रविवार, 25 जनवरी 2009

मजबूत दिल के साथ आओ प्रधान मंत्री जी


जल्दी स्वस्थ होने की कामना है आप मजबूत दिल से राज करें
और मजबूत इरादों से देशवासियों की तमन्नाओं को पूरा करें
हमें मालूम नहीं था कि रोग गंभीर था स्वस्थ हो करआप देश के अमन व चैन के दुश्मनों पर
टूट पड़े , और एक दृढ़ इच्छाशक्ति वाले कर्मठ प्रधान मंत्री के रूप में जाने जायें , यही कामना है
बड़बोले प्रधानमंत्री कई देखे हैं आप से उम्मीद है कि पंजाब के वीरों की तरह आप शत्रुओं टूट पड़े
get well soon

मंगलवार, 20 जनवरी 2009

ओबामा व भारत एक अबूझ पहेली

अमेरिकी विदेश नीति पर केंद्रित पत्रिका 'फॉरेन अफेयर्स' को दिए गए इंटरव्यू में बराक ओबामा ने अपनी दक्षिण एशियाई नीति का खुलासा किया है। इसके मुताबिक पाकिस्तान सरकार अफगानिस्तान से सटी अपनी सीमा की निगरानी पर अपना पूरा ध्यान तभी दे पाएगी, जब वह भारत से सटी अपनी पूर्वी सीमा की सुरक्षा को लेकर आश्वस्त हो। ओबामा इसके लिए कश्मीर मसले का समाधान जरूरी मानते हैं और इस काम में अपनी तरफ से हर संभव सहायता के लिए तैयार हैं।

यह एक खतरनाक प्रस्थापना है और इसमें पाकिस्तान सरकार का प्रॉपेगैंडा ध्वनित होता है। दरअसल, कश्मीर समस्या की आड़ लेकर पाकिस्तान सरकार अभी तक आतंकवाद को दिए जाने वाले अपने खुले संरक्षण को जायज ठहराती आई है। 26 नवंबर को मुंबई पर हुआ आतंकवादी हमला यह साबित करने के लिए काफी है कि अमेरिका के डेमैक्रैटिक एस्टैब्लिशमंट को अब भारत-पाकिस्तान संबंधों को कश्मीर के लेंस से देखने की परंपरा छोड़नी होगी।

ओबामा को अमेरिकी इतिहास में सबसे ज्यादा ग्लोबलाइजेशन विरोधी राष्ट्रपति के रूप में देखा जा रहा है। बेरोजगारी की जैसी आंधी अमेरिका में चल रही है, उसमें नौकरियां बाहर न जाने देने की मजबूरी भी उनके सामने रहेगी। लेकिन अमेरिकी कंपनियों को अपनी चीजें और सेवाएं अगर ग्लोबल होड़ में टिकानी हैं, तो महंगे अमेरिकी श्रम का विकल्प उन्हें खोजना ही पड़ेगा।

ओबामा प्रशासन का रवैया आउटसोर्सिन्ग के बारे में चाहे जो भी हो, लेकिन तय है कि अगर अमेरिका ने बंद दरवाजे की नीति अपनानी शुरू की, तो यह प्रक्रिया पूरी दुनिया में चल पड़ेगी। विदेशी बाजारों पर निर्भरता दुनिया के और किसी भी देश से ज्यादा अमेरिका की समस्या है, लिहाजा रोजगार बचाने की उनकी मुहिम वहां बेरोजगारी के और भी बड़े खतरे का सबब बन सकती है।

संक्षेप में कहें तो अमेरिका का अगला प्रशासन भारत के लिए अभी एक बंद किताब की तरह है। किसी अच्छी या बुरी धारणा से शुरू करने की बजाय इसके पन्ने पलटकर ही इसके बारे में कोई राय बनाना ठीक रहेगा।

टाइम्स ऑफ़ इंडिया की ख़बर पर आधारित इस लेख से तो लगता है कि प्रणव बाबु को विक्स कि गोली खा खा कर अभी बोलना जारी रखना होगा

ओबामा केवल रंग बदला है दिल थोड़े !!!


