रविवार, 27 दिसंबर 2009
त्यागपत्र के अवसर पर अध्यक्षीय भाषण
“आज समाचारपत्रों के माध्यम से पता चला कि आन्ध्र प्रदेश के महामहिम राज्यपाल महोदय ने स्वास्थ्य कारणों से अपने पद से त्यागपत्र दे दिया बडे दुःखित मन से ये पोस्ट लिख रहा हूं जो राज्य अपने राज्यपाल को स्वास्थ्यकर दवायें ना उपलब्ध करा सके उस राज्य सरकार को भंग कर देना चाहिये
वैसे नारायणदत्त ज़ी वस्तुतः नारायणमूर्ति थे मोहिनी माया की जिसे योग माया भी कहा जाता है उसे पहचानने के बाद मान्यवर ने उस विषयगामी मायाविनी को समाप्त करने का मन बना ही लिया था लेकिन सत्यानाश हो स्टिन्ग आपरेशन चलाने वालो की जिसने इस पुण्यार्थ कार्य को इतना घिनौना प्रचार कर दिया
हमे कान्ग्रेस के प्रवक्ता के आज के वक्तव्य को नही भूलना चाहिये जिन्होने इस अवसर को राजनीतिक परंपरा का उच्च आदर्श बताया है कल जो घटनाचक्र घटा वह भी राजनीति का उच्च आदर्श था यह अवश्य है कि इस पर किसी पार्टी ने मुँह नही खोला
हमारे यहाँ आदि काल से राज प्रसादो मे कोई हवन व आध्यात्मविद्या का कार्यक्रम नही चलता रहा था इतिहास गवाह है कि राजभवनो मे रनिवास और भोगविलास की समानान्तर गौरवशाली परंपरा रही है मुझे इसमे तनिक भी सन्देह नही है कि यदि स्वास्थ्य ठीक ठाक रहता तो महोदय राजकाज के और उच्च प्रतिमान स्थापित करने मे सफ़ल होते
वैसे विषकन्याओ ने कइ राज्यो का विनाशन किया था इसी का शिकार आप भी हुए है विषकन्याओ के विष की काट के लिये आन्ध्र प्रदेश सरकार ने कोई उपाय नही किया था यह बडी खतरनाक बात है वास्तव मे यह सरकार अक्षम व कमजोर है नारायणी कोप व शाप तुम्हे खा जायेगा रोस्सैया !!!
भारतीय राजनीतिज्ञों की परंपराओं के वाहक नर शार्दूल पन्डित जी आपने सभी बुजुर्गो को सर उठा कर जीनेवाला बना दिया है केशरी व मकरध्वज खाने-पीने के शौकीनों को आपने हरा भरा कर डाला है बुजुर्गो मे एक नया कान्फ़िडेन्स जगा है लोग बाग इन जाडो के दिन मे भी उत्तराँचल की पहाड़ियॉ मे जा कर जडी बूटी सन्जीवनी की तलाश मे जाने की कामना कर रहे है कुछ लोग तो तत्काल आरक्षण भी करा लिये है इससे उत्तरान्चल मे पर्यटन को भी बढावा मिलेगा आम लोगो के चेहरे खिल रहे है
त्यागपत्र जेब मे लेकर राजभवनों मे घुटन व अस्वस्थकर माहौल मे बने रहना भी प्रजातन्त्र का गौरवशाली क्षण है आपका त्यागपत्र सभी नेताओं के लिये आदर्श व अनुकरणीय है विश्वसनीय साथियों की आवश्यकता , छोटी छोटी भूलो के प्रति गहरी सावधानी असत्य कथन पर अन्त तक टिके रहना फ़िर अपने स्वास्थ्य को पद से ऊपर मान कर अन्ततः पदत्याग व सन्यास का आत्मबल एक राजनेता के अनिवार्य गुण है आप इसके मूर्तिमान उदाहरणस्वरूप है आप दीर्घायु हो शतायु हो तथा स्वास्थ्यलाभ करके समाजसेवा तथा समाजोद्धार का कार्य पूर्व की ही भान्ति करते रहे यही भगवान से प्रार्थना है “
रविवार, 20 दिसंबर 2009
