शुक्रवार, 31 अक्तूबर 2008

दो राज में फर्क क्यों

राहुल राज पर इल्जाम लगा कर मार दिया गया की वह राज ठाकरे को सबक सिखाने के लिए एक पिस्टल
ले कर जा रहा था बाम्बे पुलिस ने बड़ी ही बहादुरी से अंजाम घटने के पूर्व ही हमलावर को मुठभेड़ में मार गिराया |
लेकिन यही पुलिस जब राज ठाकरे को गिरफ्तार कर कोर्ट के सामने बहादुरी से पेश कराती है तो देश द्रोह जैसे अपराध को धारा १५१ आई पी सी में पेश कराती है ताकि नेता जी को आसानी से जमानत उसी दिन मिल जाए
जनता सब समझ रही है चाचा चोर के खिलाफ पाजी भतीजा को खड़ा करके चाचा को सबक सिखाने कि चालों को
चाचा को भी इन्ही नम्पुसकी हरकतों ने सिरफिरों का नेता बना डाला | भतीजों ने भी ऐसा कर दिखाया है राहुल राज को अनायास कत्ल कर राज को अनावश्यक महत्व दिलाया जा रहा है | इस कौम में इतना जल्दी उफान नहीं आता जैसा कि राहुल के मामले में बताया जा रहा है यदि न विश्वास हो तो याद करें जब बाबरी मस्जिद को बचानी के लिए गोलियां चली तो धार्मिक उन्माद के उन क्षणों में जब हिंदू खून को चाय के केतली में बार बार खौलाया जा रहा था तब एक पार्टी के नेता के बारें में अक्सर कहा जाता था कि सच्चा हिंदू इनको छोड़ेगा नहीं, हिन्दुओं के खून का बदला जरूर लेगा लेकिन कभी भी इन नेता जी पर किसी ने एक पत्थर भी नहीं फेंका , न कोई काला झंडा ही कहीं दिखाया गया होगा
हाँ नेता जी कि सियासत जरूर चमक गई एक दशक से वर्ग विशेष की हिमायत इन्हे हासिल है ऐसा माना जाता है कुछ इसी तरह कि सियासत खेली जा रही है महाराष्ट्र में इस राज नामक खाज के मामले में .............. खुदा बेडा गर्क करे इन नालायक सियासतदानों का

क्या धुम्रपान ऐसे रूकेगा ?


