रविवार, 27 दिसंबर 2009

त्यागपत्र के अवसर पर अध्यक्षीय भाषण

यह त्यागपत्र की घोषणा के बाद मान्यवर के विदाई समारोह का अध्यक्षीय भाषण है
“आज समाचारपत्रों के माध्यम से पता चला कि आन्ध्र प्रदेश के महामहिम राज्यपाल महोदय ने स्वास्थ्य कारणों से अपने पद से त्यागपत्र दे दिया बडे दुःखित मन से ये पोस्ट लिख रहा हूं जो राज्य अपने राज्यपाल को स्वास्थ्यकर दवायें ना उपलब्ध करा सके उस राज्य सरकार को भंग कर देना चाहिये
वैसे नारायणदत्त ज़ी वस्तुतः नारायणमूर्ति थे मोहिनी माया की जिसे योग माया भी कहा जाता है उसे पहचानने के बाद मान्यवर ने उस विषयगामी मायाविनी को समाप्त करने का मन बना ही लिया था लेकिन सत्यानाश हो स्टिन्ग आपरेशन चलाने वालो की जिसने इस पुण्यार्थ कार्य को इतना घिनौना प्रचार कर दिया
हमे कान्ग्रेस के प्रवक्ता के आज के वक्तव्य को नही भूलना चाहिये जिन्होने इस अवसर को राजनीतिक परंपरा का उच्च आदर्श बताया है कल जो घटनाचक्र घटा वह भी राजनीति का उच्च आदर्श था यह अवश्य है कि इस पर किसी पार्टी ने मुँह नही खोला

हमारे यहाँ आदि काल से राज प्रसादो मे कोई हवन व आध्यात्मविद्या का कार्यक्रम नही चलता रहा था इतिहास गवाह है कि राजभवनो मे रनिवास और भोगविलास की समानान्तर गौरवशाली परंपरा रही है मुझे इसमे तनिक भी सन्देह नही है कि यदि स्वास्थ्य ठीक ठाक रहता तो महोदय राजकाज के और उच्च प्रतिमान स्थापित करने मे सफ़ल होते
वैसे विषकन्याओ ने कइ राज्यो का विनाशन किया था इसी का शिकार आप भी हुए है विषकन्याओ के विष की काट के लिये आन्ध्र प्रदेश सरकार ने कोई उपाय नही किया था यह बडी खतरनाक बात है वास्तव मे यह सरकार अक्षम व कमजोर है नारायणी कोप व शाप तुम्हे खा जायेगा रोस्सैया !!!
भारतीय राजनीतिज्ञों की परंपराओं के वाहक नर शार्दूल पन्डित जी आपने सभी बुजुर्गो को सर उठा कर जीनेवाला बना दिया है केशरी व मकरध्वज खाने-पीने के शौकीनों को आपने हरा भरा कर डाला है बुजुर्गो मे एक नया कान्फ़िडेन्स जगा है लोग बाग इन जाडो के दिन मे भी उत्तराँचल की पहाड़ियॉ मे जा कर जडी बूटी सन्जीवनी की तलाश मे जाने की कामना कर रहे है कुछ लोग तो तत्काल आरक्षण भी करा लिये है इससे उत्तरान्चल मे पर्यटन को भी बढावा मिलेगा आम लोगो के चेहरे खिल रहे है
त्यागपत्र जेब मे लेकर राजभवनों मे घुटन व अस्वस्थकर माहौल मे बने रहना भी प्रजातन्त्र का गौरवशाली क्षण है आपका त्यागपत्र सभी नेताओं के लिये आदर्श व अनुकरणीय है विश्वसनीय साथियों की आवश्यकता , छोटी छोटी भूलो के प्रति गहरी सावधानी असत्य कथन पर अन्त तक टिके रहना फ़िर अपने स्वास्थ्य को पद से ऊपर मान कर अन्ततः पदत्याग व सन्यास का आत्मबल एक राजनेता के अनिवार्य गुण है आप इसके मूर्तिमान उदाहरणस्वरूप है आप दीर्घायु हो शतायु हो तथा स्वास्थ्यलाभ करके समाजसेवा तथा समाजोद्धार का कार्य पूर्व की ही भान्ति करते रहे यही भगवान से प्रार्थना है “

रविवार, 20 दिसंबर 2009

एक चिठ्ठी मैंने भी लिखी है यूं पी कों बाटने के लिए पी एम् कों

आज कल u.p. को 4भागो मे बँटवारे की बात चल रही है लेकिन मेरी सोच कुछ अलग तरीके की है जो अति दूरदर्शिता पूर्ण है यदि सभी 71 जिलो को ही राज्य का दर्जा मिल जाये तो आम आदमी के जीवन मे खुशियो की बहार आ जायेगी तथा विकास का रास्ता हाईवे की तरह से बन जायेगा सामाजिक राजनीतिक निम्न परिवर्तन होगे
1 राज्य समाप्त हो कर जब जिलो की इकाइयो मे प्रशासित होगा तो प्रान्तीय अस्मिता व व्यक्तित्व की लडाई स्वतः समाप्त हो जायेगी जब मराठी पन्जाबी बिहारी हैदराबादी मद्रासी का बिल्ला ही खत्म हो जायेगा तो रोज रोज के झगडे ट्न्टे स्वतः समाप्त ही हो जाने है

