गुरुवार, 23 जुलाई 2009

गे पर इतनी है तौबा क्यों

होमोसेक्शुऐलिटी के खिलाफ जो सबसे बड़ा आरोप है, वह यह कि यह अननैचरल है। ऊपरी तौर पर यह आरोप सही लगता है क्योंकि मनुष्य ही नहीं, बाकी जीव-जंतुओं में भी सृष्टि ने नर और मादा अलग-अलग बनाए हैं उनके शरीर अलग-अलग हैं, उनके सेक्शुअल अंग अलग-अलग हैं। वे एक-दूसरे के संपर्क में आने पर उत्तेजित होते हैं और एक-दूसरे को संतुष्ट करते हैं। और ऐसा करने में नेचर (या भगवान अगर आप आस्तिक हैं तो) का सबसे बड़ा मकसद सृष्टि को कायम रखना है।

अगर स्त्री-पुरुष में सेक्स ही नैचरल है और जो यह नहीं करता, वह अननैचरल और मानसिक तौर पर बीमार है तो फिर ये सारे ब्रह्मचारी क्या हैं ? वे लोग जो सेक्स से ही दूर रहते हैं (या दूर रहने का ढोंग करते हैं), उन्हें तो हमारा समाज पूजता है, उनकी चरणसेवा करता है, उनके गुणगान करता है। तब किसी को याद नहीं आता कि ये लोग प्रकृति के नियमों के खिलाफ काम कर रहे हैं। यह कैसा न्याय है कि ब्रह्मचारियों के अननैचरल बिहैवियर की हम पूजा करते हैं और होमोसेक्शुल्स के अप्राकृतिक व्यवहार की निंदा।
मजे की बात है कि धार्मिक संतो ने सबसे पहले इसका jordar विरोध किया है जैसे उनके मठों पर समलिंगियों ने हमला बोल दिया है इस कानून के आने से मठो के अस्तित्व पर क्यों खतरा लग रहा है ????? समाज को ही निर्णय लेने दे ,,कानूनी मान्यता मिल जाने मात्र से समाज इसे स्वीकार कर ले गा ???

अगर आप शादीशुदा हैं तो क्या आप नेचर के नियमों का पालन कर रहे हैं? आखिर किन कुत्ते-बिल्लियों में शादी होती है? किन मछलियों और मेढकों में एक ही पति या पत्नी से बंधे रहने की अनिवार्यता है? नहीं है। तो इसका मतलब यही हुआ कि शादी करके हम नेचर के नियम को तोड़ रहे हैं। लेकिन क्या हम उसे गलत मानते हैं? क्या शादी करने वाले को नीची नज़रों से देखते हैं?

मैं नहीं कह रहा कि शादी गलत है। समाज और परिवार के विकास में विवाह की ज़रूरत है और शायद आगे भी रहेगी। लेकिन उससे यह साबित नहीं हो जाता कि यह नैचरल है। ठीक वैसे ही जैसे कि हमारा कपड़े पहनना नैचरल नहीं है, गुफाओं की जगह एयरकंडिशंड घरों में रहना नैचरल नहीं है, पैदल चलने के बजाय कार आ बस में चलना नैचरल नहीं है। यानी हम ऐसे बहुत से काम करते हैं जो नैचरल नहीं है। अपनी इच्छा और सुविधा के लिए हमने नेचर के नियमों को तोड़ा है, उसके उलटे जाकर काम किया है और आगे भी करेंगे।

कहने का मतलब यह कि अगर कोई नेचर के खिलाफ काम कर रहा है तो हम उसे गलत नहीं कह सकते। जैसे कोई ब्रह्मचारी सेक्स से दूर रहना चाहता तो मैं कौन होता हूं जो उसे कहूं कि नहीं भाई, तुझे ऐसा नहीं करना चाहिए। वैसे ही अगर कोई पुरुष किसी पुरुष के साथ प्यार या सहवास कर रहा है, तब भी मेरा कोई हक नहीं बनता कि मैं उसे रोकूं कि तू गलत कर रहा है। न मेरा न आपका।

