मंगलवार, 9 अगस्त 2016

shukriya

आज बहुत दिनों बाद ब्लॉग पर आया तो सब कुछ भूल गया यह पंक्तिया केवल हेलो हेलो माइक टेस्टिंग टाइप की  है 

abhilasha



 सेवा करनी है तो घड़ी मत देख
प्रसाद लेना है तो स्वाद मत देख
सत्संग सुनाना है तो जगह  देख
  विनती करनी है तो स्वार्थ मत देख

 

रविवार, 26 मई 2013

एक खुला पत्र मार्निंग वाक करने वालो के नाम

एक पत्र सवेरे सवेरे टहलने वालो के नाम
     आप सुबह उठते हो अपना आरोग्य बनाने के लिए लोगो की चहारदिवारी से झाँकती हुई फूलो की कलियों को सवेरे सवेरे ही तोड़ कर उनकी नृशंस हत्या करते हो अपनी दीवारों के भीतर के फूल को निहार कर सुख पाते हो और दूसरे के घरो में ताक झांक कर उसी किस्म के फूलो को तोड़ कर इकट्ठा करते हो फिर जब तुम्हारा पोलिथिन भर जाता है तो किसी मंदिर पर देवप्रतिमा पर उसे उड़ेल आते हो कुछ प्रश्नों के जबाब चाहिए तुमसे
१-क्या  देवता ने तुम्हे डेपुट किया है इस अपहरण व नृशंस भ्रूण ह्त्या के लिए जो उसे प्रसन्न करने के लिए कलियों व फूलो को तोड़ देते हो ध्यान रहे वैज्ञानिक दृष्टिकोण से फूल व कलिया पौधे का जनन तंत्र है
२ इस कृत्य के पश्चात तुम भ्रूण ह्त्या , बलात्कार, कन्या अपहरण यौनिक हिंसा का विरोध किस मुह से करते हो वह मुह दिखाओ जिसकी नैतिकता को मेरा कुत्ता सूंघ कर प्रमाणित करे
३ अपना धन तन तनया और दारा (पत्नी,से आशय है दारा सिंह से नहीं ) और बगीचे के फूल सुरक्षित रहे चहारदीवारी के भीतर और दूसरे के घरो की कोई चीज चहारदीवारी से दिख जाए तो आप ललचा जाते हो आपकी आँख में वासना की लालिमा छा जाती है यदि सवेरे सवेरे आपको कली व फूल के अलावा दूसरे की तनया या पत्नी अकेले दिख जाए तो मेरा दावा है आपके वही हाथ कसमसाते होगे आपके मनोमस्तिष्क में क्या यह विचार नहीं आते है कि इस उम्र में सवेरे सवेरे यह क्यों घूम रही है इसका क्या प्रयोजन है कही उसका कैरेक्टर ढीला तो नहीं है
४ सवेरे सवेरे यह पुण्य करने के पश्चात आप अखबार पढ़ कर मोदी का समर्थन नैतिकता की बाते बलात्कारियो को सरे आम फांसी सोनिया व कांग्रेस की बुराई भ्रष्टाचार से देश को बचाने आदि परे विचारमग्न हो कर चिंतित हो जाते हो धन्य है तुम्हारा दोहरा चरित्र
नोट यह पत्र सवेरे सवेरे घूमने वाली अति धार्मिक स्त्रियों  (मुरारी बापू आदि की कथाओं को सुनने वाली )अपनी युवा बहू व जीवित बूढी सास के निन्दोपाख्यान कर रही भूतपूर्व सुन्दरियों को भी समर्पित है

गुरुवार, 2 अगस्त 2012

मरदाना ताकतसे देश सेवा व तिवारी जी

बहुत दिनों से ब्लॉग जगत से कटा रहा अघोषित संन्यास सा बना  रहा कई ऐसे विन्दुओ पर लिखने की इच्छा होने के बाद भी ऐसा लगा कि छोडिये और भी गम है ज़माने में मोहब्बत के सिवा ब्लॉग लिख कर कौन सी क्रान्ति आ जाने वाली है
 फिर तिवारी जी की डी एन  ए रिपोर्ट आई  ऐसा लगा कि रोहित के घर बाप के अवतार क़ी परिकल्पना साकार हुई फोन आ रहे होगे बधाई हो बाप पैदा होने की तिवारी जी के बयान पर नजर पड़ी जो इस तरह से है 
 तिवारी ने कहा कि वह अपने दिल और आत्मा से कभी कोई विवाद खड़ा नहीं करना चाहते थे। उन्होंने कहा, 'मेरी सादगी के चलते मेरी उम्र के इस पड़ाव में मेरे विश्वसनीय लोगों ने मेरे खिलाफ सुनियोजित तरीके से षड्यंत्र रचा। मेरे मन में मुझे उनके खिलाफ कोई शिकवा नहीं है। रोहित शेखर के साथ मेरी पूरी सहानुभूति है। मेरे मन में रोहित शेखर के खिलाफ कोई दुर्भावना नहीं है।'
 तिवारी ने स्वयं को महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरु और अन्य स्वतंत्रता सेनानियों का अनुयाई बताते हुए कहा कि उन्हें अपनी तरह से रहने का अधिकार है जो अभी भी उन्हें प्राप्त है। उन्होंने कहा, 'किसी की निजता में हस्तक्षेप करना उचित नहीं है।'