एक चिठ्ठी मैंने भी लिखी है यूं पी कों बाटने के लिए पी एम् कों
1 राज्य समाप्त हो कर जब जिलो की इकाइयो मे प्रशासित होगा तो प्रान्तीय अस्मिता व व्यक्तित्व की लडाई स्वतः समाप्त हो जायेगी जब मराठी पन्जाबी बिहारी हैदराबादी मद्रासी का बिल्ला ही खत्म हो जायेगा तो रोज रोज के झगडे ट्न्टे स्वतः समाप्त ही हो जाने है
2- वैसे भी राज्य या राजधानी के नाम होने से किसी गाँववासी तह्सीलवासी या जिले के व्यक्ति के व्यक्तित्व भाषा संसकार विकास से कोई सीधा सादा संबन्ध कभी भी नही रहा है राज्यो के बनने से छात्रो का सामान्य ज्ञान जरूर प्रभावित हुआ है पिछड़ो व दलितों को कई बार ऐसे प्रश्नो मे उलझा कर कि फ़ला राज्य कब बना किसने अनशन किया कौन पहला सी एम या गवर्नर रहा राज्य बनने के बाद कौन सी सन्ख्या बडी है राज्य की वर्षगाँठ की सन्ख्या या मुख्य मन्त्रियो या आम चुनाव की अब भला बताईये गणित के प्रश्न इन्टरव्यू मे पूछने पर बच्चे क्या उस राज्य के प्रश्न से बर्बाद होने पर ये असफ़ल छात्र इस देश या उस राज्य के हितैषी कभी हो सकेगे ? यह यक्ष प्रश्न है जिसका हल सिर्फ़ मेरे पास है इन राज्यों को ही समाप्त कर देना
3 राज्यों को समाप्त कर जिलो को सीधे राज्येतर शक्ति देने से कई लाभ होंगे जो निम्न है
क – प्रान्तीय पार्टियाँ अपने औकात मे आ जायेन्गी जब इनकी जिला स्तर की इकाइया हो जायेन्गी तब राज्य के कद्दावर व सुप्रीमो नेता लोग जिले मे जा कर म्याउ म्यौउ करेगे
ख- राज्य स्तर पर भ्रष्टाचार समाप्त हो जायेगा जब राज्य ही नही रहेगा तो राज्यस्तर का कैसा भ्रष्टाचार ? देश के भ्रष्टाचार का सेन्सेक्स भी गिरेगा क्योकि केवल सान्सदो के भ्रष्टाचार पर ही सबकी निगाहे लगी रहेगी
ग- जिलो के भ्रष्टाचारी क्या खा कर राज्य के या देश के नेताओ की भ्रष्टता का मुकाबला करेंगे
घ—जिलो मे इमानदारी के पौधे उगेगे अब जब ट्रान्सफ़र पोस्टिंग का खेल ही नही होगा तो चन्दौली क्या खा कर गजियाबाद का मुकाबला भ्रष्टाचार मे करेगा हा वन विभाग के मामले मे तो चन्दौली ही टाप रहेगा खैर जब लखनऊ की डिमान्ड नही होगी तो बाल बच्चो की मिठाई के लिये कोई अधिकारी वह भी जिले की नई व्यवस्था मे टाप पर बैठ कर इत्ती सी बेइमानी क्यो करने लगा अब तक तो ये सब सचिवों मन्त्रियो निदेशकों के लिए ये पाप करते थे अब किनके लिये ये सब करेंगे
ग—इससे सभी अधिकारी सन्त की कोटि मे आ जायेंगे क्योकि सभी वाल्मिकी की श्रेणी मे हो जायेंगे