2- वैसे भी राज्य या राजधानी के नाम होने से किसी गाँववासी तह्सीलवासी या जिले के व्यक्ति के व्यक्तित्व भाषा संसकार विकास से कोई सीधा सादा संबन्ध कभी भी नही रहा है राज्यो के बनने से छात्रो का सामान्य ज्ञान जरूर प्रभावित हुआ है पिछड़ो व दलितों को कई बार ऐसे प्रश्नो मे उलझा कर कि फ़ला राज्य कब बना किसने अनशन किया कौन पहला सी एम या गवर्नर रहा राज्य बनने के बाद कौन सी सन्ख्या बडी है राज्य की वर्षगाँठ की सन्ख्या या मुख्य मन्त्रियो या आम चुनाव की अब भला बताईये गणित के प्रश्न इन्टरव्यू मे पूछने पर बच्चे क्या उस राज्य के प्रश्न से बर्बाद होने पर ये असफ़ल छात्र इस देश या उस राज्य के हितैषी कभी हो सकेगे ? यह यक्ष प्रश्न है जिसका हल सिर्फ़ मेरे पास है इन राज्यों को ही समाप्त कर देना
3 राज्यों को समाप्त कर जिलो को सीधे राज्येतर शक्ति देने से कई लाभ होंगे जो निम्न है
क – प्रान्तीय पार्टियाँ अपने औकात मे आ जायेन्गी जब इनकी जिला स्तर की इकाइया हो जायेन्गी तब राज्य के कद्दावर व सुप्रीमो नेता लोग जिले मे जा कर म्याउ म्यौउ करेगे
ख- राज्य स्तर पर भ्रष्टाचार समाप्त हो जायेगा जब राज्य ही नही रहेगा तो राज्यस्तर का कैसा भ्रष्टाचार ? देश के भ्रष्टाचार का सेन्सेक्स भी गिरेगा क्योकि केवल सान्सदो के भ्रष्टाचार पर ही सबकी निगाहे लगी रहेगी
ग- जिलो के भ्रष्टाचारी क्या खा कर राज्य के या देश के नेताओ की भ्रष्टता का मुकाबला करेंगे
घ—जिलो मे इमानदारी के पौधे उगेगे अब जब ट्रान्सफ़र पोस्टिंग का खेल ही नही होगा तो चन्दौली क्या खा कर गजियाबाद का मुकाबला भ्रष्टाचार मे करेगा हा वन विभाग के मामले मे तो चन्दौली ही टाप रहेगा खैर जब लखनऊ की डिमान्ड नही होगी तो बाल बच्चो की मिठाई के लिये कोई अधिकारी वह भी जिले की नई व्यवस्था मे टाप पर बैठ कर इत्ती सी बेइमानी क्यो करने लगा अब तक तो ये सब सचिवों मन्त्रियो निदेशकों के लिए ये पाप करते थे अब किनके लिये ये सब करेंगे
ग—इससे सभी अधिकारी सन्त की कोटि मे आ जायेंगे क्योकि सभी वाल्मिकी की श्रेणी मे हो जायेंगे
घ -- जिलो को राज्य का दर्जा दिये जाने पर केन्द्र को कोई खास वित्तीय बोझ नही पडेगा जो जैसा है जहॉ है की तर्ज पर घोषणा कर दी जाय सन्साधनो का वही उपयोग हो जो उपलब्ध हो मानव श्रम का विभाजन नही होगा ऐसी दशा मे विभागो के ईमानदार निदेशको सचिवो प्रमुखो को सरप्लस अधिकारी कर्मचारी घोषित होगे लेकिन वे आसानी से अपने विशेषज्ञताओं वाले विभागो के खोमचे लखनऊ मे लगा कर जीविका चला सकते है जैसे दुग्ध सचिव डेयरी की दूकान फ़िशरी वाले सचिव तसले मे मत्स्य अन्गुलिका उद्यान सचिव मलिहाबादी आम का व्यापार कर सकते है भाषा सचिव प्रिन्टरों पर प्रूफ़ रीडिग का काम कर सकते है इसके अलावा अधिकाश सचिव प्रमुख सचिव किचेन गार्डेन मे सब्जिया उगा सकते है जो ये प्राय: गोष्ठियो मे बताया करते है इससे राजधानी लखनऊ जो तब मात्र लखनऊ राज्य कहा जायेगा उसकी आय बढाने मे सहायक होगे तथा वैराग्य व धर्म की स्थापना मे भी ये सभी वाल्मिकि तुल्य अधिकारी मन्त्री सचिव यू डी ए आदि सन्त हो जायेन्गे इसमे से कुछ लोग अपने प्लाटो पर आश्रम भी खोल सकते है
लखनऊ की धौन्स पहले से कम नही होगी क्योन्कि सचिवालव विधानसभा आदि को सहारा आदि कम्पनियो को लीज पर दे कर उससे अच्छी आय बनाई जा सकती है जो इस जिले के विकास मे सहायक होगी
च --जिले का गवर्नर जिला कलेक्टर होगा वैसे भी आज कल कलेक्टर कलेक्ट कम रिफ़्लेक्ट ज्यादा कर रहे है गवर्नरी भी इसी तरह हो जायेगी फ़र्क केवल केन्द्र का होगा वैसे भी यू पी के आई ए एस इतने गरीब हो गये है कि बेचारो को अपनी आय घोषित करने मे भी शर्म आ रही है आखिर अन्गोछा व कछ्छा तो नही दिखा सकते जो तह्सीलो से उन्हे गिफ़्ट मिले थे इसी पशोपेश मे ये दिन काट रहे है गवर्नरों की तरह काम करने मे कम से कम बच्चो की फ़्यूचर तो बन जायेगी इसी बहाने गाव गाव घूमना तो नही पडेगा लाट साह्ब बन कर नौकरी होगी जिलाधिकारी के रूप मे पार्टी के जिलाअध्य्क्षो की जी हजूरी करने की आदत तो छूट जायेगी
छ –इसमे कोई अधिक खर्च नही आने वाला केन्द्रीय विभागों का काम पूर्ववत उनके कार्यलयाध्यक्ष देखते रहेंगें कलेक्रेट सचिवालय बन जायेगा क्लर्को का नाम बदल कर सचिवालय सहायक हो जायेगा कमिश्नर का पद सरप्लस हो जायेगा गवर्नर के रूप मे कलेक्टर चाहेगा तो ऐसे लोगो को मानद पदो पर मानदेय पर नियुक्त कर सकेगा
ज-राजधानी से फ़ोन आदि न आने के कारण खर्चा बचेगा साथ ही दबाब ना पड्ने से जनता का काम भी हो सकेगा प्रशासन दुःशासन की भाँति अब काम नही कर सकेगा लखनऊ आने जाने के टी ए डी ए के ख़र्चे भी बचेगे
झ –केन्द्रीय बजट सीधे जिलो तक आने के कारण अब बीच का लास 15% रहेगा इससे 85 पैसे जनता के विकास मे खर्च होने लगेगे इससे विकास की गंगा नाली के रूप मे अपने प्रदूषित हो कर बहने लगेगी जिससे विकास का हैजा गावो मे ना फ़ैल जाये इस के लिये खन्ड विकास अधिकारी होगे जिन्हे नयी व्यवस्थाओं मे पाख्नड विकास अधिकारीवर्ग कहा जायेगा इनका काम कुछ दिनो तक विकास की बाढ से जनता को उसी प्रकारों से बचाना है जैसे कि आज कल ये करते आ रहे है म्रृत्यु उपरान्त मुर्दो के पेन्शन भी जारी करने का वितरण करने का सम्वेदनशील काम भी ये करते रहेगे
आखिरी समस्या बिजली की होगी चूँकि प्रत्येक जिलो मे पावर प्लांट नही है इसका हल भी कलुआ के फ़ार्मूले से हल हो जायेगा कलुआ कहता है कि अन्ग्रेजो व रायबहादुरो के पेशाब से दिये जलने की कहानियां उसने अपने दादा जी से सुनी है इसी तर्ज पर इन नये गवर्नरों के बाथरूमो से निकलने वाले मूत्राशयों को पावरप्वाइंट बना कर पचास तथा अन्य अधिकारियो के द्वारा इसी प्रकार पचास मेगावाट के पावर प्लान्ट लगाये जायेंगे यदि कोई कमी पडेगी तो ये भूतपूर्व मन्त्री मुख्यमंत्रियों की सेवाये जिले ले सकेगे इनका समय समय पर मूत्रदान के द्वारा बिजली पैदा कर के वैसे भी इन्होने समाज व अपने राज्य को मल मूत्र के सिवा कुछ तो नही दिया है इस लिए यह सेवा तो ये आसानी से कम से कम अपने जिलो के विकास के लिये बिजली के लिये तो दे सकते है धरती पुत्र ,जाट पुत्र हो चाहे दलित पुत्र इतनी सेवा तो करनी होगी नही तो इनकी पेन्शन बन्द कर दी जायेगी |
मैने एक पत्र प्रधानमन्त्री को लिख दिया है इस योजना के बारे मे पत्र पर सही पता व टिकट भी लगा दिया है अब गेन्द केन्द्र के पाले मे है क्यो मै चिट्ठी नही लिख सकता ???
मेरे एक अभिन्न मित्र ने इस योजना का विरोध किया और कहा कि आपके सोचते रहने से कुछ नही होनेवाला मैने उत्तर दिया कि यदि जनता के सोचने से कुछ नही होने वाला तो जनता के इस दिशा मे ना सोचने से कौन सा अभिनव होने वाला इस पालिटिक्स से तो क्या सोचना छोड दिया जाये अब फ़ैसला आप पर है मै सही हू या मित्र

रविवार, 13 दिसंबर 2009

अनशन की राजनीति में भेद क्यों ????