साथ ही उन्होंने मीडिया को बताया कि उन्हें अपने तरह से जीने का अधिकार है। उन्होंने कहा, 'इस घटना को मुद्दा नहीं बनाइये। कृपया विकास के कार्य में मेरा सहयोग करिए। हमें कई कार्य करने हैं और हमें भावी पीढ़ी की बेहतरी के लिए आधारशिला रखनी है।' 

             मैंने तिवारी जी के एक निकटतम सहयोगी से पूछा क़ि तिवारी जी अभी भी देश सेवा का जज्बा रखते है उन्होंने अंग्रेजी क़ि एक कहावत ठोकी OLD  HABITS  DIE HARD  अर्थात बुरी आदते बड़ी कठिनाई से ख़त्म होती है मैंने पूछा क़ि आखिर नेता जी खून देने में आना कानी क्यों कर रहे थे तो उस मित्र ने बताया क़ि यही तो राज है देश सेवा के दौरान छोटी मोटी भूल होती रही कंडोम का प्रचार भी उन दिनों नही था खून का सेम्पल देने में आनाकानी क़ि वजह यह थी क़ि कही लाइन न लग जाए कोर्ट में क़ि मेरा भी डी एन  ए मैच कराओ मेरे धर्म पिता तिवारी जी है वैसे नेता जी न खून देने से डरते है न कोई और शारीरिक द्रव दान से देश सेवा व विकास कार्य के लिए जनता से अभी भी सहयोग मांग रहे है तिवारी जी और जनता है क़ि अन्ना पर कुर्बान हुई जा रही है 
                  भावी पीढी के बेहतरी के लिए उनके सफल विवाहेत्तर संबंधो की गोपनीयता बनाने के लिए हम सभी नौजवानों व भूतपूर्व नौजवानों से अपील करते है क़ि वे तिवारी जी से व्यक्तिगत रूप से मिल कर विकास के कार्य करने के नुस्खे सीख लीजिये और विकास कार्य में चोरी छुपे सहयोग कीजिए 
               मैंने तिवारी जी के मित्र से पूछा क़ि आखिर तिवारी जी क़ि इसयौनिक  सक्रियता  का रहस्य क्या था तो उन्होंने बताया क़ि तिवारी जी गाय का दूध पीते है और १९७० से अब तक वह जिस भी गाय का दूध पिटे रहे है वह घास भूसा नहीं खाती बल्कि बाजार से उसे सेव व फलो का सेवन कराया जाता रहा है  उस गाय के दूध से testoron हारमोन बनता रहा है जिससे देश सेवा की अद्भुत प्रेरणा मिलती रही सोच रहा हूँ जा कर तिवारी गौशाला से कोई गाय क़ि बछिया या बूढ़ी गाय ही ले आऊ व एक BAMS फेल डाक्टर रख कर   मर्दाना  कमजोरी का दवाखाना खोल लू  उसका उदघाटन कौन कर सकता है आप बेहतर अंदाजा लगा सकते है 
          

रविवार, 3 जुलाई 2011

आज के पुष्प की अभिलाषा


माखन लाल चतुर्वेदी की प्रसिद्द रचना पुष्प की अभिलाषा कों आज के सन्दर्भ में एक स्थान पर कुछ ऐसे लिखा पाया

चाह नही मैं मनमोहन की माला में गुथा जाऊ
चाह
नहीं राहुल बाबा की वरमाला में गुथा जाऊ
चाह
नही मैं अन्ना के सर चढ़ मैं सत्ता से बतियाऊ
चाह
नहीं मैं रामदेव के संग पुलिस की लाठी खाऊ

मुझे
तोड लेना दिग्गी तुम उस दफ्तर में देना फेक
बिना
वजन फ़ाइल सरका दे जिसके अफसर बाबू नेक

गुरुवार, 30 सितंबर 2010

अयोध्या मामला कोर्ट के बाहर का एक हल


अयोध्या से जुड़े मामलों का हाई कोर्ट ने फैसला सुना दिया मामला सुप्रीम कोर्ट में जाने के पहले दोनों पक्ष कों यदि यह विकल्प दिया जाय तो शायद दोनों पक्ष सहज ही समझौते के लिए राजी हो जायेंगे हमें कलमाड़ी जी की सेवाए लेनी चाहिए उन्हें मंदिर मस्जिद निर्माण समिति का अध्यक्ष बना कर