घ -- जिलो को राज्य का दर्जा दिये जाने पर केन्द्र को कोई खास वित्तीय बोझ नही पडेगा जो जैसा है जहॉ है की तर्ज पर घोषणा कर दी जाय सन्साधनो का वही उपयोग हो जो उपलब्ध हो मानव श्रम का विभाजन नही होगा ऐसी दशा मे विभागो के ईमानदार निदेशको सचिवो प्रमुखो को सरप्लस अधिकारी कर्मचारी घोषित होगे लेकिन वे आसानी से अपने विशेषज्ञताओं वाले विभागो के खोमचे लखनऊ मे लगा कर जीविका चला सकते है जैसे दुग्ध सचिव डेयरी की दूकान फ़िशरी वाले सचिव तसले मे मत्स्य अन्गुलिका उद्यान सचिव मलिहाबादी आम का व्यापार कर सकते है भाषा सचिव प्रिन्टरों पर प्रूफ़ रीडिग का काम कर सकते है इसके अलावा अधिकाश सचिव प्रमुख सचिव किचेन गार्डेन मे सब्जिया उगा सकते है जो ये प्राय: गोष्ठियो मे बताया करते है इससे राजधानी लखनऊ जो तब मात्र लखनऊ राज्य कहा जायेगा उसकी आय बढाने मे सहायक होगे तथा वैराग्य व धर्म की स्थापना मे भी ये सभी वाल्मिकि तुल्य अधिकारी मन्त्री सचिव यू डी ए आदि सन्त हो जायेन्गे इसमे से कुछ लोग अपने प्लाटो पर आश्रम भी खोल सकते है
लखनऊ की धौन्स पहले से कम नही होगी क्योन्कि सचिवालव विधानसभा आदि को सहारा आदि कम्पनियो को लीज पर दे कर उससे अच्छी आय बनाई जा सकती है जो इस जिले के विकास मे सहायक होगी
च --जिले का गवर्नर जिला कलेक्टर होगा वैसे भी आज कल कलेक्टर कलेक्ट कम रिफ़्लेक्ट ज्यादा कर रहे है गवर्नरी भी इसी तरह हो जायेगी फ़र्क केवल केन्द्र का होगा वैसे भी यू पी के आई ए एस इतने गरीब हो गये है कि बेचारो को अपनी आय घोषित करने मे भी शर्म आ रही है आखिर अन्गोछा व कछ्छा तो नही दिखा सकते जो तह्सीलो से उन्हे गिफ़्ट मिले थे इसी पशोपेश मे ये दिन काट रहे है गवर्नरों की तरह काम करने मे कम से कम बच्चो की फ़्यूचर तो बन जायेगी इसी बहाने गाव गाव घूमना तो नही पडेगा लाट साह्ब बन कर नौकरी होगी जिलाधिकारी के रूप मे पार्टी के जिलाअध्य्क्षो की जी हजूरी करने की आदत तो छूट जायेगी
छ –इसमे कोई अधिक खर्च नही आने वाला केन्द्रीय विभागों का काम पूर्ववत उनके कार्यलयाध्यक्ष देखते रहेंगें कलेक्रेट सचिवालय बन जायेगा क्लर्को का नाम बदल कर सचिवालय सहायक हो जायेगा कमिश्नर का पद सरप्लस हो जायेगा गवर्नर के रूप मे कलेक्टर चाहेगा तो ऐसे लोगो को मानद पदो पर मानदेय पर नियुक्त कर सकेगा
ज-राजधानी से फ़ोन आदि न आने के कारण खर्चा बचेगा साथ ही दबाब ना पड्ने से जनता का काम भी हो सकेगा प्रशासन दुःशासन की भाँति अब काम नही कर सकेगा लखनऊ आने जाने के टी ए डी ए के ख़र्चे भी बचेगे
झ –केन्द्रीय बजट सीधे जिलो तक आने के कारण अब बीच का लास 15% रहेगा इससे 85 पैसे जनता के विकास मे खर्च होने लगेगे इससे विकास की गंगा नाली के रूप मे अपने प्रदूषित हो कर बहने लगेगी जिससे विकास का हैजा गावो मे ना फ़ैल जाये इस के लिये खन्ड विकास अधिकारी होगे जिन्हे नयी व्यवस्थाओं मे पाख्नड विकास अधिकारीवर्ग कहा जायेगा इनका काम कुछ दिनो तक विकास की बाढ से जनता को उसी प्रकारों से बचाना है जैसे कि आज कल ये करते आ रहे है म्रृत्यु उपरान्त मुर्दो के पेन्शन भी जारी करने का वितरण करने का सम्वेदनशील काम भी ये करते रहेगे
