया तो आप जसा नाकारा और बेकार अफसर कोई नहीं आपको हटाने के लिए लोग कटिबद्ध हो जायेंगे
अधिकारी कि तरक्की में ईमानदारी ,व्यापारी की तरक्की में दुनियादारी तथा नेता कि तरक्की में समझदारी बाधक है |
जो अफसर ज्यादा ईमानदारी के भाषण देता है वह उसके उतने ही विपरीत है समझ लीजिये|जो बदसूरत है वही तो फेयर एंड लवली कि क्रीम हाथ में लेकर दिखायेगा |
भ्रष्टाचार की बात करते हुए कुछ लोग तो यहाँ तक कहते हुए सुना है कि फलां कि नैतिकता इतनी मर गई है कि उसने मेरे नाम का पैसा भी खा गया |
जय बोलो बेईमान की !!!!!!!!!

सोमवार, 8 सितंबर 2008

रामराज्य अच्छा या आज का राज्य

एक प्रश्न मेरे मनोमस्तिष्क में बहुत दिनों से परेशान करता है की जिस रामराज्य के के बारे में गांधी जी से लेकर हमारे संस्कृति के खेवन पार्टियाँ बड़े जोर शोर से बातें करतीं हैं , जिसके बारे में गोस्वामी दास जी ने उत्तर कांड में बड़ी अच्छी अच्छी बातें लिखी है क्या उसमे वास्तविक लोकतंत्र था तथा जनता की मनः स्थिति क्या थी ? एक दो प्रसंगों के आधार पर मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचता हूँ की आज से भी बुरी और भयग्रस्त मानसिकता वाली जनता उन दिनों की थी जो किसी अन्याय का विरोध नहीं करती थी केवल राजतन्त्र के प्रति निष्ठावान जनता थी जो राजा ने कर दिया वोही ठीक है
बल्कि महाराज दशरथ के दिनों में जनता अपनी भावना अच्छे तरीके से प्रकट करती थी प्रभु राम के वनवास की ख़बर सुन कर भारत के साथ राम को मनाने काफी संख्या में नर नारी का समुदाय जंगल में चला आया था बड़े मनावन व मनुहार के बाद जन मानस वापस लौटा था
किंतु धोबी प्रसंग के पश्चात जब राज धर्म का पालन करते हुए सीता को गर्भावस्था में बनवास हुआ तो वही जनता ने कहीं भी कोई विलाप या विरोध प्रदर्शन कर के अपनी असहमती नहीं जताई जनता के इन दो प्रसंगों में अलग अलग व्यवहार को क्या माना जाय की जनता पहले उसी राम सीता के वनवास होने पर वन में मनाने चली गई किंतु माता सीता के निष्काशन का उस पुर जोर से विरोध नहीं हुआ ?
क्या दशरथ महाराज के समय की जनता ज्यादा स्वतंत्र थी अपनी भावनाओं को प्रगट करनें हेतु या राम राज्य में अधिक कठोर व विकेन्द्रित शाशन प्रणाली के चलते जनता में कोई खास प्रतिक्रिया नहीं हुई ?
इतना अच्छाई वाले राज्य में भी एक धोबी ऎसी अनर्गल प्रतिक्रया करता है इससे यह सिध्ध होता है की राम जैसे मर्यादा वाले राजा के विरोध में वैयक्तिक प्रतिक्रया हो सकती थी तो आज जो ओछी राजनीती हो रही है उसे नजरअंदाज करना ही पडेगा तथा उसे सामान्य ही माना जाएगा
यदी आज के समाज में किसी धोबी ने ऎसी वैसी टिप्पणी की होती तो सत्ताधारी दल के लोग उसे अपनी पुलिस या अपनी पार्टी के लोगो से धोबी के प्रति विरोध प्रगट करते और धोबियों के विरूद्ध दंगे भड़क जाते धोबी का नार्को टेस्ट करा कर सी बी आई उससे जुर्म कबुल्वाती की उसने किस पार्टी के कहने पर ऎसी वासी बातें कही है
खैर ये सब तो आज होता
उन दिनों में उस धोबी के प्रति लोगों की प्रतिक्रिया क्या रही थी ? इसके बारे में मैंने कहीं नहीं पढ़ा है की क्या उसका सामाजिक बहिस्कार हुआ था या नहीं या उसके पड़ोसियों ने हुक्का पानी बंद किया था या नहीं हनुमान जी जैसा बलशाली देवता के रहते हुए कोई धोबी ऐसा वैसा कैसे कह दिया इससे ऐसा लगता है की प्रशाशन का ज्यादा खौफ जनता में नहीं था
खैर कुछ गंभीर प्रश्न जो अनुत्तरित हैं १ क्या युगों युगों से जनता का चरित्र ऐसा ही रहा है की वह शासकों के क्रिया कलापों के प्रति इसी प्रकार उदासीन रही है ?
क्या हम किसी ऐसे यूटोपिया की कल्पना कर सकतें है जो रामराज्य से भी बेहतर हो जिसमे ऎसी घटना न हो
क्या भगवान् राम को डर था की यदि धोबी की घटना पर उन्होंने जल्द से जल्द कोई प्रतिक्रिया नहीं की तो जन सामान्य में यह चर्चा का विषय बन जायेगी
मैं चाहूंगा की इस पर आप अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें किंतु मेरे मतानुसार जनता किसी की सगी नहीं है वोह भी अवसरवादी होती है तथा स्मरंशाक्ती शुन्य होती है जैसा की यहाँ राम के वनगमन और सीता वनवास में दो भिन्नताएं देखने को मिल रहीं है तथा नारी के प्रती लोगों की विपरीत सोच खास तौर से यौन शुचिता को ले कर वैसी की वैसी ही है तो क्या राम राज्य और क्या आज का राज्य ?????? कोऊ नृप होए हमें क्या हानि ........ यह भी मानसिकता उसी काल से चली आरही है नहीं बदला है जनता की सोच बस बदला है तो शासकों के शासन की स्टाइल ठीक कहा ना