क्या अनशनो पर राजनीति करना ठीक है अभी 11 दिनो के अनशन पर भारत सरकार आन्ध्र सरकार तथा सम्पूर्ण विप्क्ष इस अनशन को समाप्त करने तथा एक अलग राज्य बनाने पर एकमत दिखाई दिये आड्वाणी जी की ्सदन मे चिन्तातुर मुख मुद्रा को देख कर मै खुद बडी चिन्ता मे पड गया इस उम्र मे इतनी चिन्ता ठीक नही है लेकिन एक अनशन जो गत गत दस वर्षो से एक महिला एक कानून के खिलाफ़ कर रही है उसके लिये कोई चिन्ता नही है और ना ही उस कानून मे आवश्यक सन्शोधन का ही आश्वासन ही सरकार कर रही है क्या व्यक्ति पर एक कानून इतना अधिक मह्त्वपूर्ण हो गया है कि सरकार इसे बद्लना नही चाह्ती
विगत दिनो मानवाधिकार दिवस , नोबल पुरस्कार तथा तेलन्गाना के लिये अनशन ये तीन घट्नाये हुई है लेकिन मणिपुर के इस अन्हिसक सत्याग्रह को कही भी ना तो मान्यता हि मिल रही है और ना ही विपक्ष चिन्तित दिख रहा है क्या इस लिये कि मणिपुर छोटा राज्य है तथा उसकी खबरो पर ज्यादा ध्यान दिया जाना लोग उचित नही समझते बात तभी समझ मे आती है जब आन््दोलन हिन्सक हो जाता है
. सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम 1958 (एएफएसपीए) भारतीय सशस्त्र बलों को विशेष अधिकार अनुदान के लिए गिरफ्तारी, हिरासत में, पूछताछ या दण्ड से मुक्ति से मात्र संदेह पर किसी भी व्यक्ति को मार डालते हैं. मणिपुर (जहां ki शर्मिला निवासी है) और उसके उत्तर के पड़ोसी राज्यों पूर्वी भारत इस अधिनियम के अधीन लगभग आधी सदी के लिए गुजर रहा है. 2 नवम्बर 2000 के दिन मणिपुर मे मोलाम के निकट आतंकवादियों ने सशस्त्र बलो पर बम फ़ेका जिसकी जबाबी कार्यवाही मे सशस्त्र बलो ने दस नागरिकों की गोली मार कर हत्या कर दी
ऐसा नही है कि यह कोई नयी घटना थी मणिपुरियों के लिये अतीत मे ऐसी कई घट्नाये हो चुकी थी शर्मिला इस घटना के विरुद्ध एक प्रदर्शन मे शामिल होने गयी थी लेकिन इस घट्ना ने इस कवियत्री के मानस पर ऐसा असर छोड़ा कि वह वहकओ नवम्बर 2000 को इस दमनकारी कानून को समाप्त करने के लिये अनशन पर बैठ गयी तब से उसे आत्महत्या करने के प्रयास मे गिरफ़्तार कर लिया गया तथा जेल मे डाल दिया गया जहाँ उसने जमानत लेने से भी इन्कार कर दिया तब से एक अन्तहीन सन्घर्ष शुरू हो गया अब उसके अनशन को तोडने के लिये उसे जबरदस्ती नाक के रास्ते से भोजन दिया जाता है अदालत रिहा करती है वह फ़िर अनशन पर बैठती है तथा फ़िर उसे गिरफ़्तार कर लिया जाता है उसके नाक के रास्ते एक पाइप लगा दिया गया है अस्पताल व जेल तथा यन्त्रणादायक इस प्रक्रिया लगातार 10वे वर्ष मे प्रवेश कर चुका है 30 वर्ष की आयु से जारी अनशन ने शर्मिला के शरीर को कमजोर कर दिया है उसका चेहरा देखने पर सलीब से लट्के ईसा मसीह की तस्वीर की याद आती है
उसका शरीर भले ही कमजोर हो गया है लेकिन उसके इरादे फ़ौलाद की तरह मजबू्त है इस सन्घर्ष मे उसकी मां ने भी अपना योग्दान दिया है यद्यपि वह पढी लिखी नही है लेकिन दमन के कानून के प्रतिकार को बखूबी समझती है उसने इन दस वर्षो मे वह इस भय से कि कही उसके आन्सू शर्मिला के सन्कल्प को कमजोर न कर दे इस लिये उसने यह फ़ैसला किया है कि जब तक उसका उद्देश्य पूरा नही हो जाता तब तक वह उसके सामने नही आयेगी गजब की सन्कल्प शक्ति माँ व बेटी दोनो की है इस जज्बे को शत शत नमन जो लोकहित के सन्घर्ष मे अपनी खुशियो की आहुति दे रही है
इरोम चारू शर्मिला इस लडाई को आध्यात्मिक मानती है उनके अनुसार मेरा aअनशन मणिपुर के लोगों की ओर से है. This is not a personal battle – this is symbolic. यह व्यक्तिगत लड़ाई नहीं है - यह प्रतीकात्मक है.”, यह सत्य, प्रेम और शांति का प्रतीक 'है, .
इस कानून के खिलाफ व्यापक विरोध के बाद केंद्र ने विशेषज्ञ के पूर्व न्यायाधीश जीवन रेड्डी की अध्यक्षता में 2004 में इस कानून की समीक्षा समिति गठित. किया था पैनल ने 2005 मे केंद्र को उसकी सिफारिशों पर कार्रवाई को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की.commission had recommended the law should be repealed (" The Armed Forces (Special Powers) Act, 1958, should be repealed ," it notes in its recommendations. " The Act is too sketchy, too bald and quite inadequate in several particulars "..)

इस अहिन्सक आन्दोलन के बारे मे इस लिन्क पर http://manipurfreedom.org और जानकारी पाई जा सकती है

बुधवार, 9 दिसंबर 2009

मैं भी संत हो गया हू तलाश भक्तो की है

मेरे पडोसी जो भारत सरकार के एक ऐसे कमाऊ विभाग के पदधिकारी है जिससे सभी भय खाते है ये सब कुछ खाते है खातो को देख देख कर खाते है आप विभाग का नाम जान चुके होगे इनकी एक अदद पत्नी इन्हे इतना प्यार करती है कि यदि इनकी म्रृत्यु कमरे मे हो जाये तो भी ये लाश निकलने न दे नही प्रेमासक़्त हो कर नही लाभासक्त हो कर

आप गलत समझ रहे है जब तक लाश से दुर्गन्ध न उठ्ने लगे तब तक ये साहब के नाम पर बाबुओ को बुला बुला कर घूस व मधुर मोदक आदि खाती रहेगी देखने मे ये भारत के वित्त मन्त्रालय की वार्षिक समीक्षा पुस्तक की भान्ति है मेरा इनके घर आना जाना है एक दिन भाई साहिब ने अपने हनीमून के शैशव काल की तस्वीर दिखाई जो इन्होने सपत्नीक बीजापूर के गोल गुम्बद के समीप खिंचाई थी उन दिनो भाभी जी का व्यक़्तित्व इस कदर पाषाणवत था कि यह पता लगाना कठिन होता था कि भाभी जी कहाँ है व गोल गुम्बद कहाँ ? खैर मै उनकी कमनीयता की कम कमीनता का ज्यादा प्रशंसक हूँ मै अक्सर उनके इस तस्वीर को देख कर कहता हू कि आप ने कम उम्र मे विवाह का प्रस्ताव कैसे मान लिया