आखिरी समस्या बिजली की होगी चूँकि प्रत्येक जिलो मे पावर प्लांट नही है इसका हल भी कलुआ के फ़ार्मूले से हल हो जायेगा कलुआ कहता है कि अन्ग्रेजो व रायबहादुरो के पेशाब से दिये जलने की कहानियां उसने अपने दादा जी से सुनी है इसी तर्ज पर इन नये गवर्नरों के बाथरूमो से निकलने वाले मूत्राशयों को पावरप्वाइंट बना कर पचास तथा अन्य अधिकारियो के द्वारा इसी प्रकार पचास मेगावाट के पावर प्लान्ट लगाये जायेंगे यदि कोई कमी पडेगी तो ये भूतपूर्व मन्त्री मुख्यमंत्रियों की सेवाये जिले ले सकेगे इनका समय समय पर मूत्रदान के द्वारा बिजली पैदा कर के वैसे भी इन्होने समाज व अपने राज्य को मल मूत्र के सिवा कुछ तो नही दिया है इस लिए यह सेवा तो ये आसानी से कम से कम अपने जिलो के विकास के लिये बिजली के लिये तो दे सकते है धरती पुत्र ,जाट पुत्र हो चाहे दलित पुत्र इतनी सेवा तो करनी होगी नही तो इनकी पेन्शन बन्द कर दी जायेगी |
मैने एक पत्र प्रधानमन्त्री को लिख दिया है इस योजना के बारे मे पत्र पर सही पता व टिकट भी लगा दिया है अब गेन्द केन्द्र के पाले मे है क्यो मै चिट्ठी नही लिख सकता ???
मेरे एक अभिन्न मित्र ने इस योजना का विरोध किया और कहा कि आपके सोचते रहने से कुछ नही होनेवाला मैने उत्तर दिया कि यदि जनता के सोचने से कुछ नही होने वाला तो जनता के इस दिशा मे ना सोचने से कौन सा अभिनव होने वाला इस पालिटिक्स से तो क्या सोचना छोड दिया जाये अब फ़ैसला आप पर है मै सही हू या मित्र
रविवार, 13 दिसंबर 2009
अनशन की राजनीति में भेद क्यों ????
क्या अनशनो पर राजनीति करना ठीक है अभी 11 दिनो के अनशन पर भारत सरकार आन्ध्र सरकार तथा सम्पूर्ण विप्क्ष इस अनशन को समाप्त करने तथा एक अलग राज्य बनाने पर एकमत दिखाई दिये आड्वाणी जी की ्सदन मे चिन्तातुर मुख मुद्रा को देख कर मै खुद बडी चिन्ता मे पड गया इस उम्र मे इतनी चिन्ता ठीक नही है लेकिन एक अनशन जो गत गत दस वर्षो से एक महिला एक कानून के खिलाफ़ कर रही है उसके लिये कोई चिन्ता नही है और ना ही उस कानून मे आवश्यक सन्शोधन का ही आश्वासन ही सरकार कर रही है क्या व्यक्ति पर एक कानून इतना अधिक मह्त्वपूर्ण हो गया है कि सरकार इसे बद्लना नही चाह्ती
विगत दिनो मानवाधिकार दिवस , नोबल पुरस्कार तथा तेलन्गाना के लिये अनशन ये तीन घट्नाये हुई है लेकिन मणिपुर के इस अन्हिसक सत्याग्रह को कही भी ना तो मान्यता हि मिल रही है और ना ही विपक्ष चिन्तित दिख रहा है क्या इस लिये कि मणिपुर छोटा राज्य है तथा उसकी खबरो पर ज्यादा ध्यान दिया जाना लोग उचित नही समझते बात तभी समझ मे आती है जब आन््दोलन हिन्सक हो जाता है
. सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम 1958 (एएफएसपीए) भारतीय सशस्त्र बलों को विशेष अधिकार अनुदान के लिए गिरफ्तारी, हिरासत में, पूछताछ या दण्ड से मुक्ति से मात्र संदेह पर किसी भी व्यक्ति को मार डालते हैं. मणिपुर (जहां ki शर्मिला निवासी है) और उसके उत्तर के पड़ोसी राज्यों पूर्वी भारत इस अधिनियम के अधीन लगभग आधी सदी के लिए गुजर रहा है. 2 नवम्बर 2000 के दिन मणिपुर मे मोलाम के निकट आतंकवादियों ने सशस्त्र बलो पर बम फ़ेका जिसकी जबाबी कार्यवाही मे सशस्त्र बलो ने दस नागरिकों की गोली मार कर हत्या कर दी