२ अक्टूबर से धूम्रपान पर प्रतिबन्ध लगा कर सरकार यह संदेश देना चाहती है की वह इसे सख्ती से लागू कर आम आदमी को स्वास्थ्य के प्रति सही मायनों में चिंतित है | लेकिन अम्बुमणि जी कोई भी सरकार समाजसुधारक नहीं हो सकती है समाज सुधार करना कभी भी सरकार का काम न पहले कभी था और न आगे कभी रहेगा चाहे वह सामाजिक बुराई हो या धार्मिक , नैतिक या आर्थिक या स्वास्थ्य सम्बन्धी कुरीतियाँ , भारतीय समाज रूढिवादी व परिवर्तन विरोधी रहा है पेप्सी व कोका कोला में कौन सा विटामिन परोसा जा रहा है कि उसके विज्ञापनों व इस्तेमाल के फायदों व नुकसानों के बारे में चिंतन नहीं हो रहा है बाबा रामदेव अवश्य इसके पीछे पड़े हैं लेकिन तम्बाकू व शराब के बारे में उनका विरोध कहीं दिखता नहीं जो शरीर को खोखला करतें है क्यों कि प्रचार के लिए ये सब बातें बहुत से महापुरुषों ने धर्म प्रवर्तकों ने ज्ञानियों ने धर्मग्रंथों में इसकी निंदा की है लेकिन इन नशा का कभी अंत नहीं हुआ लोग धर्म के विरोध में भी जा कर इन नशे की चीजों के गुलाम हो गए | तब ऐसी पुरानी चीजों के बहिष्कार का खतरा उठा कर इन बाबा जी लोगों को मीडिया क्या प्रचार करेगा शायद यही सोच कर ये बाबा लोग शांत रहतें है
तम्बाकू किसी रूप में भी नुक्सान दायक है जरूरत है प्रचार माध्यमों के द्वारा सतत विरोध के प्रचार कर मानसिकता में बदलाव लेन की जो एक जटिल प्रक्रिया है | इस देश में पता ही नहीं चलता है की किसी जन जागरण अभियान ( सरकारी ) का वास्तव में कितना प्रभाव या कुप्रभाव जनता पर पड़ता है चाहे सर्व सिक्षा अभियान हो या पोलियो उन्मूलन या एड्स विरोधी मुहीम सभी अभ्यनों से जाग्रति तो अवश्य आती है किंतु आदतों में दृढ़ता भी आ जाती है मिसाल के लिए एड्स विरोधी जागरूकता से ज्ञान तो बढ़ा किंतु एड्स के मरीज संख्या में वृद्धि होती जा रही है हालत उस नौसिखिये की है जो ट्राइल व एरर मेथोड़ से सबक सीखता है यहाँ हालत ठीक ऐसी ही है
सरकार को भूटान जसे देश से सीखना चाहिए जहाँ २००२ से ही तम्बाकू के किसी भी उत्पाद की बिक्री व प्रयोग पर पूरी तौर से रोक लगी हुई है यहाँ भी समग्र रूप से ऐसा ही प्रयास करना होगा |ऐसे नहीं कि चोर से कहें कि चोरी करो और शरीफ से कहें कि जागते रहों | २०० रूपयें कि फाइन से लोग २०० रूपयें दे कर आपके मुंह पर धुवां फूँक कर हँसेगें ऐसे लोगों कि कमी नहीं है इस देश में .... देख लीजियेगा सिगरेट बनने वाली कंपनियों के आगामी तिमाहीं परिणाम, उसमे पहले से वृद्धि ही नजर आने वाली है

बुधवार, 22 अक्तूबर 2008

चंद्रयान में एक चीज छूट गई

शीर्षक पढ़ कर चौंकिए नहीं , सही बात बता रहा हूँ हमारे देश में ऐसी गलतिया हो जाती हैं कि बाद में पछतावा होता है अभी अभी जब स्पेस अभियानों का इतिहास पढ़ रहा था तो पता चला कि रूस ने स्पेस कि शुरुवात की थी तो लाइका नामक कुतिया को भेजा था पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिए
इतना बड़ा देश , इतना बड़ा अभियान , ४०० करोड़ का बजट , चाँद की यात्रा और एक कुत्ता भी नहीं मिला इन वैगयानिकों को यही तो फर्क हो जाता है देश व विदेश का , इतना सुनहरा मौका था एक कुत्ता जो बॉम्बे में अपने साथियों के साथ भौंक रहा है लोगो पर भूंक रहा है दौडा रहा है सरकार सोच रही है कि अपनी गली का आमची मुम्बई का कुत्ता है खुल्ला घुमण दो कार्तिक में तो कुत्ते ऐसे भी भूंकते और काट लेते हैं किंतु अब तो हद हो गयी कुत्ते ने चैलेन्ज कर दिया चेन में बाँधोगे तो चैन से रहने नहीं दूँगा

क्या इस चंद्र अभियान में मुंबई के इस कुत्ते को सरकार नहीं भेज सकती थी बाद में कहना मत कि याद नहीं दिलाया था इतिहास कभी इस ग़लती को माफ़ नहीं करेगा