इनका हर काम विभागीय बजट से नही तो गैरविभागीय श्रोतो से हो जाता है जब भाभी जी को पुत्र पैदा हुआ पता नही उसका श्रोत क्या था क्यों कि भाई साहब के बारे मे लोकोक्ति आम है कि इन्होने बिना धन लिये अपनी कलम नही चलाई तो अपना पुत्र पैदा करने मे भाभी जी ने क्या प्रलोभन दिया होगा जब प्रसूति कक्ष मे भाभी जी भर्ती थी तो साहब परेशान थे कि काश प्रसव पीडा मुझे होती तो कम से कम विभाग वाले इस मौके पर मुझे घेरे रहते तथा प्रसव का खर्चा भी धनपशुओ से निकाला जाता खैर एक गज सदृश पुत्र की प्राप्ति हुइ ,लोगो ने साहब को बधाइया देनी शुरू कर दी वैसे बधाई तो मैने भी दी लेकिन यह रत्न का चक्कर समझ मे नही आया ,पता नही यह पुत्र भविष्य मे कौडी लायक भी ना हो सके लेकिन लोग है की अभी से रत्न रत्न चिल्ला रहे है क्योकि इतिहास गवाह है कि बडे बडे सम्राट साम्राज्यों का पतन अयोग्य उत्तराधिकारियो के चलते ही तो हुआ है लेकिन जन्म के समय तो ये उत्तराधिकारी लख्तेजिगर रत्न ही कहलाते होगे खैर साहब की किस्मत भी मुझे लगता है कि बहादुर शाह जफ़र से अधिक नही होने वाली

लोगो का क्या है कुछ भी कह डालते है राज की बात है कि भाभी जी भी साहब की धर्मपत्नी कहलाती है यदि यह धर्मभीरू नही होते तो ऐसा हरगिज नही कहते भाभी जी अक्सर साहब की दैहिक समीक्षा भी करती है उन्हे गालिया वग़ैरह भी सुनाती रहती है लेकिन करवाचौथ का व्रत बडी श्रध्दा से करती है ये पति को बहले ही पीटती हो लेकिन पराये मर्द से आँखे मिला कर बात नही करती आखिर किस एन्गिल से इन्हे पतिव्रता ना कहा जाये पति के लिये व्रत तो करती ही है

इनके घर से अक्सर सत्यनारायण की कथा मे शामिल होने का निमन्त्रण मिलता है तो मै ऐसे अवसर पर सौ काम छोड कर जाता हू ऐसा नही कि मै बहुत धार्मिक हू इसका खुलासा मै आज करता चलू दरअसल बात यू है कि ऐसे मौके पर गाई जाने वाली आरती की एक लाइन श्रध्दा भक्ति बढाओ सन्तन की सेवा से मेरा उत्साह बढ्ता है कि जिस दिन ये सन्त की सेवा करने निकलेगे उस दिन मुझ जैसा सरयूपाणी सन्त कहा पायेगे वैसे इसी कारण मैने कई उपनिषद आदि मगा कर शेल्फ़ मे सजा रखा है ताकि कभी तो इसका ख्याल करके ये मुझ जैसे सन्त की सेवा का व्रत ले ले मै अक्सर इन्हे बताता रहता हू कि इन कथावाचको को केवल दक्षिणा देनी चाहिये दान तो सर्वदा उच्च कुल के सन्सकारी वेदो को जानने वालो को ही देना चाहिये ऐरे गैरे उदरपोषक पन्डितो को नही ये सन्त सेवा नही अब देखे, कब इनकी नजर मुझ पर इस द्रिष्टिकोण से पडती है

वैसे मै इस लेख के माध्यम से बताता चलू वैसे मै आत्मप्रचार नही करता लेकिन मुझमे अनेक गुण सन्तो वाले है परद्र्व्येषु लोष्ठ्वत को मै अधिक महत्व देता हू जिससे उधार लेता हू उसे कभी लौटाने का पाप नही करता क्योन्कि सन्तो का काम ही है मानव मन से आसुरी प्रव्रितियो क नाश करना मैने जिन लोगो से भी उधार लिए है उनके मन से धन की आसक्ति को समापनीय ही कर दिया है जिन लोगो से भी मैने उधार खाये है उन्हे लौटाने का कभी भि गन्दा विचार मेरे मन मे कभी भी नही आया

सच्चे सन्त का यही तो काम होता है कि भक्तो के मन से काम क्रोध लोभ मोह की भावनायें समाप्त करना मेरे एजेन्डे मे प्राथमिकता सदैव लोभ मोह को समाप्त करने की रही है पैसे ना लौटाने से खिन्न मित्र क्रोधित तो होते है लेकिन इनका क्रोध कुछ दिनो के बाद स्वंय एक्स्पायरी डेट के बाद खत्म हो जाता है इस प्रकार लोभ मोह को समाप्त करने के मेरे प्रयास से मैने मित्रो का जिनसे मैने कर्ज लिया था उनका मन निर्मल कर दो बुराइयो को समाप्त कर दिया है अभी इन मित्रो के मन से काम को समाप्त करने का भी प्रयास कर रहा हू यह कार्य गुह्यातिगुह्य है सो इसका खुलासा बाद मे करूगा जब कुछ शिष्याये समर्पित नही हो जाती

कथा विषयान्तर हो गयी है मै सन्त बना पडोसी के पास बना हुआ हू देखे वह सपत्नीक कब सेवा भाव से जुटता है वैसे मैने उसे प्रोमोशन मे विलम्ब उचचतर जाच आदि का भय मुखाक्रिति के आधार पर बता दी है

वैसे मै एक बात का कायल हो चुक हू कि हिन्दूधर्म के बडे आयोजन बडे बेइमानों घूसखोरो पर ही टिके हुए है जिस दिन से इनकी आस्था यज्ञ हवन रामायण अखण्ड पाठ अभिषेक से उठ जायेगा | उस दिन के बाद हमारी सनातन स्कार की रक्षा कौन करेगा , आज जिन आयोजित कार्यक्रमों मे मै जाता हू उसके पीछैं यही धर्मपरायण घूसखोरो बेइमानों को ही पाता हू जिनके दान से पन्जीरिया व फ़ल प्रसाद के रूप मे प्रभु व हम जैसे भक्त पाते है यदि ये सन्सार मे नही रहे या इनकी आस्था प्रभु से उठ गयी उस दिन हमारे हिन्दु धर्म का क्षय हो जायेगा हे प्रभु इन्हे फ़लने फ़ूलने दो क्योकि य तो आपके कथनानुसार अपना उपार्जित धन तो आपकी सेवा-सुश्रुशा मे य सन्त की सेवा-सुश्रुशा मे लगा कर धर्मरक्षा मे लगे हुए है इनका कल्याण करो मेरे पडोसी अधिकारी को भी मुझे सन्त मानने व सेवा करने की सद्भावना दो