ऐसा नही है कि यह कोई नयी घटना थी मणिपुरियों के लिये अतीत मे ऐसी कई घट्नाये हो चुकी थी शर्मिला इस घटना के विरुद्ध एक प्रदर्शन मे शामिल होने गयी थी लेकिन इस घट्ना ने इस कवियत्री के मानस पर ऐसा असर छोड़ा कि वह वहकओ नवम्बर 2000 को इस दमनकारी कानून को समाप्त करने के लिये अनशन पर बैठ गयी तब से उसे आत्महत्या करने के प्रयास मे गिरफ़्तार कर लिया गया तथा जेल मे डाल दिया गया जहाँ उसने जमानत लेने से भी इन्कार कर दिया तब से एक अन्तहीन सन्घर्ष शुरू हो गया अब उसके अनशन को तोडने के लिये उसे जबरदस्ती नाक के रास्ते से भोजन दिया जाता है अदालत रिहा करती है वह फ़िर अनशन पर बैठती है तथा फ़िर उसे गिरफ़्तार कर लिया जाता है उसके नाक के रास्ते एक पाइप लगा दिया गया है अस्पताल व जेल तथा यन्त्रणादायक इस प्रक्रिया लगातार 10वे वर्ष मे प्रवेश कर चुका है 30 वर्ष की आयु से जारी अनशन ने शर्मिला के शरीर को कमजोर कर दिया है उसका चेहरा देखने पर सलीब से लट्के ईसा मसीह की तस्वीर की याद आती है
उसका शरीर भले ही कमजोर हो गया है लेकिन उसके इरादे फ़ौलाद की तरह मजबू्त है इस सन्घर्ष मे उसकी मां ने भी अपना योग्दान दिया है यद्यपि वह पढी लिखी नही है लेकिन दमन के कानून के प्रतिकार को बखूबी समझती है उसने इन दस वर्षो मे वह इस भय से कि कही उसके आन्सू शर्मिला के सन्कल्प को कमजोर न कर दे इस लिये उसने यह फ़ैसला किया है कि जब तक उसका उद्देश्य पूरा नही हो जाता तब तक वह उसके सामने नही आयेगी गजब की सन्कल्प शक्ति माँ व बेटी दोनो की है इस जज्बे को शत शत नमन जो लोकहित के सन्घर्ष मे अपनी खुशियो की आहुति दे रही है
इरोम चारू शर्मिला इस लडाई को आध्यात्मिक मानती है उनके अनुसार मेरा aअनशन मणिपुर के लोगों की ओर से है. This is not a personal battle – this is symbolic. यह व्यक्तिगत लड़ाई नहीं है - यह प्रतीकात्मक है.”, यह सत्य, प्रेम और शांति का प्रतीक 'है, .
इस कानून के खिलाफ व्यापक विरोध के बाद केंद्र ने विशेषज्ञ के पूर्व न्यायाधीश जीवन रेड्डी की अध्यक्षता में 2004 में इस कानून की समीक्षा समिति गठित. किया था पैनल ने 2005 मे केंद्र को उसकी सिफारिशों पर कार्रवाई को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की.commission had recommended the law should be repealed (" The Armed Forces (Special Powers) Act, 1958, should be repealed ," it notes in its recommendations. " The Act is too sketchy, too bald and quite inadequate in several particulars "..)
