शुक्रवार, 30 अप्रैल 2010
सन्त काशी छोड़ चित्रकूट पहुंचे
मै कुछ दिनो से ब्लाग की दुनिया से कटा रहा देर से आने के लिये खेद है आप सब भी यही सोचते होगे कि बाबा के रूप मे आने की कसमसाहट से कही मै वाकई कही आश्रम तो नही खोल लिया कहते है कि कभी ना कभी जीभ पर सरस्वती बस जाती है ऐसा ही कुछ हादसा मेरे साथ हुआ पता नही कैसे यह बात सरकार तक यह बात पहुच गई तथा सरकार या कहे प्रभु की माया के प्रकोपवश मुझे जनहित मे जाडे मे ही चित्रकूट भेज दिया गया हरिद्वार उत्तरखन्ड मे है सो वहाँ भेज नही सकते थे नही तो लगे हाथो आश्रम के बारे टेंडर आदि डाल कर कुछ सोचता
चित्रकूट के बारे मे मै क्या कहूँ कहा तो रहीम दास ने है जब वे जहॉगीर के दरबार से निर्वासित हो कर चित्रकूट मे एक भड्भूजे के यहॉ भाड़ झोक रहे थे तो महाराजा रीवा ने उन्हे अपने राज्य मे बुला कर आश्रय देने की पेशकस की तो रहीम जी का उत्तर था
चित्रकूट मे बस रहे रहिमन अवध नरेश
जा पर विपदा परत है सो आवत यहि देश
वस्तुतः भगवान राम ने अपने वनवास का बारह वर्ष यही चित्रकूट मे बिताया था इसे चित्रकूट धाम का नाम दिया गया है इसी के नाम पर यहा मन्डल बना दिया गया है नाम के विपरीत धाम के स्थान पर यहाँ झाम ज्यादा है धाम कम ऐसी पावन धरती पर विपदा के मारे लोग ही दूर से नौकरी कर रहे है बुन्देलखन्ड की विवशता विभीषिका तथा विपत्ति का अन्तहीन दौर देखने को मिल रहा है
मै जब चित्र्कूट पहुचा तो दो प्रमुख घटनायें घटी एक नाना देशमुख का निधन और दूसरी इच्छधारी बाबा का पुलिस द्वारा चित्रकूट लाया जाना इच्छाधारी बाबा के साथ कतिपय उच्च अधिकारी की फ़ोटो और उनके प्रभावपूर्ण क्रियाओ की मीमांसा हो रही थी
मैने तो सोचा था कि बी बी से दूर रह कर यानी पत्नि और ब्राडबैण्ड (बी बी ) दोनो नशे से दूर रह कर यही कुछ चेले चेलनियो के साथ आश्रम खोल दूँगा पर सत्यानाश हो इच्छाधारी सन्त का जो अपने ही गोत्र का निकला यदि मै अपना सरनेम द्विवेदी बता दूँ तो क्या होगा यही सोच कर सन्त बन कर आश्रम खोलने का विचार त्याग कर त्यागी बना हुआ बैठा हू मौके की तलाश मे हू जब यहा तक पहुच ही गया तो आश्रम कभी ना कभी तो खुल कर ही रहेगा यही कामना है
चून्कि अब यहा वैकल्पिक ब्राडबैण्ड बी बी की व्यवस्था हो गई है तो आप सब से फ़िर जुदा ना होगे, त्यागी हो गया हू इस लिये परिवार के विकल्पो की बात गुप्त रहेगी अब तो सारा समाज ही मेरा परिवार है हरि ओम
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