tag:blogger.com,1999:blog-5506822540667832859.post6472807719696896804..comments2023-10-31T06:08:48.637-07:00Comments on क्या कहूँ: सेमीनार आदि को सफल बनाने के नुस्खे एक शोधarun prakashhttp://www.blogger.com/profile/11575067283732765247noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-5506822540667832859.post-52179084139152089222009-11-08T11:20:27.544-08:002009-11-08T11:20:27.544-08:002009/11/9 हिन्दुस्तानी एकेडेमी
आदरणीय महोदय,...2009/11/9 हिन्दुस्तानी एकेडेमी <br /><br /> आदरणीय महोदय,<br /><br /> इलाहाबाद में २३-२४ अक्टूबर २००९ को आयोजित संगोष्ठी में आपका आना हमारे लिए बहुत सुखद रहा। प्रबन्धन संबन्धी कुछ न्यूनताओं के बावजूद यह संगोष्ठी अपने उद्देश्यों को पूरा करने में सफल रही। इसमें आपके योगदान के लिए हिन्दुस्तानी एकेडेमी आभारी है। इस सहयोग हेतु आपको बहुत-बहुत धन्यवाद।<br /><br /> इस संगोष्ठी में तमाम लोगों ने खुलकर अपने विचार व्यक्त किए और आभासी दुनिया का सच मूर्त रूप में हमारे प्रत्यक्ष घटित हुआ। गोष्ठी के बाद भी इसपर घनघोर चर्चा अन्तर्जाल पर छायी रही। जो यहाँ से लौटकर गये उन्होंने बेबाकी से अपनी पोस्टों में अपने अनुभव साझा किए। जो न आ सके उन्होंने भी बढ़-चढ़कर ‘आँखो-देखा हाल’ लिखने से लेकर अन्दर की बात तक छाप डाली। आपत्तियों और समर्थन के स्वर बराबर शक्ति से मुखरित हुए। हम सभी चर्चाकारों के प्रति भी कृतज्ञ हैं। किसी एक आयोजन की इतने व्यापक स्तर पर चर्चा हुई है कि इसका एक रिकॉर्ड बन गया हो तो आश्चर्य नहीं।<br /><br /> हिन्दुस्तानी एकेडेमी ने वर्धा वि.वि. के सौजन्य से इस कार्यक्रम का आयोजन किया था। इस संगोष्ठी में जो बातें उभर कर आयी हैं, अब उनका एक समुचित रिकार्ड तैयार करने की योजना है। सभी प्रतिभागियों द्वारा व्यक्त विचारों को संकलित करके उनका एक स्मारिका के रूप में प्रकाशन किया जाना प्रस्तावित है। यद्यपि हमारे पास अधिकांश वार्ताएं रिकार्ड करके रखी गयी हैं लेकिन यह उचित जान पड़ता है कि प्रिण्ट माध्यम में प्रकाशन के लिए सामग्री तैयार करने में स्वयं वार्ताकार ही अपने वक्तव्य के परिमार्जन और संपादन का कार्य करे। इससे पूरी बात सम्यक रूप से प्रकट भी हो जाएगी, कुछ जरुरी और अनकहे अंश जोड़े भी जा सकेंगे और मूल आशय में किसी प्रकार के परिवर्तन की गुन्जाइश भी नहीं रहेगी।<br /><br /> अतः आपसे अनुरोध है कि यह संदेश प्राप्त करने के तत्काल बाद आप अपनी वार्ता का आलेख मेल के माध्यम से एकेडेमी को उपलब्ध कराने का कष्ट करें ताकि एक संग्रहणीय स्मारिका का प्रकाशन शीघ्र किया जा सके। यदि आप चाहें तो आपकी वार्ता के बाद जो प्रश्नोत्तर हुए उनका संक्षिप्त विवरण और अपना मन्तव्य भी अलग से दे सकते हैं। इसका प्रयोग सम्पादक द्वारा यथास्थान किया जा सकता है।<br /><br /> आशा है आप इस प्रकाशन योजना को पूरा करने में सक्रिय सहयोग प्रदान करेंगे। सधन्यवाद।