सोमवार, 23 नवंबर 2009

अजब प्रेम की गजब कहानी




मेरे पडोस मे एक बुजुर्ग है अच्छी नौकरी से रिटायर हुए है मकान जमीन सम्पत्ति सभी कुछ है सरकार पूर्वजन्मो के अपने पापो का प्रायश्चित करने हेतु इन्हे पेन्शन दे कर अपने पाप धुल रही है रिटायर होने के बाद कुछ समय वे आज के दौर मे नैतिकता व इमानदारी की ऐसी चर्चा करते थे जैसे इन्होने अपने आफ़िस मे इन्ही सब वस्तुओ की खेती शुरू की थी और कोई इनकी फ़सल पर आँख लगाये हुए बैठा हुआ है तथा इन सब वस्तुओ का कापी्राईट इन्ही के पास है
इन दिनो इन्हे शौक चर्राया है मुहल्ले की बहू बेटियो के चरित्रों पर एफ़ बी आइ की तरह नजर गडा कर रखना | पवित्रता का मन्त्र पढ कर ये अपने को पूरे दिन के लिये शुध्द मान लेते है ये हमेशा दूसरे की अपवित्रता के मोश्चराईजर से अपना मुँह चमकाते रहते है धवल चेहरे के साथ पान घुलाते हुए ये जब भी मुंह उठा कर बोलते है तो लगता है कि चाँद पर ही थूक देंगे जब भी मिलेगे तो मुह्ल्ले की लडकियो के भागने की पूर्व कथाये स्त्रियो के विवाह पूर्व गर्भपात की चर्चा वर्तमान पतिव्रताओ के प्रणय प्रसंगों की चर्चा मुझसे जरूर करते है मै पहले बुजुर्ग होने के नाते उनका लिहाज करता था लेकिन अब वे अझेल व अप्रासन्गिक हो गये है वे प्रायः अपने दिनों को याद करते है कि पहले का जमाना कितना अच्छा था कितनी अच्छाइयाँ समाज मे थी मानो अच्छाइयाँ सड्क किनारे खोमचे पर बिकती रह्ती थी और लोग अनजाने मे उसे मांग मांग कर चखा करते थे जिससे उन्के खून जिगर मे अच्छाइयों के किटाणु पाये जाते थे लेकिन मै जानता हू कि जितना बुरा जमाना आयेगा उतना ही ये अपने को स्वस्थचित्त व सुखी मह्सूस करेगे तब इन्हे उसी प्रकार गर्व होगा जैसे जार्ज पन्चम के सिक्को को आज कल के सिक्को के आगे मह्सूस होता है कि देखो इतनी मुद्राओ व गाधी की फ़ोटो लगे नोटों के आगे भी लक्ष्मी के रूप मे मेरी ही पूजा होती है इसी प्रकार पतनोन्मुख समाज मे वे पुराने चावल की भान्ति सुवासित होने क ढोंग रचते है कि किस प्रकार से हमने अपनी अक्षत अच्छाइयों को बचा रखी है
वे आज कल इन्टरनेट के माध्यम से होने वाली शादियो रीति नीति विश्वास परम्परा के विरूद्ध व्यथित है मैने एक दिन उनसे कहा कि जब एक युवा व युवती 18 वर्ष की होने पर सरकार चुन सकते है तो मन्गेतर चुनने मे कौन सी आपत्तिजनक है आप इस बात पर क्यों दुःखी होते है तब से वे मुझसे ही दुःखित हो गये है
जब मैने तफ़्सील मे जाकर पता लगाया तो पता ये चला कि उनकी लड्की ने बहुत पहले एक विजातिय लड्के से प्रेम किया था बात जब शादी तक पहुँचती तब उन्होने जबर्दस्ती एक ऐसे लड्के से उसकी शादी करा दी जिसका कुल गोत्र तो उंचा था कमाई कम थी पत्नी को प्यार भले ही कम करता था लेकिन दहेज को लेकर पीटता अधिक था जहिर है पुत्री अक्सर इस शादी को लेकर ताने सुनाती थी लेकिन वो इस पर कोई बयान नही देते थे देते भी तो क्या देते उन्हे तो यह आत्मिक सन्तोष था कि चलो उंचे कुल गोत्र खानदानी लोगो से ही तो पिट रही है कोई विजातीय अधर्मी से तो नही कम से कम अगला जन्म तो सुधर जायेगा
मै यही सोच रहा हू कि क्या प्रेम करने से पहले युवकों व युवतियों को एक दूसरे का कुल गोत्र जाति विस्वा पूछ कर प्रेम की शुरूवात करनी चाहिये वैसे मै अपना अनुभव बताऊ कि इन सब चक्करो के कारण ही मै प्रेम की शुरूवात ही नही कर सका जिस कुल गोत्र से बान्धा गया उसी से मन्त्रविद्ध हू लेकिन एक शायर का शेर इनदिनो पढा पता नही पहले क्यो नही पढ्ने को मिला तो अब यह खयाल आता है कि आदर्शवाद मे काफ़ी कुछ खोना पड्ता है शेर कुछ यू है
सरफ़रोशी की तमन्ना है तो सर पैदा कर,
जमाने से लडना है तो जिगर पैदा कर |
कौन सी शय है जहाँ जज्बा माशूक नही ,
शौके दीदार अगर है तो नजर पैदा कर |

तो मेरी सलाह ये है कि इन बुजुर्गो की बात पर ध्यान ना दे कर प्रेम आदि के मामले खुद ही निपटा लेना चाहिये ये बुजुर्ग तो प्रेम के नाम पर प्रेम चोपड़ा को ही जानते है जिन्दगी भर हनुमान चालीसा पढने का ढोंग करते हुए इन्होने बिना प्रेम किए ही परिवार में लाल तिकोन को ही वृत्त व अष्टभुजाकार ज्यामिति में बदल डाला तथा पूछने पर उसे हनुमान जी का आशीर्वाद व प्रसाद मान लिया


सोमवार, 9 नवंबर 2009

कौन कहता है गांधीवाद सामयिक नही है



कौन कहता है कि देश गांधी के दिखाए रास्तो से भटक गया हैजिधर देखो उधर ही महात्मा गाँधी मार्ग है और तो और ओबामा साहिब ने भी गांधी को आदर्श मान लिया ये अमेरिकी भी बड़े कौतुकी होते है वैसे ओबामा साहिब ने गांधी वाद को २००९ मेंआदर्श माना है जिसमे थोडा सा बदलाव आया है 1947 व 2009 के गांधी जी के बंदरो में भी जाहिर है प्रगति आई है ओबामा का इशारा प्रगतिशील भारत 2009 के बंदरो से था

राज तुम आगे बढो सब मराठी साथ है



आज़ पूरे विश्व मे बर्लिन की दीार को गिराने की 20 वी वर्ष गाठ मनाईं जा रही है वहीँ यह खबर भी आयी कि महाराष्ट्र विधानसभा मे अबू आजमी को हिन्दी मे शपथ लेने के कारण म न से के विधायक गणो ने हन्गामा किया तथा उन्हे हिंदी मे शपथ लेने पर टोकाटाकी हाथापाई की वैसे अबू आजमी ने भी उन्हे चप्पलें दिखाईं