कहाँ गए पुराने प्रधान मंत्री

कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है कि देश कि राज नीति से तो हमारे गों कि राजनीति लाख गुने अच्छी है
कम से कम हर अच्छे बुरे काम कि प्रतिक्रिया पुराना प्रधान करता तो रहता है
पर बेडा गर्क हो देश कि राजनीति का यहाँ तो पुराना प्रधान मंत्री कुछ बोलता ही नहीं ,एक अरसा हो गया किसी पुराने प्रधान मंत्री का किसी भी विषय पर अपनी टिप्पणी दिए हुए वो तो भला हो यमराज का जो कुछ पुराने नेताओं का यमलोक का टिकेट कंफिर्म करतें रहतें है तो फार्मेलिटी के तौर पर कोई कोई भूतपूर्व प्रधानमंत्री दिख जाता है बोलते हुए सुन लिया जाता है कि अमुक जनसेवक नेता जी के चले जाने से राष्ट्र कि हानि हुई है इतना कहने के बाद वे पुराने लोगों के सामने ऐसे खरे रहतें है जैसे कह रहे हों "कभी तनहाइयों में भी हमारी याद आयेगी " कभी कभी किसी दिवंगत नेता की मूर्ती अनावरण या पुण्य तिथि को समाधिस्थल पर ये भूतपूर्व प्रधानमंत्री दिख जाते हैं तो ऐसा लगता है कि ये अपनी समाधी स्थल का ले आउट कल्पना में बना रहे हैं
ऐसा लोक तंत्र मुझे कहीं नहीं दिखता जहाँ भूतपूर्व प्रधान मंत्री जो अपने कार्य काल में इतनी बहुमुखी प्रतिभा को हो इतना सक्रिय हो कि १५-२० घंटे तक काम करता रहता हो फ़िर भी उसके गाल गुलाबी हों आँख शराबी हों ( अपवाद मनमोहन सिंह जी ही हैं जो प्रधान मंत्री बनने के बाद केवल मारीगोल्ड बिस्किट खा खा कर अपनी सेहत का और प्रोस्टेट ग्लैंड दोनों का सत्यानाश करा बैठे हैं पता नहीं भूतपूर्व हो जाने पर कसे दिखेगें और क्या बयां देंगे ,भविष्य ही जानता है )
अचानक भूतपूर्व होते ही राजनीति से थका हारा एक कोने पर पड़ा रहता है न तो कोई जिंदाबाद न कोई मुर्दाबाद ही सुने कैसे जिंदगी कटती है शोध का विषय है परमाणू डील के मुद्दे पर आदरणीय मनमोहन जी ने अटल जी को भीष्म पितामह कि संज्ञा देते हुए यह अपील कर डाली कि वही कुछ करें और पार्टी को समर्थन करें किंतु माननीय अटल जी ने भीष्म पितामह कि उपाधि पाते ही ऐसी चुप्पी साध ली है कि असली भीष्म भी शर्मा जाएँ जिन्होंने कौरवों का साथ दे कर शर सैया पर लेटना मुनासिब समझा ,यह भी नहीं कहा कि "मनमोहनजी ये अच्छी ... बात ... नहीं माना कि मैं कुंवारा हूँ लेकिन भीष्म कहना ये अच्छी ......बात नहीं
देवेगौडा , गुजराल अटलजी सभी मौन साधे बैठे विधवा ब्राह्मणी कि तरह चुप चाप बैठे हैं एक भूतपूर्व प्रधान मंत्री हैं जो बयान दे सकतें है लेकिन उनको कोई पूछता ही नही वो वी पी सिंह जी है जो अपना और अपने परिवार समेत किसी भी सरकार के समर्थन में रहतें है लेकिन उन्हें जीते जी लोगों ने जिन्दा फकीर ही बना डाला , राजा नहीं फ़कीर है , देश कि तकदीर है , इन मीडिया के लोगों ने उन्हें फ़कीर ही बना डाला तलाश है उन्हें अपने मकबरे की ....
चाहे चंद्रयान जाए या अश्वयान इन भूतपूर्व प्रधानमंत्रियों का इस तरह से अचानक मौन हो जाना लोकतंत्र के लिए अच्छी बात नहीं है इसके लिए जनादेश लाना ही होगा अटल जी ...कुल मिला कर आत्म निर्वासन का दंश भोग रहे इन बहादुर शाह जाफरों को चिरायु और जटायु होने की प्राथना इश्वर से करता हूँ की जैसे जटायु राज ने अपनी भूमिका निभाई इसी तरह से ये भी अपने पुराने मेधा का उपयोग राष्ट्र की आगामी पीढ़ी को मार्गदर्शन देनें में करें नहीं तो ये माना जाएगा की ये लोग केवल प्लेबैक सिंगर की तरह दूसरे के लिखे बयानों से ही अपने को सर्वज्ञानी के रूप में पेश करते रहे इसमे देवेगौडा जी अपवाद हैं .....