साभार चित्र funonthenet से

सोमवार, 2 अगस्त 2010

राधे राधे जाप बाप रे बाप





कथनी करनी मे कितना अन्तर होता है वह सामने आने पर पता चलता है कुछ ऐसी ही मनोदशा मेरी है समझ मे नही रहा था कि बुड्ढे लोगो के साथ रहू या नवजवान पीढी के साथ रहू साप छ्छून्दर की स्थिति हो गइ थी अब निर्णय ले लिया है अपुन तो प्रेम के साथ रहूगा जहा प्रेम है वही ईश्वरानुभूती है बडी आलोचनायें मेरी भी हुई बुजुर्गो ने कहा कि जब अपने बच्चे प्रेम विवाह करेगे तो आदर्श देखा जायेगा वे मानो मन ही मन शापित कर रहे है कि जा तेरी भी सन्तान ऐसा ही करे जैसा आज मेरे पुत्र ने किया यानी विवाह के पूर्व प्रेम करे फ़िर उसी लडकी से विवाह भी कर ले जिससे प्रेम किया था मै तो इससे भी ज्यादा आशीर्वाद इन बुजुर्गो से चाहूँगा कि वे यह भी कह दे कि जा इन बच्चो को शादीशुदा जिन्दगी मे भी विवाहपूर्व का प्रेम बना रहे
वैसे एक राज की बात बता दू मेरे ताऊ जी बडे ही आध्यात्मिक है कृष्णलाल के दीवाने है मिलने पर राधे राधे का ही अभिवादन करते है जब देखो तब राधे राधे का ही गाना मोबाइल के रिन्गटोन मे बजता रहता है अपने ज्येष्ठ पुत्र का नाम भी उन्होने राधा रमण रखा ईश्वर की कृपा कुछ ऐसी हुई कि बेटा राधा रमण नाम के अनुरूप कुन्ज गलियो मे किसी बिन्दु के साथ प्रेम सीखते सीखते बिन्दुवार विन्दुगामी होते हुए रेखा के प्रेम मे ऐसा रमण किये कि पूर्णाकार रेखामय हो गये तथा यही अपने प्रेम का पूर्णविराम लगा कर गृहस्थ धर्म मे लीन होने की ठान लिये ताऊ जी को नागवार लगा कि चूमा चाटी तक तो ठीक था लेकिन विजातीय कन्या को बहू बनाना हे कृष्ण इस अधम पुत्र को सदबुद्धि दे लड्का कमाऊ था एम एन सी मे काम करता था उसने कोर्ट मैरिज कर ली आशीर्वादों के लिये सन्देश भेजे ताउ ताई नही गये सो खाप तो नही लेकिन बाप पन्चायत ने एलान कर दिया कि अब इस लडके का हुक्का पानी बन्द जो इससे सम्बन्ध रखना चाहता हो उसका भी मेरे यहा आना जाना बन्द समझा जायेगा
प्यार का इतना विरोध ? खासकर उस देश में जहां प्रेम के देवता कृष्ण को घर-घर पूजा जाता है, जहां हर मूवी लव स्टोरी पर आधारित होती है और प्यार के गाने हर किसी की ज़बान पर हैं, वहां प्यार का इस कदर विरोध क्यों? शायद इसलिए कि राधा-कृष्ण के प्यार को अध्यात्म के रस में डुबो कर उसे दूसरे रूप में परोसा जा सकता है, फिल्मी प्यार से किसी के परिवार पर कोई अच्छा-बुरा असर नहीं होता, लेकिन घर में अगर लड़का या लड़की अपनी मर्जी से शादी का ऐलान कर दे तो उससे परिवार का सारा समीकरण ही बिगड़ जाता है। जिस समाज में अधिकतर लड़के आज भी अपनी शादी के बारे में कुछ नहीं बोलते और बड़े-बुजुर्गों द्वारा दहेज़ लेकर तय की गई दुल्हन को चुपचाप स्वीकार कर लेते हैं, वहां अगर कोई बागी यह कहे कि मैं अपना दूल्हा या दुल्हन खुद चुनूंगा या चुनूंगी तो घर के और समाज के बड़े-बुजुर्गों के लिए यह एक चुनौती के समान है और वे वैसे ही भड़क उठते हैं जैसे अकबर भड़क उठा था जब सलीम ने अनारकली को मलिका--हिदुस्तान बनाने का ऐलान किया था।