शुक्रवार, 5 सितंबर 2008

वसीयत में ठेंगा

अभी कुछ दिन पूर्व एक अखबार में यह ख़बर पढी की अहमदाबाद की एक स्त्री ने अपनी वसीयत में अपने दो जीवित पुत्रों के नाम अपना ठेंगा (अंगूठा ) कर दिया इस ख़बर के अनुसार इस महिला के दो पुत्र थे बड़ा पुत्र अमेरिका में तथा छोटा पुत्र मुम्बई में सेटल थे तथा मान की परवाह नहीं करते थे माँ एक हास्पिटल में नर्स का काम करती थीं तथा retirement के बाद एक नौकरानी के साथ रहतीं थी| ७० वर्ष की आयु में अपनों से दूर निराशा पूर्ण स्थिति में उन्होंने अपनी वसीयत में अपनी सारी समप्ति , मकान आदि उस नौकरानी के नाम कर दिया तथा अपने आँख गुर्दे के साथ अपना शरीर मेडिकल कालेज को दान कर दिया ताकि छात्र छात्रा उनके शरीर को अपने प्रक्टिकल हेतु प्रयोग कर सकें

अपने पुत्रों के लिए अपनी अन्तिम क्रिया के संस्कारों के निमित्त उन्होंने अपने दोनों हाथों के अंगूठे काट कर देने हेतु लिखा था जो मेडिकल कालेज के लोगों ने सुरक्षित रखा था जो वसीयत के अनुसार उनके पुत्रों को दे दिया गया

इस ख़बर को पढ़ कर अंदाजा लगाया जा सकता है उस माँ की पीडा तथा आज की पुत्रों की संवेदनशीलता को

उस अंगूठे का क्रिया कर्म हुआ या नहीं लेकिन इतना स्पष्ट है की इनकी संतानें ऐसे माता पिताओं को कीडो मकोडों के द्वारा ही अन्तिम क्रिया कराएंगी इसमे कोई शक नहीं क्यों की भौतिकता के नाम पर जो संस्कार ये अपने बच्चों को दे रहे है उसका फल क्या होगा

कभी कभी मुझे लगता है की पुराने ज़माने की जो कहावत है कि भलाई का बदला भलाई मिलेगा ये सब बातें outdated हो गयीं है ये उन दिनों के लिए गाधी गयीं थी जब वास्तव में भले लोग संसार में ज्यादा थे तथा आए दिन भला आदमी भले आदमी से ही टकराता रहता था इस लिए उसे भलाई मिल जाती रही होगी ऐसे भले लोगों ने अपने अनुभवों से ये मुहावरा बना दिया

अन्यथा आज के ज़माने में एक भले आदमी को इतनी जिल्लत सहनी पड़ेगी कि उसे फ़िर इसी निष्कर्ष पर पहुँच कर इस दोहे को संसोधित करना पडेगा कि "जो टोके काँटा बोए ताहि बोए टू भाला , वो भी साला याद करेगा पड़ा किसी से पाला " मूल दोहे में काँटा के बदले फूल बोने की बात कही गयी है

फ़िर उस घटना से व्यथित हो कर मई उस दुखात्मा को अपनी तरफ़ से श्रधांजलि देते हुए इश्वर से उनजैसी माताओं के पुत्रों को सद्बुधी देने की प्रार्थना करता हूँ कि फ़िर किसी माँ को ऐसा कठिन निर्णय लेना पड़े और किसी पुत्र को ठेंगा मिले