दोस्तों के नाम शायरी

मित्र या दोस्त जब तक आस्तीन के सौंप नहीं हो जाते तब तक बड़े ही प्यारे व हरदिल अजीज होते हैं कतिपय लाइनें जो मुझे गद्दार व बेवफा दोस्तों की याद दिला देती है उन लफ्जों का आनंद लें
मैंने पूछा सौंप से दोस्त बनोगे आप,
नहीं महाशय जहर में आप हमारे बाप|

हजारों मुश्किलें है दोस्तों से दूर रहने में ,
मगर एक फायदा है पीठ में खंजर नहीं लगता |
कहीं कच्चे फलों को संगबारी तोड़ लेतें है ,
कहीं फल सूख जातें है , कोई पत्थर नहीं लगता |

शुक्रवार, 10 अक्तूबर 2008

शाबास चिदंबरम जी

जब पुरा विश्व मंदी के दौर से गुजर रहा है तथा शेयर बाजार की हालत पतली हो चली है | तभी हमारे आदरणीय वित्त मंत्री जी जो मुद्रास्फीति की बढ़ती रफ़्तार को वैश्विक बताते हैं किंतु वैश्विक मंदी से भारतीय बाजार को उतना खतरा नहीं मानते हैं |उनका कल एक बयां आया कि भारतीय अर्थव्यस्था बहुत मजबूत है तथा निवेशकों को घबराने कि जरूरत नहीं है इसका परिणाम यह निकला कि आज सेंसेक्स ८०० अंक लुढ़क कर १०८७५ पर पहुँच गया लगता है वित्त मंत्री जी को यह गुमान हो गया था कि उनके बयानों से मार्केट गिरता उठता है |
साधो शेयर कि गति न्यारी , यहाँ का हाल विचित्र है जब अमेरिका कि संसद ने बैंकों कि मदद करने वाला प्रस्ताव ठुकराया था और अनिश्चतता का वातावरण बना हुआ था तब हमारे यहाँ शेयर बढ़ रहे थे जब आर्थिक पैकेज कि घोषणा हुई तब मार्केट गिर गया | फ़िर फिटे मुंह ऐसे वैसे बयां क्यों देते हो , मुद्रा स्फीति को संभालो शेयर मार्केट के जुआरियों को झुलाने दो इनसे जनता का भला नहीं होने वाला , विश्वास न हो तो इंडिया शाइनिंग का हश्र याद कर लीजिये | अच्छा यही होगा कि महंगी हो रही कीमतों पर ध्यान देंवे वित्त मंत्री जी इस पर आपके बयानों का उल्टा असर होता रहा है तो शेयर पर कैसे सीधा हो जाएगा , फ़िर भी आप बहादुर हैं जो बयानबाजी से बाज नहीं आ रहे हैं इतनी हिम्मत तो जार्ज बुश साहेब में भी नहीं है जो यह बयां देते हैं कि हाँ वितीय संकट है यदि आप होते तो कहते कि नहीं घबराने कि जरूरत नहीं है ये संकट चुटकियों में हल हो जायेगी क्यों कि सरकार इस पर नजर रखे हुए है , नजर न हो गई इश्क में डूबे हुए आशिक कि नीयत हो गई जिसे सब कुछ सुहाना लगता है अतः हे वित्त मंत्री जी बयां बंद कर कुछ काम करें यहाँ जो हो रहा है उस पर किसी का कोई वश नहीं है फ़िर आप कौन तुर्रम खान हो ....