हमारे यहां शादी को प्यार से कभी जोड़ा ही नहीं गया। हमारे यहां शादी इसलिए होती है ताकि जवान बेटे को अपनी शारीरिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए एक नारीदेह मिल जाए जो उसके बच्चे भी पैदा करे और घरबार भी देखे। साथ ही बिना शिकवा-शिकायत अपने पति के साथ-साथ पूरे ससुराल की सेवा भी करे। यानी ऐसी सेविका जो बिल्कुल दब्बू किस्म की हो और हर आज्ञा को माने। लेकिन जब कोई लड़का अपनी पसंद की लड़की से प्यार करता है तो मां-बापों-चाचा-ताउओं को डर लगता है कि इतनी हिम्मतवाली बहू शायद ससुराल में वैसी सेविका बनकर नहीं रहे और शायद बेटा भी उनके हाथ से निकल जाए। तो ऐसे में प्यार का विरोध तो होगा ही। खासकर वे लोग तो करेंगे ही जो अभी मां-बाप या चाचा-ताऊ की जगह पर बैठे हुए हैं। और वे भी करेंगे जो उन्हीं की मानसिकता में जी रहे हैं। प्यार के प्रति इस विरोध की आग में घी का काम करता है जातीय और धार्मिक विद्वेष। और तब यह किसी परिवार का व्यक्तिगत मसला रहकर जातीय या धार्मिक मसला बन जाता है। जब अपनी जाति या धर्म का लड़का (या लड़की) किसी और जाति या धर्म के लड़के (या लड़की) से प्यार करता पाया जाता है तो छोटों-बड़ों सबकी पहली प्रतिक्रिया यही होती है - क्या अपने यहां लड़के (या लड़की) मर गए थे? यानी सबको लगता है कि किसी और जाति-धर्म के बंदे या बंदी से शादी करके इसने सारी जाति की इंसल्ट कर दी है। और इस इंसल्ट का बदला लेने के लिए समाज के ताकतवर लोग परिवार का हुक्का-पानी बंद कर देते हैं या फिर लड़के-लड़की को जान से मारने का फरमान जारी कर देते हैं।


लेकिन अच्छी बात यह है कि इन सब के बावजूद प्यार कम हो रहा है प्रेम विवाह। कम ही संख्या में सही, आज गांवों-देहातों से भी ऐसे युवक-युवतियां सामने रहे हैं जो सारे खतरे उठाकर अपनी ज़िंदगी के फैसले खुद कर रहे हैं। कोई भी बदलाव शुरुआत में कुछ प्राणों की आहुति लेता है। कोई भी क्रांति शहादत के बिना पूरी नहीं होती। रिज़वान हो या कटारा, कुलदीप हो या शुभाये वे लोग हैं जिन्होंने जीवनसाथी चुनने के दकियानूसी तरीके को चुनौती दी थी, जिन्होंने जाति और धर्म के भेदभाव को मानने से इनकार कर दिया था। यही वे लोग हैं जो जाति और धर्म में बंटे इस देश के लिए उम्मीद की किरण बनकर आए थे। मैं इन सबको नमन करता हूं और उम्मीद करता हूं कि देश में खाप मानसिकता वाले लोगों के बहुमत के बावजूद आखिरी जीत प्यार की ही होगी।
भारत में कितने अपराध होते हैंबलात्कार, चोरी, लूट, आतंकवादी घटनाएं, सांप्रदायिक दंगे। लेकिन आज तक मैंने कहीं नहीं पढ़ा या सुना कि किसी बाप ने अपने बलात्कारी बेटे को मार डाला या किसी खाप या बाप पंचायत ने उन्हें मौत की सज़ा सुनाई। उल्टे वे पुलिस पर आरोप लगाते हैं कि लड़के को गलत फंसाया गया है। भारत में आतंकवाद की कितनी वारदातें हुईं और कई लोग पकड़े गए लेकिन आज तक किसी आतंकवादी के पिता या भाई ने उसकी हत्या का प्रयास नहीं किया ही किसी समाज ने फतवा जारी किया कि ऐसे आतंकवादी को गोली से उड़ा दिया जाए। देश भर में दंगों में कितने ही बेगुनाहों की जानें गईं, बापों ने देखा, खापों ने देखा, लेकिन वह समाज कभी यह कहने नहीं आया कि इन दंगाइयों को सरेआम फांसी पर चढ़ा दिया जाए, बल्कि वह समाज और उसके पंच ही उनको बचाने पर जुटे हुए हैं। दंगाई हीरो हो गए, एमएलए और एमपी हो गए। बेटा जुआ खेले, लड़कियों को छेड़े, शराब पीकर हंगामा करे, उसको कोई सज़ा नहीं है लेकिन कोई प्यार करे तो वह इतना बड़ा गुनाह कि उनकी हत्या कर दी जाए।
हे इश्वर इन्हे क्षमा करना जो तेरे ही नाम का कर्म का गुण गान रात दिन करते है और प्रेम मार्ग पर चलने वालो को जाति धर्म के नाम पर यमराज बन कर मार डालते है