होमोसेक्शुऐलिटी पर एक आरोप यह भी है कि यह प्रवृत्ति भारतीय रुझानों के खिलाफ है और पश्चिम से इंपोर्टिड है। इस शिकायत के दो हिस्से हैं। पहले भारतीय परंपरा की बात करें तो यह कहना बहुत मुश्किल है कि भारत में यह कबसे है और कितनी व्यापक है क्योंकि आम तौर पर लोग अपना यह रुझान उजागर नहीं करते। लेकिन भारतीय यौन दर्शन की दो महत्वपूर्ण विरासतों कामसूत्र और खजुराहो की मूर्तियां इस बात की गवाह हैं कि समलैंगिकता हमारे देश के लिए कोई अनूठी अवधारणा नहीं है।
फ़िर ये हाय तौबा क्यों / भारतीय संस्कृति व समाज इतना बोल्ड है कि ख़ुद ही इसका इलाज ढूंढ लेगा


नव भारत से साभार

शुक्रवार, 10 जुलाई 2009

जय हो एस सी तूने लाज रख ली

आज सुप्रीम कोर्ट का एक महत्व पूर्ण फैसला आया है जिसमे उसने यह कह कर मूर्ती वाले मामले में कोई रोक लगाने से इनकार कर दिया है क्योंकि यह कैविनेट से पास है यदि कोर्ट की भाषा उधृत करें तो " if it has been approved by government , this court can not interfere । माननीय प्रधान न्यायाधीश महोदय की अध्यक्षता वाली पीठ ने रिट पर status que लगाने से इनकार कर दिया
मैं न तो विधि का ज्ञाता हूँ और न ही इसके बारे में ज्यादा पढ़ता ही हूँ लेकिन कुछेक फैसलों के बारे में मेरा माथा चकराता है कि क्या ऐसा भी होता है कि न्यायिक सक्रियता के इतने शोर शराबे में कुछ राजनितिक मामल्लों में सर्वोच्च संस्था कभी कभी इतनी तेजी दिखाती है मानो फलां मामले में दो चार दिनों में ही आर पार का फैसला हो जाएगा फ़िर सी बी आई को लताड़ पड़ती है कि उसने चार्ज शीट ही लचर बनाई और मामला फुस्स

भाई दिनेश राय द्विवेदी जैसे लोग इस बात को बेहतर ढंग से बता सकतें है कि क्या कैबिनेट से सार्वजनिक धन
के दुरुपयोग के या जन कल्याणकारी न होने के दावों को इस आधार पर कि वह कैबिनेट से duly pass है कोर्ट कोई एक्शन नहीं नहीं ले सकती यदि ऐसा है तो विगत कई एतिहासिक फैसलों में जहाँ कोर्ट ने सरकार के फसलों पर रोक लगाई थी क्या वे सभी कैबिनेट से पास नहीं हुए थे क्या ???
आज के निर्णय के बाद ऐसा लगता है कि कैबिनेट ही सर्वोच्च है मैंने सपना देखा है कि उसी पार्क में दिल्ली के कुछ और महानुभावों कि मूर्तियाँ लगाने का फैसला कैबिनेट ने ले लिया है तथा शीघ्र ही इन महानुभावों कि मूर्तियाँ लगेंगी तथा यू पी की राजधानी चिकमंगलूर करने का भी फैसला भी जल्द ही कैबिनेट की आगामी बैठक में पास होगा जिससे सर्व समाज के लोगों के लिए इसे खाली कर के पार्क में ११ लाख हाथियों की मूर्तियाँ लगाई जा सके ताकि राज्य के हर दस आदमी के हिस्से में एक हाथी की मूर्ति आ सके
हे प्रभु इन्हे माफ़ करना क्योंकि वे सब कुछ जानते है की उन्होंने क्या किया है