गुरुवार, 9 अक्तूबर 2008

अमेरिका के ऊपर भारत


अमेरिका ने कहा है कि परमाणु डील से भारत से सम्बन्ध और बेहतर हो गयें है क्यों न हो मनमोहन जी ने कह दिया है कि पूरा भारत आपसे प्यार करता है पता नहीं कौन करता है कौन नहीं वैसे भी और भी गम है ज़माने में मुहब्बत के सिवा
आप चढ़े रहो बुश पर आगे देखा जाएगा

मंगलवार, 7 अक्तूबर 2008

संत बड़ा की आश्रम

आए दिन किसी न किसी संत महाराज की चर्चा अख़बारों के माध्यम से होती रहती है कुछ भव्य तो कुछ जघन्य ,हाल के दिनों में पंजाब यू । पी व गुजरात के संतों के आश्रमों की गतिविधियाँ सुर्खियों में हैं वस्तुतः ये आश्रम इन संतों के दौलतखाने हैं जिन्हें हम सब आश्रम व कुतिया समझाने की भूल कर बैठते हैं जिसका जितना बड़ा आश्रम जितने शहरों में आश्रम विदेशों में आश्रम वह उतने बड़े आशाराम यानि भक्तों की आश जगाने उन्हें लुभाने का कार्य आसानी से कर सकतें है | अब तो एक योगी जो आए दिन एक चीवर और एक लंगोटी तथा ५० रुपये की पादुका पहन कर लोगों को योगः चित वृति निरोधः का संदेश देते अनुलोम विलोम करते हैं मात्र १०० करोड़ की लागत से आश्रम तथा शोध संस्थान खोलने के लिए अलख जगाये हैं जिस दिन उनकी यह आशा पूरी हो जायेगी हनुमान जी को लड्डू चढाना पडेगा |ऐसे ऐसे वीतरागी संत जो पैसे को हाथ तक नहीं लगाते सिर्फ़ सोने व चांदी के सिंहासनों पर बैठ कर धवल धोती ओढ़ कर प्रवचन करतें है यदि उनके भव्य आश्रम न होते तो क्या उनकी कोई पहचान होती शायद नहीं , आज कल संत की पहचान उसके आश्रम व भंडारे तथा मालदार भक्तों के द्वारा ही होती है इसलिए आश्रम तो भव्य होना ही चाहिए ......
इसी बात पर मुझे एक कथा स्मरण आ रही है किसी राज्य में एक राजा ने सोचा की वह किसी संत से
दीक्षा ले फ़िर राजा के मन में ख्याल आया कि राजा को दीक्षा देने वाला संत का आश्रम भी भव्य होना चाहिए ताकि जनता को भी रश्क हो सके की राजा के गुरु काश्रम कितना भव्य है सो राजाने यह घोषणा कर दी की जो कोई संत आश्रम बनाना चाहे उसे राज्य की तरफ़ से सहायता दी जायेगी वह जितना जमीन चाहे उतना कब्जा कर ले व बता दे राज्य की तरफ़ से उसे आवश्यक मूलभूत सुबिधायें (infrastructure) प्रदान की जायेंगी फ़िर उसके बाद राजा उनमे से किसी भव्य आश्रम वाले संत से गुरुदीक्षा लेगें |जाहिर है माले मुफ्त दिले बेरहम की तर्ज पर तत्कालीन संतो के चेलों ने जमीं हथियाना शुरू कर दिया ऊँचे ऊँचे झंडे डंडे लगा कर राजा के लोग प्रगति की दैनिक समीक्षा उसी प्रकार कर रहे थे जैसे आज कल राज्य सरकार कानून व्यस्था की दैनिक समीक्षा करती हैं खैर ,राजा एक दिन बिना बताये गुप्त रूप से आश्रमों की भव्यता को ख़ुद जांचने जाता है तो पाता है कि एक पेड़ के नीचे एक संत ध्यान लगाये बैठा है राजा उनसे बोलता है कि हे महात्मन! आप ने आश्रम का निर्माण शुरू नहीं किया कहीं दिखाई नहीं दे रहा है ?
संत ने कहा मेरा आश्रम तो पहले से ही काफी भव्य बन कर तैयार है | राजा आश्चर्य में पड़ जाता है और कहता है कि जमीं तो आपने एलाट ही नहीं कराई फ़िर निर्माण कैसे हो गया नक्शा कहाँ पास हुआ !!!! इतने प्रश्नों को सुन कर संत बोले महाराज क्या जमीं एलाट करा कर दीवार खींचू, सारी दुनिया मेरा आश्रम है इसमे दीवार चला कर मैं इसे और छोटा कर दूँ इसमे कहाँ कि बुधिमानी है वैसे भी संत का काम बंधनों को काटना है न कि बंधनों में बंध जाना | शायद संत का इशारा वसुधैव कुटुम्बकं की और था |राजा को एहसास हो गया कि इस गुरु कि भव्यता तथा सोच कि विशालता अन्य गुरुओं से कहीं बहुत आगे है जो जमीन घेर कर बड़े आश्रमों को तैयार कराने में लगे है
क्या हमारी व आप कि सोच कभी इस तथ्य पर जायेगी कि इन बाबाओं महामंदालाधिशों के आश्रम अन्यायोपार्जित धन से बने हुएं है तथा इसमे अनाचार ही उपजेगा सदाचार कभी नहीं क्यों कि इन आश्रमों कि बुनियाद ही अन्यायोपार्जित धन व पूंजी से निर्मित है तथा इस में निवास कर रहे संत मंचों पर कुछ और हैं तथा असली में आश्रम के साम्राज्यवादी साशक मात्र हैं न कि साधक जो हम लोगों को तुच्छ साबित कर ग्लानि भर कर अपना उल्लू सीधा कर हमें मूंड रहे हैं
( सुधी पाठकों से क्षमा याचना सहित यदि संकेतों में उनके किसी गुरु का अपमान उन्हें प्रतीत हुआ हो लेख का आशय किसी व्यक्ति विशेष का अपमान करना कदापि नहीं है )

