शीर्षक पढ़ कर चकित मत होइए उत्तर प्रदेश की पुलिस ने लखनऊ के हजरतगंज थाने में दो बच्चो की माँ २८ वर्ष की बानो नामक महिला पर ममता नामक 18 वर्ष की युवती पर धारा 376 के तहत बलात्कार का आरोप ही लगा डाला
पहली बार बानो व उसके भाई पर लड़की भगाने के आरोप में धारा ३६३ व ३६६ के तहत पहले जेल भेजा फ़िर जमानत पर छूटने के बाद दरोगा ने 363 के तहत बानो नामक महिला पर ममता को अवैध ढंग से कब्जा कर रखने का आरोप लगा दिया इस पर जमानत पर रिहा होने के बाद उसी थाना प्रभारी ने तीसरी बार ममता के साथ बलात्कार करने के आरोप में उसे मजिस्ट्रेट के सामने पेश कर दिया | तीनो बार जज एक ही थेश्री बाल मुकुंद |
मजिस्ट्रेट साहिब ने तीसरी बार उसी महिला को रिमांड पर छोड़ने का आदेश देते हुए यह देखने का कष्ट नहीं किया की रिमांड होना चाहिए था कि नहीं जब कि मजिस्ट्रेट को सी आर पी सी कि धारा १६७ में यह अधिकार था कि वह महिला को जेल भेजने से मन कर दे
महिला अभी जेल से छुटी है आरोप से मुक्त नहीं हुई |उस पर बलात्कार का मुक़दमा चल रहा है
अब एक दूसरा पहलू देखे जिस राज्य कि मुख्य मंत्री ख़ुद कुंवारी स्त्री हो उसी राज्य के पुलिस के आला अधिकारी उस पुलिस थाना कोतवाली के शहर कोतवाल चंद्र शेखर सिंह के विरूद्ध कोई शिकायत नहीं होने की बात कह कर उसके विरुद्ध कोई कारवाई नहीं करने कि बात कह रहे हैं
आई पी सी के कुल 511 दफाओं में केवल यही एक धारा ऐसी है जो महिला के लिए शायद सम्भव नहीं है क्यों कि प्रकृति ने महिला का जैव शास्त्रीय ढांचा ही ऐसा बनाया है कि वह इस प्रकार का अपराध चाह कर भी नहीं कर सकती है
मगर वाह रे यू पी पुलिस तुमने तो हद ही कर दी ऐसा नही कि राज्य कि ये पहली घटना हो पहले भी 1995 गाजियाबाद में एक नाबालिग लड़की के सामूहिक बलात्कार के मामले में एक पति - पत्नी और उसके दो नाबालिग बच्चो को पुलिस जेल भेज चुकी है
पुलिस के डर से यह महिला लिखित में शहर कोतवाल कि शिकायत नहीं कर रही है वैसे जज साहिब ने पुलिस से यह सिध्ध करने को कहा है कि वह बताये कि एक महिला द्वारा दूसरे महिला के साथ ऐसा अपराध कैसे किया गया होगा
बुधवार, 31 दिसंबर 2008
गुरुवार, 25 दिसंबर 2008
जूता का महिमा मंडन बंद करें
आज कल बुश पर फेंके गए जूते की हर जगह चर्चा है हर जगह मुसलमानों ने इसका महिमा मंडन करना शुरू कर दिया है | कोई जूते की नीलामी में लाखो डालर देने को तैयार है तो कोई अपनी लड़की की शादी करने को तैयार है
भारत में भी कुछ मुसलमान संगठनो ने खुशिया मनानी शुरू कर दिया | इस पूरे प्रसंग पर मुझे सलमान रशदी व डेनिश पत्रकार के प्रति जारी फतवे तथा उस पर बढ़ चढ़ कर बयां बाजियां याद आ रही हैं जिसमे उत्तर प्रदेश के मंत्री जी ने पत्रकार के सर काट कर लाने वाले को ५१ लाख रुपये इनाम की घोषणा की थी
इन घटनाओं पर टीका टिपण्णी के बाद कुछ सवाल के जबाब नहीं मिल रहे हैं
क्या विरोध का लोकतान्त्रिक तरीका यही है | क्या सभ्य कहे जाने वाले किसी समाज को इस प्रकार की हरकत का महिमा मंडन इसी प्रकार करना चाहिए ?