ओबामा ओबामा का शोर सुनकर व कुछ पाश्चात्य मुखी भद्रजन ऐसे प्रसन्न हो रहे हैं जैसे कोई नए इसा मसीह का उदय हो गया है इसके पूर्व भी कई राष्ट्रपतियों की ताजपोशी के बारे में पढ़ा गया है लेकिन जैसा शोर शराबा इन दिनों दुनिया में व भारत में हो रहा है उसका कारण सिवाय राष्ट्रपति के काले रंग के और नजर नहीं आता
वैश्विक मंदी व अर्थव्यवस्था संकटग्रस्त होने पर न तो ओबामा के पास कोई अलादीन का चिराग है न ही रूजवेल्ट जैसी कोई न्यू डील की पॉलिसी ही तो इतना इतराने की क्या जरूरत है
जिनके भाषण प्रभावशाली हो उनकी नीतियाँ भी उसी प्रकार की लोकप्रिय हों यह तो भारतीय नेतृत्व के शिखर पुरुषों के उदाहरणों से सिखा जा सकता है हमने ऐसे मृदुभाषी व जोशीले भाषणों का बाद में उल्टा असर यही देखा है की हम जब उनको याद करते हैं तो कहते है की फलां नेता जी का भाषण सुनने इतने लोग इकठे हुए बाद में उन्होंने क्या किया यह किसी को याद नही चाहे वो सत्ता पक्ष में रहे हों चाहे विपक्ष में
माना कि ओबामा बिना जातीय समीकरण के बिना आरक्षण के लाभ के, बिना यह घोषणा किए कि व दलित व शोषित समाज के हैं , सहानुभूति बटोरे बगैर सर्वोच्च पद पर पहुँच गए हैं
लेकिन भारत व एशिया के मामलों में ओबामा कि कोई चेंज कि पालिसी होगी ऐसा मुझे नहीं लगता
विश्वास न हो तो कुछ दिनों के बाद वो इराक का दौरा कर ले वहां फूलो कि वर्षा नहीं होने वाली
पाकिस्तान के प्रति नीतियों में कोई बदलाव के आसार नजर नहीं आते
काले रंग कि कोंडालीजा राईस हो चाहे गोरी सुघड़ देहयष्टि की धनी हिलेरी क्लिंटन मुझे तो दोनों के बयानों में कोई चेंज (परिवर्तन ) नहीं दिख रहा तो किस बात का चेंज
अमेरिकी बन्दर चाहे काला हो या लाल (सफ़ेद) घुड़की दोनों देते है भारतीय हितों का नुकसान दोनों करते हैं अतः ज्यादा इतराने की जरूरत नहीं
हमारे प्रणव बाबू को ऐसे ही चिल्ला चिल्ला कर पकिस्तान को कोसना पड़ेगा फ़िर क्लिंटन से बात कर चुप होना पड़ेगा
ओबामा हो या ओसामा किसी की प्रशस्ति गान से बात नही बनने वाली अतः हे संकर प्रजाति के नेता उठो व कुछ करो देश के लोग तुम्हे देख रहे हैं ओबामा व मिशेल को नहीं

शुक्रवार, 16 जनवरी 2009

शिक्षा के लिए कुंवारेपन की बोली सिर्फ़ १८ करोड़


मेरी नजर में अब तक अमेरिका की तस्वीर एक सुशिक्षित व सभ्य समाज की थी जहाँ उच्च शिक्षा के लिए दुनिया भर से लोग जाते हैं लेकिन उच्च शिक्षा के लिए किसी छात्रा को अपनी virginity कौमार्यता बोली लगनी पड़े व अमेरिका जैसे देश में रेडियो पर प्रसारित ख़बर सुन कर १०००० लोग बोली लगाये तथा यह बोली १८ करोड़ तक पहुँच जाए एक आश्चर्य ही है
कैलिफोर्निया के सैन डियागो की नताली देलन ने पहली बार जब सितम्बर २००८ में अपने कुवारेपन की बोली लगे तो सबसे पहली बार एक करोड़ सत्रह लाख रुपये की बोली लगी जो बढ़ते बढ़ते १८ करोड़ तक पहुँच गई अभी उसे और बड़ी बोली का इन्तेजार है
नताली बोली से प्राप्त धन का उपयोग फॅमिली एंड मेरिज थेरेपी की उच्च शिक्षा में लगना चाहती है
अब वह इस शिक्षा से क्या ज्ञान हासिल कर समाज को देगी यह तो समय ही बताएगा लेकिन ये बात तो तय हो गई की कुंवारेपन को लेकर अमेरिका में उसी प्रकार की जिज्ञासा है जैसी आदम व एव को थी |
लेकिन यह तो जरूर है कि नताली टाप करेगी क्योंकि अध्यापक तो ऐसे ही नंबर थोक में दे देंगे इस होनहार क्षात्रा को जो अपने कुनारेपन को सिद्ध करने के लिए कोई भी टेस्ट कराने के लिए तैयार भी है

