एक घटना यद् आती है प्रसंग उन दिनों का है जब गोस्वामी तुलसी दास राम कथा सुनाते थे \ उन दिनों अकबर के नव रत्नों मे से एक अब्दुर्र रहीम खानखाना भी राम कथा का श्रावण करने तुलसी दास के राम कथा के पंडाल मे धीरे से पीछे बैठ कर भक्ति का रस पान करते थे एक दिन गोस्वामी जी ने उन्हें पहचान लिया और कहा की आप जैसा भक्त व सही दरबार का नवरत्न सामान्य दर्शको के पीछे बैठ कर भजन सुने अच्छा नहीं लगता टू इस पर रहीम ने विनम्रता से जबाब दिया की जहाँ राम की चर्चा हो रही हो वहाँ रहीम की क्या औकात रहीम जहाँ है वोही उसकी थिक जगह है अर्थात जहाँ भगवान् की बात हो वहाँ सारे अहम् का त्याग कर के ही जाना चाहिए यदि हम भगवान् के पास भी अहम् के साथ जातें हैं तो समपर्ण कैसा और त्याग कैसा ?
पर आज कल जो भी ऊँचे पदों पर आसीन हैं या प्रशाशन के पदाधिकारी हैं वो धार्मिक स्थलों पर भी अपने वी आई पी होने का एहसास जताते हुए पूजा संपन्न करते है भले उससे जनता को परेशानी हो उससे उन्हें कोई मतलब नहीं है बस उनके वी आई पी सम्मान को ठेस नहीं लगाना चाहिए अभीप्रधान मंत्री के वनारस दौरे मे प्रशाशन की तरफ़ से श्रधालुओं को जो दूर दूर से आए हुए थे उन्हें तीन घंटो के लिए बाबा विश्वनाथ के दर्शन करने से वंचित कर रखा जब सारी चेकिंग के पश्चात् ही कोई प्रवेश पा सकता है मन्दिर प्रंगन मे मात्र फूल और प्रसाद हाथों मे लेकर तो क्या खतरा था या प्रशासन को वी आई पी पने को बचाने का या आम जनता जिसे जनता जनार्दन भी कहा जाता है उससे वी आई पी को दूर रखने की कवायद सारे गलियों को सुबह से ही सील कर दिया गया था अघोषित कर्फ्यू का माहौल बना दिया गया क्या मिलिटरी या तानाश्हओं वाले देशो मे इससे भिन्न व्यस्था रहती होगी क्या प्रजातंत्र की यही विवशता है की गवर्नमेंट / गवर्नमेंट सेवक अपने को स्वम्भू वी आई पी मान कर भगवान् के यहाँ भी अपनी दादागिरी करें इनका बस चले तो ये (छोटे वी आई पी पुलिस और प्रशाशन के जनता के सेवक ) बाबा विश्वनाथ को किसी हरकारे /सिपाही को भेज कर अपने बंगले मे बुला लेते की बाबा चले आओ ,वी आई पी इन्तेजार नही कर सकते बाबा के यहाँ कौन वी आई पी है यह प्रश्न कौंध रहा है बाबा या जनता या ये अहम् को पुष्ट करते तथाकथित सेवको की फौज क्या ये रहीम के प्रकरण से कुछ सीख नहीं सकते