यदि उस पत्रकार ने जूते की जगह चाकू या बम फेंका गया होता तो भी दुनिया व भारत के मुसलमान और इस प्रकार के विरोध के तरीके को पसंद करने वाले हिंदू क्या इसी तरीके से खुशी का इजहार करते | क्या यह सभ्यता का तकाजा है की मेहमान बन कर आए व्यक्ति वो चाहे शत्रु ही क्यों न हो उसका विरोध जूता फेंक कर या बम फेंक कर किया जाए
यदि इसी प्रकार की घटना पाकिस्तानी प्रधान मंत्री या राष्ट्रपति के किसी भारत दौरे पर हो जाए तो कितनेमुसलमान उस जूते को जो पाक प्रधान मंत्री / राष्ट्रपति पर फेंका गया हो उसकी नीलामी या बोसा ( चुम्बन ) करनेको तैयार होंगे तथा उससे शादी का आफर देने को कितने हिंदू या मुसलमान तैयार होंगे | प्रश्न अवश्य काल्पनिकहै किंतु इसका उत्तर आसान नहीं है
मकबूल फ़िदा हुसैन की नंगी पेंटिंगों पर शिव सेना के विरोध को या किसी अन्य घटना के हिंसात्मक विरोध की हम आलोचना करते हैं तथा बुश पर फेंके गए जूते को महिमा मंडित कर विरोध के इस तरीके को जायज करार कर रहे हैं
बुश की इराक़ नीति चाहे कितनी ही बुरी क्यों न हो सद्दाम भी कोई फ़रिश्ते नहीं थे कुवैत पर आक्रमण हो चाहे कुर्द विद्रोहियों का दमन सभी पापो का अंत होना ही था चाहे उसका कोई निमित्त बने |
लेकिन इराक में घटना का भारत के लोगों के द्वारा इस प्रकार समर्थन देना और खुशी प्रकट करना शायद यह प्रकट कर रहा है की अभी हम लोगों ने लोकतान्त्रिक विरोध का तरीका सिखा नहीं है चाहे कितना ही पुराना लोकतंत्र क्यों न हो जाए | अभी सहिष्णु बन कर विरोध की ताकत का अंदाजा हमें नहीं है
यही विरोध हमें आए दिन झेलना पड़ता है क्या किसी नीति विशेष का हिंसात्मक विरोध जायज है क्या स्वन्त्रतता के संगर्ष से हमने यही सबक सीखा है
भारत में भी कुछ मुसलमान संगठनो ने खुशिया मनानी शुरू कर दिया | इस पूरे प्रसंग पर मुझे सलमान रशदी व डेनिश पत्रकार के प्रति जारी फतवे तथा उस पर बढ़ चढ़ कर बयां बाजियां याद आ रही हैं जिसमे उत्तर प्रदेश के मंत्री जी ने पत्रकार के सर काट कर लाने वाले को ५१ लाख रुपये इनाम की घोषणा की थी
इन घटनाओं पर टीका टिपण्णी के बाद कुछ सवाल के जबाब नहीं मिल रहे हैं
क्या विरोध का लोकतान्त्रिक तरीका यही है | क्या सभ्य कहे जाने वाले किसी समाज को इस प्रकार की हरकत का महिमा मंडन इसी प्रकार करना चाहिए ?
यदि उस पत्रकार ने जूते की जगह चाकू या बम फेंका गया होता तो भी दुनिया व भारत के मुसलमान और इस प्रकार के विरोध के तरीके को पसंद करने वाले हिंदू क्या इसी तरीके से खुशी का इजहार करते | क्या यह सभ्यता का तकाजा है की मेहमान बन कर आए व्यक्ति वो चाहे शत्रु ही क्यों न हो उसका विरोध जूता फेंक कर या बम फेंक कर किया जाए
यदि इसी प्रकार की घटना पाकिस्तानी प्रधान मंत्री या राष्ट्रपति के किसी भारत दौरे पर हो जाए तो कितनेमुसलमान उस जूते को जो पाक प्रधान मंत्री / राष्ट्रपति पर फेंका गया हो उसकी नीलामी या बोसा ( चुम्बन ) करनेको तैयार होंगे तथा उससे शादी का आफर देने को कितने हिंदू या मुसलमान तैयार होंगे | प्रश्न अवश्य काल्पनिकहै किंतु इसका उत्तर आसान नहीं है
मकबूल फ़िदा हुसैन की नंगी पेंटिंगों पर शिव सेना के विरोध को या किसी अन्य घटना के हिंसात्मक विरोध की हम आलोचना करते हैं तथा बुश पर फेंके गए जूते को महिमा मंडित कर विरोध के इस तरीके को जायज करार कर रहे हैं