वैसे मै इन सब नाट्क बाजियो पर प्रतिक्रिया व्यक्त करना समय की बर्बादी मानता हूँ जैसे वन्दे मातरम विवाद हम मे से अधिकाँश को वन्दे मातरम तो दूर सही तरी्के से जन गण मन भी गाने नही आता वे ऐसे लोगो से जिन्हे सद्दाम के कुवैत आक्रमण पर जश्न मनाते तथा सद्दाम की मौत पर शोक मनाते देखा है लेकिन तालिबानो के आक्र्मण पर कभी छाती पीट्ते नही देखा उनसे वन्दे मातरम गवा कर हम क्या हासिल करना चाहते है ? पता नही महाराष्ट्र का यह नाटक हिन्दी विरोध का था या अबू आज्मी का विरोध / सम्भव है वन्दे मातरम को ना गवाने की झुंझलाहट मे अबू आजमी को लपेट लिया गया हो वैसे इस पार्टी ने अपने नाम मे निर्माण व सेना जैसे हिन्दी शब्दों का प्रयोग क्योन कर रखा है यदि मराठी भाषा मे कोई अन्य शब्द हो तो उसका प्रयोग करना चाहिये क्योंकि इन शब्दबोधन से पार्टी ही दोगली लगने लगती है उसी प्रकार से विधायक राम कदम को भी अपना व अपने पूर्वजों का नाम शुद्धिकरण कर मराठी भाषा मे परिवर्तित कर लेनी चाहिये उत्तर भारतीय हिन्दी नामो के परित्याग से ही तन मन व सभी तंत्रिकाएं शुद्धरूप हो सकेगी वैसे भी हमे यह तो मानना ही पडेगा कि एक राष्ट्र के भीतर एक महाराष्ट्र है तो जहिर है कुछ विसंगतियों को तो देखना हमारी नियति ही है वैसे भी मुझे लगता है कि कुछ दिनो के बाद हम सम्विधान की कसम खाने पर भी विवाद देखेंगे तथा एक याचिका के फ़ैसले के बाद विधायको को यह छूट मिल जायेगी कि वह अपनी मनःसृष्ट भाषा मे किसी कहानी जैसे अलीबाबा और … या बाबा भंजक नाथ के नाम पर शपथ ले सकते है बर्लिन की दीवार भले टूट ज़ाये परंतु बोलीवुड की यह दीवार काफ़ी लम्बे समय तक महाराष्ट्र मे हाउस फ़ुल शो दिखाने वाली है जै महाराष्ट्र

हिंदुस्तान की सरजमीं पर हिंदी बोलने पर पीटने की घटना का जिक्र तो आज तक जम्मू-कश्मीर में भी सामने नहीं आया है।

जहाँ ३७० के कारण इतनी छूट मिलीहै महाराष्ट्र के विधायको ने अहिन्दीभाषी राज्यों के लिए पृथक आचारसंहिता का ही निर्माण कर डाला है

राज ठाकरे आगे बढ़ो, सब मराठी साथ है !
तुमच्य सर्व आमादारंचे अभिनंदन!!!!

नोट ऊपर के चित्र के रचनाकारों के आद्याक्षर कार्टूनों में अंकित है ऐसे चित्र उन्ही की संपत्ति है साभार प्रकाशित करना विवशता में हुआ है इनके चित्र को इनका महिमामंडन माना जाए


शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2009

कांग्रेस द्वारा जीत के बाद जनता को संदेश


जनता ने कांग्रेस को इस बार जिताया तो कांग्रेस का हाथ आम आदमी के साथ का नारा चित्रों की जुबानी कुछ इस तरह से बयाँ हुआ अब पूरा हाथ आम आदमी के हाथ नहीं है मंहगाई बेरोजगारी से त्रस्त जनता को कांग्रेस ऐसा संदेश दे रही है

सेमीनार आदि को सफल बनाने के नुस्खे एक शोध

सभा को सफ़ल करने के लिये तीन चीजो की आवश्यकता होती है अध्यक्ष मुख्य अतिथि तथा संचालक जब तक इन तीनो की खोज कोई आयोजक नही करता तब तक उसका आयोजन सफ़ल नही माना जा सकता
अध्यक्ष – प्रत्येक शहर मे कुछ स्थाई तथा कुछ अस्थायी अध्यक्ष होते है जिन्हे जनता जानती है तथा पह्चानती है ऐसे अध्यक्ष शहर की जान होते है लोक सभा हो शोकसभा हो राज सभा हो या खाज सभा हो ये अध्यक्ष इस भार को उठाने के लिये हमेशा तैयार रहते हैं
एक प्रोफेशनल अध्यक्ष वही होता है जो किसी आमन्त्रण को कुछ आनाकानी के बाद सन्कोच के साथ स्वीकारोक्ति दे जो नौसिखिये अध्यक्ष होते है वे आमन्त्रण पाते ही शेव बनाने मे लग जाते है तथा आयोजन स्थल पर पहुँचने के एक घंटे पूर्व तक शेव पर पाउडर सेंट से सुवासित हो कर लक्दक सफ़ेद कुर्ते शेरवानी मे तैयार हो कर आयोजकों की प्रतीक्षा करते है जिनकी दाढ़ी होती है वे अपनी दाढी मे उँगलियों को डाल डाल कर उसे उलझाऊँ बना देते है ताकि वे चिन्तक टाइप लगे यदि आयोजक वाहन के साथ आत है तो ये मूत्र विसर्जन आदि क्रिया करने के बाद वाहन मे बैठ जाते है अन्यथा की स्थिति मे ये किसी साधन से सभा मे पहुँच कर देरी से अग्रिम पन्क्ति मे तब पहुँचते है जब कोई देशभक्तिपूर्ण फ़िल्मी गाना बज रहा हो अग्रिम पन्क्ति मे पहुँचने क फ़ायदा यह होता है कि आयोजकों की नजर उन पर पड जाये
मन्च पर अध्यक्ष के बैठते ही माहौल गम्भीर हो जाता है सन्चालक जो अभी तक सियार की तरह हुआ हुआ कर रह होता है वे अचानक अमीन सयानी कि तरह आवाज निकाल कर अध्यक्ष की प्रन्शसा मे कुछ इश्किया शायरी के बल पर ऐसा समा बान्धते है जैसे अध्यक्ष न हुआ कोई फ़रिश्ता जमीन पर आ कर आमीन कर रहा है