क्या अमेरिका में शिक्षा के लिए ये भी करना पड़ता है मुझे तो अब कोई अमेरिकी शिक्षा प्राप्त व्यक्ति के चरित्र पर शंका होने लगी है क्या इतनी मंहगी शिक्षा है लानत है ऐसे देश पर जो कंपनियों के लिए बेल आउट पॅकेज दे सकता है मुशर्रफ़ को मदद कर सकता है वहां एक अबला को अपनी उच्च शिक्षा के लिए पहले तो इतना त्याग कर
गुह्यतिगुह्य कीमती वस्तु की रक्षा की फ़िर समय आने पर उसे नीलामी के लिए बाजार में बिड की उसे कन्या विद्या धन जैसी स्कीम से लाभ नहीं दे सकती अमर सिंह को वहां जा कर ओबामा को यह बात बतानी चाहिए और उस कन्या के साथ फोटो भी खिंचा लेनी चाहिए










रविवार, 11 जनवरी 2009

क्या टाप क्लास के नेता ख़त्म हो चुके हैं ?


जब मैं अपने देश के बारे में यह पड़ता हूँ कि वैज्ञानिक
टाप क्लास के हैं सुपर कंप्युटर टाप है फलां व्यक्ति टाप क्लास का है तो मेरे मन में ख्याल आता है कि क्या हमारे वैज्ञानिक आज के नेताओं के दिमाग में कोई ऐसा रसायन दाल देते जिससे इनकी सोचने समझाने कि शक्ति देश के प्रत्ति हो जाती| समाजवादी पार्टी कि लिस्ट में एक से एक रत्न आगामी चुनाव में जन प्रतिनिधि कि आस लगाये बैठे हैं ददुआ के भाई बाल कुमार , आर के पटेल , अशोक चंदेल , संजय दत्त या मान्यता दत्त यही हाल आपनी ब स पा का है खैर ये पार्टियां अपने को ऐसी वैतरणी पार कराने वाली परम पावन सत्ता मानती हैं कि हर डाकू चोर खुनी दागी अभागी
सब पार्टी ज्वाइन करते ही वाल्मीकि व अजामिल कि श्रेणी में आ जाते हैं | अभी यू पी के मंत्री ने फ़रमाया कि गांधी व तिलक भी अपराधी थे तो आज के राजनितिक आपराधियों को टिकट देना कोई ग़लत नहीं है

आख़िर जनता के पास विकल्प क्या है लेकिन क्या यह सच नहीं है कि जनता भी ऐसे नेताओं को पसंद करती है जो इनके ग़लत कामो को दबंगई व गुंडई से करा दे , जिससे मिलने के पहले बन्दूक धारियों से व गुंडा तत्वों को अपना परिचय देना पड़े , आज कल ऐसे ही विधायक व एम् पी चुनना हम पसंद करतें है ताकि हमारी शान बनी रहे
क्या यह सही नहीं है कि जिन लोगो के भरोसे हम अपने मासूम बच्चो बच्चियों को एक दिन के लिए नहीं छोड़ सकते ऐसे ही थर्ड क्लास के लोगों को चुन कर हम पुरा देश प्रदेश वर्षो के लिए सौंप देते हैं
टाप क्लास के नेता प्रतिनिधि के मामले में हम कब वर्ड फेम हासिल करेंगे ?????