बुश की इराक़ नीति चाहे कितनी ही बुरी क्यों न हो सद्दाम भी कोई फ़रिश्ते नहीं थे कुवैत पर आक्रमण हो चाहे कुर्द विद्रोहियों का दमन सभी पापो का अंत होना ही था चाहे उसका कोई निमित्त बने |
लेकिन इराक में घटना का भारत के लोगों के द्वारा इस प्रकार समर्थन देना और खुशी प्रकट करना शायद यह प्रकट कर रहा है की अभी हम लोगों ने लोकतान्त्रिक विरोध का तरीका सिखा नहीं है चाहे कितना ही पुराना लोकतंत्र क्यों न हो जाए | अभी सहिष्णु बन कर विरोध की ताकत का अंदाजा हमें नहीं है
यही विरोध हमें आए दिन झेलना पड़ता है क्या किसी नीति विशेष का हिंसात्मक विरोध जायज है क्या स्वन्त्रतता के संगर्ष से हमने यही सबक सीखा है
बुधवार, 3 दिसंबर 2008
पाक का खटराग हमले भारत सरकार ने कराए थे
पाकिस्तान मीडिया की ख़बर सुन कर ऐसा लगा की काश कोई उधम सिंह जैसा क्रन्तिकारी रहता तो इन फटे मुंह और न जाने क्या क्या फटे अंगो वाले दुर्जनों कि ऐसी तैसी कर देता तो ये शरारत बंद हो जाती वास्तव में हमारे मनीषियों ने ठीक ही कहा है की शठे शाठ्यम समाचरेत | हिम्मत देखें ( खड्ग हस्तेन दुर्जन )पूरे समाचार की विडियो क्लिप hotklix.com पर देखें यहाँ zaid-hamid फरमा रहे है कि भारत ने अमेरिका के तर्ज पर ९/११ करना चाहा तो लेकिन उनका फ्राड बेनकाब हो गया | आतंकवादियों कि सूरत पाकिस्तानियों से नहीं मिलती
सूरत के लिए तो इनकी माँ से ही पूछना पड़ेगा कि इनकी पैदाइश १९७१ कि जंग के दौरान फटे बमों के बीच अप्राकृतिक रूप से तो नहीं हो गई थी| क्या पाकिस्तानियों के मुंह में बड़ी सी लकीर होती है जैसे नवाज शरीफ साहब के मुंह पर है या आम पाकिस्तानियों की शक्लें लंगूरों कि तरह होती हैं ये इन जनाब ने नहीं बताई
ये कहतें है कि हमले भारत सरकार ने मुम्बई में करवाए , करकरे का कत्ल भारतीय सेना व बी जे पी ने करवाए क्योंकि वह उसका पर्दाफाश करने ही वाले थे
कौन बताये कि यदि हमला करना ही होता तो तुम्हारे यहाँ जो फिदायीन हमले होते है उसके दस गुने हमले हो चुके होते
शिशुपाल कि कहानी पढो सबक मिल जाएगा कि भगवान् कृष्ण को भी उस आततायी का संहार करने के लिए उसकी सौ गालियाँ सहनी पड़ी थीं हम लोग श्रीकृष्ण कि तरह भगवान् तो नहीं है लेकिन पचास के आस पास आंकडो तक पहुंचाते ही तुम्हारा संहार हो जाएगा | मनमोहन कि गिनती और अंक गणित कमजोर है न अमर सिंह उसका हिसाब किताब देख रहे है जिस दिन सही गिनती हो जायेगी उस दिन पता चलेगा zaid hamid कि भारतीय फौज के हमले कैसे होतें है
सूरत के लिए तो इनकी माँ से ही पूछना पड़ेगा कि इनकी पैदाइश १९७१ कि जंग के दौरान फटे बमों के बीच अप्राकृतिक रूप से तो नहीं हो गई थी| क्या पाकिस्तानियों के मुंह में बड़ी सी लकीर होती है जैसे नवाज शरीफ साहब के मुंह पर है या आम पाकिस्तानियों की शक्लें लंगूरों कि तरह होती हैं ये इन जनाब ने नहीं बताई
ये कहतें है कि हमले भारत सरकार ने मुम्बई में करवाए , करकरे का कत्ल भारतीय सेना व बी जे पी ने करवाए क्योंकि वह उसका पर्दाफाश करने ही वाले थे
कौन बताये कि यदि हमला करना ही होता तो तुम्हारे यहाँ जो फिदायीन हमले होते है उसके दस गुने हमले हो चुके होते