आयोजनों मे सन्चालक की भूमिका महत्वपूर्ण होती है कुछ सन्चालक ऐसे कुचालक या कुपात्र होते है कि सम्वाद कि ऐसी तैसी कर डालते है इतिहास साक्षी है कि कई सन्चालको के चलते सभाओं मे जूते चप्पल चल जाते है आयोजन नही चल पाता
इस लिये आयोजको को कुशल सन्चालक की खोज ऐसे ही करना चाहिये जैसेकि लड्की का बाप इन दिनो वर ढूढ़ने निकलता है वैसे प्रत्येक शहर मे रेडीमेड सन्चालक आसानी से मिल जाते है जो प्राय: इश्क़ मे नाकाम शायर होते है जिन्हे कवि सम्मेलनों मे जगह नही मिलती
अब थोडी चर्चा मुख्य अतिथि की हो जाये वैसे इस प्रजाति के जीव हर नगर शहर मे बहुतायत मे होते है जैसे मन्डलायुक्त एस डी एम कुलपति कुलाधिपति ( राज्यपाल से इतर ) महपौर नगर पालिका अध्यक्ष आदि
मुख्य अतिथि जितना ही विषय से अनभिज्ञ हो उतना ही अच्छा होता है उसकी अनभिज्ञेय होना उसके भाषणबाजी मे जान डाल देता है श्रोता भावविभोर व भावशून्य दोनो स्थितियो के बीचोंबीच डोलता हुआ समझ नही पाता की वह किस लिये आया है तथा इस सभा से उसे कुछ लाभ होने वाला है कि नही यही तो आयोजन की सफ़लता का राज है कि श्रोता पूरीतरह से असमंजस मे पडा रहे तथा अन्त तक यह स्थिति बनी रहे इसमे मुख्य अतिथि के अज्ञानी होने से बडा लाभ होता है कभी कभी मुख्य अतिथि को बार बार बैनर देखना पड़ता है कि वे किस सभा मे आये हुए है सफ़ल मुख्य अतिथि वही है जो बार बार घडी देख कर एह्सास कराता रहे कि सन्चालक उसके अतिव्यस्त होने ka बखान कराके यह अहसास करात रहे कि सभी के सौभाग्य से वे आज हमे धन्य करने आ पधारे है वैसे मुख्य अतिथि व द्वार पूजा के हाथी मे कोई खास अन्तर नही होता दोनो शोभाकार ही होते है शान से धीरे धीरे आते है और काम हो जाने के बाद वन्दना पूजा कराने के बाद खिसक लेते है
आयोजक कभी कभी सरस्वती वन्दना करने वाली बालाओ को कनखी से देख कर अपने बालो पर हाथ फ़ेर लिया करते है जिस आयोजन मे सरस्वती वन्दना वाली बालाये नही होती वहाँ ये सन्स्कार की दुहाई देते है कि सन्स्कारो का पतन हो गया है दूसरे अर्थो मे आयोजक सन्स्कार विहीन है जो मुख्य अतिथि आयोजन व आतिथ्य से प्रसन्न हुआ रहता है वह आयोजकों को उनके समाज़ के प्रति उत्तरदायित्व की महत्ता बता कर सस्था की बडाई कर विशुद्ध आशीर्वाद दे कर फ़ूट लेते है लेकिन जो माइक देर तक पकड कर बोलना चाह्ते है उनकी विद्वता की पोल खुल ही जाती है लोकप्रिय अतिथि जल्दी से आशीष दे कर अगले कार्यक्रम की ओर बढ जाते है
रही बात अध्यक्षों की तो पूरे सभा मे सबसे निरीह प्राणी बन कर सबको सुनता है कभी विषयवस्तु तो कभी विषयासक्त होता रहता है बार बार गालो पर हाथ फ़ेर फ़ेर कर सोचता है शेव कैसी बनी है कभी फूल तो कभी फूलदान को देखता तकता है कभी उन मालाओ को देखता है फ़िर फ़ोटोग्राफ़रो को देख कर स्मित ओठ फ़ड्फ़डाता है
उसके भाषण की बारी नैराश्य पूर्ण होती है क्यो कि बोलने को कुछ बचता ही नही जो अनुभवी अध्यक्ष होते है वे तो पूर्व वक्ताओ मे से किसी से सहमत होते हुए सभा की सार्थकता का बखान करते हुए आने वाले किसी भी आयोजन मे बुलवाने पर अग्रिम स्वीकृति दे डालते है लेकिन कुछ अध्यक्ष पूरे सभा की विषय से अचानक असहमत हो जाते है ऐसा प्राय: नौसिखिये अध्यक्ष जो कब्ज के शिकार रहते है वही करते है वह असहज रूप से किसी वक्ता जिसने वाहवाही लूटी हो उससे असहमत हो कर कुछ भी कह जाते है जैसे वक्ता ने कहा हो कि आधी गिलास भरी है तथा आधी गिलास खाली है यह अपनी सोच है इस पर अध्यक्ष यह कहेगा “” जैसा कि पूर्व विद्वान वक्ता ने कहा कि आधी गिलास खाली है लेकिन जगत मे कुछ भी तो रिक्त नही जो रिक्तिमय है वह भी हवा से भरा है यदि आप हवा हटा कर निर्वात की बात करते है तो या तो उसमे प्रकाश होगा या अन्धेरा दोनो ही स्थितियाँ समाज के लिये चिन्तन की बात है इस पर हमे सोच-विचार करने की जरूरत है यदि समाज मे अन्धेरा बढ्ता है तो इस पर विचार करना होगा मै चाहूँगा कि इस दिशा मे संस्था और अधिक सोचे वैसे अन्धेरा बढ रहा है इस लिये मै अपनी वाणी को विराम दे कर आयोजको को धन्यवाद देता हू “ इस कथन पर सभा समाप्त होती है
भविष्य के आयोजकों के लिये यह लघु शोध पथप्रदर्शक बने यही कामना है
सेमीनार में सावधानी पूर्वक इन पात्रो के चयन से सेमीनार सभाए अवश्य सफल होंगी