<br /><br /> (राम केवल)<br /><br /> सचिव, हिन्दुस्तानी एकेडेमी<br /> १२-डी, कमला नेहरू मार्ग, इलाहाबाद-२<br /><br /> नोट: निम्न प्रतिभागियों का ई-मेल पता कहीं खो गया है। खोजने पर नहीं मिला। कृपया इस संदेश को इनके पते पर फ़ॉरवर्ड कर दें।<br /><br /> 1. आभा मिश्रा- मुम्बई<br /> 2. अरुण प्रकाश द्विवेदी- वाराणसी<br /> 3. संजय तिवारी-दिल्ली (विस्फ़ोट)<br /> 4. हेमन्त कुमार- वाराणसी<br /> 5. ओम- लखनऊप्रवीण त्रिवेदीhttps://www.blogger.com/profile/02126789872105792906noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5506822540667832859.post-39322706342888633822009-10-30T19:46:05.283-07:002009-10-30T19:46:05.283-07:00प्रयाग संगोष्ठी के दौरान हुई तमाम स्फुट चर्चाओं मे...प्रयाग संगोष्ठी के दौरान हुई तमाम स्फुट चर्चाओं में से एक पर आलेख देकर आप ने वादा निभाया है। आभार।<br /><br />सिद्धार्थ की बात पर ध्यान दें। अध्यक्षों और संचालकों की गरिमा को ध्यान में रखते हुए आप ने अपना जो आलेख छिपाए रखा और नहीं पढ़ा, उसे भेज दीजिए। अब मुझे समझ में आया कि आप तकिया को हमेशा क्यों दबाए रखे! आलेख छिपाने की उससे अच्छी जगह तो हो ही नहीं सकती।<br /><br />बाकी चर्चाओं पर भी लेखों की प्रतीक्षा है। इलाहाबाद डॉकुमेण्ट जो बनाना है। जब इतने मूर्धन्य विद्वान एक जगह इकठ्ठे होते हैं तो जटिल विमर्श होते हैं। सरलीकरण के आदी निम्न सोच वालों को सब हंसी ठठ्ठा,मौज, मस्ती वगैरह जैसा लगता है। यहाँ तक तो ठीक था लेकिन हुआँ हुआँ कर समूचे ब्लॉग जगत में हल्ला काटना हद है! मुझे उम्मीद है कि आप की लेखमाला उनकी बेहूदगियों को आइना दिखाएगी - देखो, तुम लोग कितने बुद्धिहीन लुच्चे हो !गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5506822540667832859.post-7865772552421913552009-10-30T17:33:11.858-07:002009-10-30T17:33:11.858-07:00आप महान ही नहीं महानतम हैं! चिरकुटई पर आपका शो...आप महान ही नहीं महानतम हैं! चिरकुटई पर आपका शोध कालजयीपन लिए हैं !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5506822540667832859.post-79427173404251121632009-10-30T11:02:39.720-07:002009-10-30T11:02:39.720-07:00मैं समझ रहा हूँ कि आप शोध बताकर जिसकी मार्केटिंग क...मैं समझ रहा हूँ कि आप शोध बताकर जिसकी मार्केटिंग करना चाह रहे हैं वह आपके लम्बे अनुभव से जुटायी पूँजी का माल है। लगता है काफी दिनों से सेमिनार में शिरकत करने का तजुर्बा रहा है आपको। <br /><br />कहीं इसीलिए तो आपने इलाहाबाद आकर भी माइक पर बोलने का काम टाले रखा? आज अपने कैमरे की मेमोरी चिप को कई बार चेक किया लेकिन आपकी कोई बोलती तस्वीर नहीं मिली।<br /><br />मुझे लगता है कि आप पक्के तौर पर ऐसे धुरन्धर लिक्खाड़ हैं जो बोलने से परहेज करता है। अनुरोध है कि अपना सेमिनार वाला आलेख मुझे भेंज दीजिए, स्मारिका में छापना होगा।सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठीhttps://www.blogger.com/profile/04825484506335597800noreply@blogger.com