शिशुपाल कि कहानी पढो सबक मिल जाएगा कि भगवान् कृष्ण को भी उस आततायी का संहार करने के लिए उसकी सौ गालियाँ सहनी पड़ी थीं हम लोग श्रीकृष्ण कि तरह भगवान् तो नहीं है लेकिन पचास के आस पास आंकडो तक पहुंचाते ही तुम्हारा संहार हो जाएगा | मनमोहन कि गिनती और अंक गणित कमजोर है न अमर सिंह उसका हिसाब किताब देख रहे है जिस दिन सही गिनती हो जायेगी उस दिन पता चलेगा zaid hamid कि भारतीय फौज के हमले कैसे होतें है
मंगलवार, 2 दिसंबर 2008
नेता उवाच कमीनापंथी की भी हद है
दो दिन के बाद नेताओं ने क्या क्या कहा तो पता चलेगा की ये कितने नपुंसक है
१-" नेता मुर्दाबाद कहने वाले लोग अलगाववादियों की तरह है |ये लोक तंत्र में शामिल लोगों के प्रति अविश्वास पैदा कर रहे है " मुक्तार अब्बास नकवी
नकवी साहिब काश्मीर में जो नारे लगते हैं उसके बारे में आपने अपने मुंह में क्या लगा लिया है लोक तंत्र का ठेका आपने जनभावनाओं के प्रति बयां बाजी करने के लिए बचा रखी है ऐसा लगता है की आपका जन्म संविधान की किताब के किसी झिंगूर से हुआ है जो लोकतंत्र को चाट रहा है
"मंत्री का काम समुद्र के तटों की रखवाली करना नहीं न ही जगह जगह चौकीदारी करना वह केवल पॉलिसी बनाता है " शकील अहमद (गृह राज्य मंत्री )
आप तो जैसवाल जी के साथ खो खो खेलो तथा पॉलिसी के नाम पर जूते पालिश करो जीभ से आला कमान का
अगर शहीद मेजर का घर नहीं होता तो यहाँ कुत्ता भी झांकने नहीं आता " अच्युतानंद (केरला के मुख्य मंत्री )
आपका नाम अच्युतानंद के जगह पर च्युतानंद क्यों नहीं रख दिया जाए | आप समझते हैं शहीद को जिंदगी भर तो लोगों को लाल सलाम के नाम पर कटवाते रहे| यदि मुख्य मंत्री नहीं होते तो कोई कुत्ता तुम्हारे मुंह पर शू शू कर चुका होते सुरक्षा गर्द हटा कर देखो केरला से कश्मीर तक लाइन लग जायेगी कुत्तों की आपके मुंह पर शू शू करने की आपके मुंह का बवासीर ठीक हो जाता
महाराष्ट्र मनुख वाले कुवीर्यजनित किन्नरों का बयां नहीं छाप रहा हूँ क्यों की महाराष्ट्र के महापुरुषों ने हमें मना कर रखा है
१-" नेता मुर्दाबाद कहने वाले लोग अलगाववादियों की तरह है |ये लोक तंत्र में शामिल लोगों के प्रति अविश्वास पैदा कर रहे है " मुक्तार अब्बास नकवी
नकवी साहिब काश्मीर में जो नारे लगते हैं उसके बारे में आपने अपने मुंह में क्या लगा लिया है लोक तंत्र का ठेका आपने जनभावनाओं के प्रति बयां बाजी करने के लिए बचा रखी है ऐसा लगता है की आपका जन्म संविधान की किताब के किसी झिंगूर से हुआ है जो लोकतंत्र को चाट रहा है
"मंत्री का काम समुद्र के तटों की रखवाली करना नहीं न ही जगह जगह चौकीदारी करना वह केवल पॉलिसी बनाता है " शकील अहमद (गृह राज्य मंत्री )
आप तो जैसवाल जी के साथ खो खो खेलो तथा पॉलिसी के नाम पर जूते पालिश करो जीभ से आला कमान का
अगर शहीद मेजर का घर नहीं होता तो यहाँ कुत्ता भी झांकने नहीं आता " अच्युतानंद (केरला के मुख्य मंत्री )
आपका नाम अच्युतानंद के जगह पर च्युतानंद क्यों नहीं रख दिया जाए | आप समझते हैं शहीद को जिंदगी भर तो लोगों को लाल सलाम के नाम पर कटवाते रहे| यदि मुख्य मंत्री नहीं होते तो कोई कुत्ता तुम्हारे मुंह पर शू शू कर चुका होते सुरक्षा गर्द हटा कर देखो केरला से कश्मीर तक लाइन लग जायेगी कुत्तों की आपके मुंह पर शू शू करने की आपके मुंह का बवासीर ठीक हो जाता
महाराष्ट्र मनुख वाले कुवीर्यजनित किन्नरों का बयां नहीं छाप रहा हूँ क्यों की महाराष्ट्र के महापुरुषों ने हमें मना कर रखा है
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