सोमवार, 5 अक्तूबर 2009

मरदाना ताकत की दवा की जरूरत युवकों व बुजुर्गों को है


आज कल जिधर देखिये स्त्री विमर्श की चर्चा सुनाई देती है लेकिन मर्द विमर्श कि चर्चा कम हीसुनाई देती है स्त्री विमर्श मे स्त्रिया क्या करे क्या पहने कैसे चले आदि की चर्चा सामान्यतः होतीहै जिससे मर्द उन पर किसी नारी मूलक अत्याचार करने को मजबूर हो जाये. इस पर काफ़ीचर्चा हो चुकी है मै आज वोह मसला उठा रहा हूं जिस्के बारे मे अख्बारो मे खास तौर से हिन्दीअख्बारों में पन्ने भरे रह्ते है तथा लोग कभी ध्यान नही देते शायद ही कभी स्वास्थ्य मन्त्री ने इस पर बयान दियाहो यह बीमारी है मर्दाना कमजोरी की जो पढ्ने पर लगता है कि आबादी का बडा हिस्सा इससे पूरे साल बीमाररहता है
भला हो इन बी एम एस डाक्टरो का जो अर्हनिश सेवा कर रहे है यहां तक कि अपना वाहन रेलवे स्टॆशन परमरीजो को ढोने के लिये खडॆ किये रहते है वैसे इनकी इस समाज सेवा को देखते हुए कभी भी हमारे नेता अभिनेताने इनका सम्मान नही किया यह बडॆ ही दुःख की बात है इस मामले मे हमारा समाज क्र्तघ्न है जिसकी भर्तस्ना कीजानी चाहिये यह मर्दाना कमजोरी कब से शुरू हुइ इसका ठीक ठीक समय का अन्दाजा लगाना कठिन है लेकिनवीर गाथा काल के बाद इस रोग का प्रकोप शायद हुआ होगा जो बिहारी आदि कवियो ने समाज से छुपा कर रखाअपनी कविता मे कही भी नायिका से इसका जिक्र तक नहीं कराया कि नायक के इस रोग से ग्रस्त हो जाने केकारण नायिका असमय ही विरहणि हुई जा रही है वह वैद्यो के द्वारों पर जाते जाते कुम्हला गयी है पीली सरसो केफूल सी दिख रही है सहेलिया ताने मार रही है कि द्र्ग भी उल्झाया तो ऐसे कमजोर व्यक्ति से जो खुद बिस्तर कीसिल्वटे गिन गिन कर रात बिताता हो आदि--आदि
लेकिन रीति काल के कवियो ने सब कुछ गुडी गुडी सा लिख मारा भला आप ही सोचे, जिस बिहारी मतिरामघनानन्द को पढ कर आज कल के छात्र बौरा जाते है तथा क्लास मे ही कमजोर दिख्ने है उस काल के साहित्य जोसमाज का दर्पण था उसकी रचना करते समय क्या कोई कमजोर मर्द इन्हे नही दिखा मुझे तो लगता है कि शायदये कवि ही इन बीमारो का गुप्त इलाज करते होगे तथा ठीक होने के बाद उन्हे अपने पैम्प्लेट मे यह मुफ़्त कविताओकी सचित्र पुस्तिका देते होगे ताकि उन्हे कभी निराश ना होना पडे
मुगल काल मे भी इस रोग का कोई खास जिक्र नही मिलता हो सकता है खानदानी हकीमो को दरबार से फ़ुर्सत हीना मिलती हो कि वे आम लोगो की खास बीमारी के बारे मे ध्यान दे वे शाही इलाज करते रहे राज वैद्यो ने कभीजनता की ओर देखा तक नही और परिणाम सामने था लडाई मे जनता हारती रही रियासते गुलाम होती गयीलेकिन ना तो शाहो ने अपने शाही हकीमो को प्राईवेट प्रैक्टिस की छूट कभी नही दी सो उसका खामियाजा पूरे देश नेभुगता
अन्ग्रेज व्यापारी मुगल शासको को ताकत की दवा देने के नाम पर फ़ैक्ट्रिया खोलने की इजाजत पा कर क्या क्याकरते रहे वह इतिहास मे लिखा हुआ है लेकिन औरन्ग्जेब के बाद के मुगलो के बारे मे जो लिखा गया है कि वेअयोग्य कमजोर शासक सिध हुए इसके बारे मे इतिहासकारो की लेखनी चुप रहती है अन्ग्रेजो ने दवा के नामपर खडिया का पाउडर मुगलो तथा रियासतो को सप्लाई करते रहे मुफ़्त के सैम्पल की दवा सब खाते रहे देशगुलाम होता गया
आयुर्वेद मे इसका इलाज मुफ़ीद है वह किसी इतिहासकार ने नही बतायी यह लिख कर चुप हो गये कि फ़ला लडाईमे परास्त होने के बाद फ़ला राजा ने जन्गलो मे घास की रोटी खायी सेना को फ़िर इकठा किया तथा राजधानी परहमला कर दिया ये ताकत उन्हे जन्गलो मे असली शिलाजीत आदि से ही तो मिलती होगी यह अलग बात रही होगीकी मात्रा आदि गलत हो जाने के कारण इन राजाओ को सफ़लता नही मिली कारण था शाही हकीमो राज वैद्यो कीसलाह ना लेना उन्हे हार के बाद स्वर्ण भस्म युक्त दवा तथा गिजा लेना चाहिये था औषाधिया गर्म दूध या धारोष्णदूध से लेना चाहिये था जो उन्होने नही किया तो कम्जोरी के लिये आयुर्वेद को कैसे दोषयुक्त माना जाये सलाह मानीनही तथा पूरे देश को भुगतना पडा
आज़ादी मिलने के बाद कुछ गिने चुने खानदानी हकीमो डाक्टरो का समाज को शुक्र गुजार होना चाहिये जिन्होनेपूरे समाज को खास तौर से मर्दो को नया जोश ताकत दिलाने के अपने दादा परदादा लकड्दादा के दिखाये हुयेखानदानी नुस्खे के शाही इलाज को आम जनता के लिये सुलभ कर दिया है जिसका परिणाम है कि घर पर देश परकोइ एक आख से देखने की हिम्मत नही कर सकता हा ये अलग बात है कि इन मर्दो की सन्तान कमजोर हो रही हैलेकिन उसके लिये ये मर्द ही जिम्मेदार है वह अपनी घर वालियो को पिस्ता बादाम गिजा नही खिला पाते तोऔरते एनिमिया शिकार होगी तथा उनकी सन्ताने कमजोर होगी इसके लिये सरकार ने जननी सु जैसी योजनाचला रखी है मर्दो को उन्हे वहा भेजना चाहिये हम तो सिर्फ़ मर्द को ताकत देते है ताकि उन्हे कही निराश ना होनापडॆ
गत चुनाव में मनमोहन की कमजोरी का ऐसा बखान हुआ कि मुझे ऐसा लगा कि कहीं उन्हें भी इन दवाखानों मेंमर्दाना ताकत कि दवा लेनी पड़े तथा ताकत का प्रमाण पत्र भा पा के मुंह पर दे मारे पर नरेगा का टानिक हीउन्हें मजबूत कर शिलाजित की तरह कर दिया वाजीकरण इसे कहते हैं राजनीति में मरदाना ताकत वोटर छापअसली केशर भस्म से बनाती है इसे कौन नहीं जानता जब सत्ता में होते हैं तो शिलाजीत कि नहीं शीला जी कीजरूरत होती है वैसे भारत में मरदाना ताकत के क्षेत्र में जितना शोध कार्य हुआ है उतना परमाणु बम के परीक्षण मेंनहीं हुआ | मैं तो कभी यह सोच कर हरान हो जाता हूँ की यदि सभी मर्द ताक़तवर हो जायें तो बेचारी स्त्रियों को तोपड़ोसी देशो से इंपोर्ट करना पड़ जाएगा तथा तब जनसँख्या वृद्धि की दर क्या होगी भला है की काफी लोग अभीशाही इलाज करा रहे हैं नहीं तो हरम के लिए metromonial गे-tromonial के अलग से विज्ञापन छपते शुक्र हैकी अभी इस प्रकार का शाही इलाज से ताकतवर कोई शाह सामने नहीं आया अन्यथा स्त्रियों पर क्या क्या बीततीये अकल्पनीय है अभी तो कमजोर मर्द नपुंसक स्खलन्शील पतनशील तथाकथित मर्द ही स्त्रियों पर तरह तरह केअत्याचार बलात्कार कर रहे हैं जिससे नारिया आसानी से बाहं छुडा लेती हैं यदि ताकत के बाद भुजाओं में रावनका बल जाए तो क्या होगा
सरकार भले ही इस बीमारी पर ध्यान ना दे रही हो लेकिन हमारे हिन्दी अखबारो के सम्पादको का मै शुक्रिया अदाकरना चाह्ता हू जिन्होने तमाम फ़ार्मेसियो का प्रचार प्रसार कर अपने सामाजिक दायित्वो का निरन्तर परिचयदिया है यदि ये अखबार ना होते तो हमे कैसे पता चलता कि फ़ला फ़ला फ़ार्मेसी के गोल्ड मेद्लिस्ट डाक्टर साहब नेजापानी आर्गन डेव्लपर मशीन मगा ली है इस्के लिये लोगो को वीजा पास्पोर्ट के लिये भट्कना नही पडेगा इनतमाम वर्धक यन्त्रो के प्रचार प्रसार मे प्रिन्ट मीडिया के प्रचार प्रसारको का हम तहे दिल से शुक्रिया अदा करते हैकि सरकारी उदासीनता के बावजूद इन्होने इन खानदानी हकीमो को इज्जत बख्शी है वैसे तो इन हकिमो कोविदेशियो से ही सम्मान मिलता रहा है हमरे राजनेताओ मे अमर सिह मे भी इतना शऊर नही है कि वे इनचिकित्सको को अपने हाथो से सम्मानित कर सके इस राजनीतिक उपेक्षा के शिकार सम्म्मान के हक्दारो कोसम्पादको से सम्मनित कराने की मुहीम मे आप सभी शामिल हो यही गुजारिश सबसे है
जब हम पढा करते थे तो एक कहावत कहते थे कि MATH IS LIKE A HUMAN ANTI FERTILITY DRUG इस सूत्र से तो ऐसे सभी छात्र जो डाक्टर बने उन्हें मरदाना कमजोरी का मरीज स्वयं हो जन चाहिए यह शोध काविषय है गुलाम नबी साहब आप इन शिफा खानों का बारे में कोई प्रतिक्रिया देंगे जो आपके परिवार नियंत्रणकार्यक्रम को कबाड़ खाने में पंहुचा रहे हैं
जय हो क्लिनिक व शिफाखाने जो बचपन की गलतियों को जवानी में सुधारने का दावा करते हो जवानी की गलतियों को बुढापे तक सुधारते चलते हो काश बोर्ड परीक्षाओं के एक्जामिनर भी आप लोगो जैसे होते तो वाकई कई लोगो की नादानिया व परेशानियाँ आज खुशियों में तब्दील हो जाती | खुदा ऐसी हिकमत बोर्ड एक्ज़मिनरों को दे देता तो बहुत से पापाओं को अच्छी नौकरी मिल जाती तथा वे सुखी रोटी बगैर दाल के ही वो ताकत रखते की जमाना देखता काश ऐसा हो जाता