शुक्रवार, 3 अक्तूबर 2008

लोक तंत्र के इन गुनाहगारों को कौन सजा दी जाए

एक ख़बर के मुताबिक दिल्ली के चुनाव के लिए मतदाताओं की सूची और फोटो तैयार कराने में ९ लाख मतदाताओं केनाम या फोटो में गडबडी मिली है साल भर से काम कर रहे इन नाकारा कर्मचारियों के कारण हो सकता है ये गडबडी अंत तक ठीक न होपाये , और लोग मताधिकार से वंचित हो जायें
अधिकारियों ने बड़े ही मासूमियत से उत्तर दिया है कि प्रतिशत के हिसाब से ये गडबडियां बहुत कम हैं अधिकारियों को हर काम में प्रतिशत की दृष्टी की आदत पड़ी हुई है चूँकि कमीशन का प्रतिशत पहले से ही फिक्स होगा इन फोटो कंपनियों और डाटा एंट्री करने वाले लोगों से, इस लिए इन गड़बडियों की इतनी बड़ी संख्या ९ लाख इन्हे प्रतिशत में २ या ३ % दिखाई दे रहा है चुनाव आयोग जो समय समय पर तुगलकी नीतियाँ बना कर यह आभास करना चाहता है की जैसे लोकतंत्र का वही पहरेदार हो ( खैर इस पर अलग से किसी पोस्ट पर चर्चा करूंगा ) उसी के नाक के नीचे इतनी गलती हो रही है और वह खामोश है
ताज्जुब की बात ये है की जो काम कराने के लिए साल भर का समय था उसे प्रति कर्मचारी मात्र १५०० मतदाता के आंकडो को फोटो को दुरुस्त कराने का औसत कार्य्य सौंपा गया था पर क्या वर्क कल्चर है या कहें एग्रीकल्चर है कि इन नालायकों ने इतने लोगों को वोट जैसे अधिकार से वंचित करने का कार्य कर डाला
क्या सरकारी कर्मचारियों की एक लापरवाह और निष्ठाहीन फौज इन लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को जटिल और दुर्लभ नहीं बना रही है?

इस देश में वोटर लिस्ट की गड़बड़ी या फोटो आईडी कार्ड की अनुपलब्धता की वजह से एक भी नागरिक को मतदान के अधिकार से क्यों वंचित होना चाहिए? वह अपने इस बुनियादी अधिकार का इस्तेमाल कर सके, इसे सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी किस पर है? यदि कोई कर्मचारी, अधिकारी और विभाग इसके लिए नामजद है, तो ऐसी चूकों के लिए उनके खिलाफ भी कार्रवाई होनी चाहिए। लोकतंत्र को सिर्फ अशिक्षित नागरिकों, बूथ लूटने वालों और धनपतियों से ही खतरा नहीं है, इधर से भी है।

मोटी मलाई पतली कर दी सरकार ने


सरकार ने आज क्रीमी लेयर की वार्षिक आय -सीमा २.५० लाख रु से बढ़ा कर ४.५० लाख रु कर दिया ओ बी सी के एक बड़े प्रभावशाली वर्ग को खुश कर वोट बैंक बढ़ने की इस कवायद में असली गरीब शोषित पिछडे जातियों का कितना नुक्सान होगा इसकी गणना शायद ऊँची पहुँच वाले ओ बी सी ने नहीं की होगी और न ही इस पर कोई पार्टी बयान ही देने वाली क्यों कि सामाजिक न्याय की बात करने वाले धृतराष्ट्र अपने सगे सम्बन्धियों का हित पहले देखेंगे | तथा शकुनी ही सियासत कर रहे हैं
सुप्रीम कोर्ट के द्वारा क्रीमी लेयर को आरक्षण की सुविधा न दिए जाने से वंचित लोगों को पीछे के रास्ते से आजीवन लाभ दिलाने के नापाक इरादों की
नाजायज औलाद है यह आय सीमा में वृद्धि ...
यह तर्क दिया जा सकता है की छठे वेतनमान के कारन हुई वृद्धि के फलस्वरूप इसमे वृद्धि होनी थी लेकिन सरकार को समझाना होगा की ४.५ लाख वार्षिक की सीमा में कितने वास्तविक जरूरतमंद (needy ) लोग हैं और कितने लालची (greedy ) ४.५ लाख वाली सीमा का व्यक्ति जो शायद अपनी जाति सूचक विशेषण या उपमान को भी अपने नाम के साथ प्रयुक्त न कर रहा हो लेकिन क्रीमी लेअर का लाभ उस गंगू तेली के लड़के से अवश्य छीनना चाहेगा क्योंकि वह क्रीमी लेअर का नहीं है कोई मुकाबला है गंगू तेली के लड़के तथा सरोज और भारद्वाज (राजभर जाति ) के उपमानों वाले इन तथाकथित ओ बी सी महाजनों से .....
एक कहावत है बिल्ली कभी गाय भैंस नहीं पालती लेकिन खाती मलाई ही है सरकार की इस घोषणा ने उसी तरह इन पिज्जा बर्गर परजीवी मलाईदार ओ बी सी ने मलाई की परत को ही पतला कर दिया है और शोषितों वंचितों के हिस्से का दूध डकारने का काम कर रहें है यह सामाजिक न्याय नहीं, मत्स्य न्याय है
आख़िर क्यों नहीं सरकार एग्जिट पालिसी बनाती है जिसके द्वारा तथाकथित पिछडों दलितों को आरक्षण की एक बार सुविधा ले लेने के बाद बाहर का रास्ता दिखाया जाय ताकि लाइन में लगा पप्पू और गंगू भी पास हो जायें और इन चेहरों पर भी मुस्कराहट आ सके