इस अहिन्सक आन्दोलन के बारे मे इस लिन्क पर http://manipurfreedom.org और जानकारी पाई जा सकती है
बुधवार, 9 दिसंबर 2009
मैं भी संत हो गया हू तलाश भक्तो की है
मेरे पडोसी जो भारत सरकार के एक ऐसे कमाऊ विभाग के पदधिकारी है जिससे सभी भय खाते है ये सब कुछ खाते है खातो को देख देख कर खाते है आप विभाग का नाम जान चुके होगे इनकी एक अदद पत्नी इन्हे इतना प्यार करती है कि यदि इनकी म्रृत्यु कमरे मे हो जाये तो भी ये लाश निकलने न दे नही प्रेमासक़्त हो कर नही लाभासक्त हो कर
आप गलत समझ रहे है जब तक लाश से दुर्गन्ध न उठ्ने लगे तब तक ये साहब के नाम पर बाबुओ को बुला बुला कर घूस व मधुर मोदक आदि खाती रहेगी देखने मे ये भारत के वित्त मन्त्रालय की वार्षिक समीक्षा पुस्तक की भान्ति है मेरा इनके घर आना जाना है एक दिन भाई साहिब ने अपने हनीमून के शैशव काल की तस्वीर दिखाई जो इन्होने सपत्नीक बीजापूर के गोल गुम्बद के समीप खिंचाई थी उन दिनो भाभी जी का व्यक़्तित्व इस कदर पाषाणवत था कि यह पता लगाना कठिन होता था कि भाभी जी कहाँ है व गोल गुम्बद कहाँ ? खैर मै उनकी कमनीयता की कम कमीनता का ज्यादा प्रशंसक हूँ मै अक्सर उनके इस तस्वीर को देख कर कहता हू कि आप ने कम उम्र मे विवाह का प्रस्ताव कैसे मान लिया
इनका हर काम विभागीय बजट से नही तो गैरविभागीय श्रोतो से हो जाता है जब भाभी जी को पुत्र पैदा हुआ पता नही उसका श्रोत क्या था क्यों कि भाई साहब के बारे मे लोकोक्ति आम है कि इन्होने बिना धन लिये अपनी कलम नही चलाई तो अपना पुत्र पैदा करने मे भाभी जी ने क्या प्रलोभन दिया होगा जब प्रसूति कक्ष मे भाभी जी भर्ती थी तो साहब परेशान थे कि काश प्रसव पीडा मुझे होती तो कम से कम विभाग वाले इस मौके पर मुझे घेरे रहते तथा प्रसव का खर्चा भी धनपशुओ से निकाला जाता खैर एक गज सदृश पुत्र की प्राप्ति हुइ ,लोगो ने साहब को बधाइया देनी शुरू कर दी वैसे बधाई तो मैने भी दी लेकिन यह रत्न का चक्कर समझ मे नही आया ,पता नही यह पुत्र भविष्य मे कौडी लायक भी ना हो सके लेकिन लोग है की अभी से रत्न रत्न चिल्ला रहे है क्योकि इतिहास गवाह है कि बडे बडे सम्राट साम्राज्यों का पतन अयोग्य उत्तराधिकारियो के चलते ही तो हुआ है लेकिन जन्म के समय तो ये उत्तराधिकारी लख्तेजिगर रत्न ही कहलाते होगे खैर साहब की किस्मत भी मुझे लगता है कि बहादुर शाह जफ़र से अधिक नही होने वाली
लोगो का क्या है कुछ भी कह डालते है राज की बात है कि भाभी जी भी साहब की धर्मपत्नी कहलाती है यदि यह धर्मभीरू नही होते तो ऐसा हरगिज नही कहते भाभी जी अक्सर साहब की दैहिक समीक्षा भी करती है उन्हे गालिया वग़ैरह भी सुनाती रहती है लेकिन करवाचौथ का व्रत बडी श्रध्दा से करती है ये पति को बहले ही पीटती हो लेकिन पराये मर्द से आँखे मिला कर बात नही करती आखिर किस एन्गिल से इन्हे पतिव्रता ना कहा जाये पति के लिये व्रत तो करती ही है
इनके घर से अक्सर सत्यनारायण की कथा मे शामिल होने का निमन्त्रण मिलता है तो मै ऐसे अवसर पर सौ काम छोड कर जाता हू ऐसा नही कि मै बहुत धार्मिक हू इसका खुलासा मै आज करता चलू दरअसल बात यू है कि ऐसे मौके पर गाई जाने वाली आरती की एक लाइन श्रध्दा भक्ति बढाओ सन्तन की सेवा से मेरा उत्साह बढ्ता है कि जिस दिन ये सन्त की सेवा करने निकलेगे उस दिन मुझ जैसा सरयूपाणी सन्त कहा पायेगे वैसे इसी कारण मैने कई उपनिषद आदि मगा कर शेल्फ़ मे सजा रखा है ताकि कभी तो इसका ख्याल करके ये मुझ जैसे सन्त की सेवा का व्रत ले ले मै अक्सर इन्हे बताता रहता हू कि इन कथावाचको को केवल दक्षिणा देनी चाहिये दान तो सर्वदा उच्च कुल के सन्सकारी वेदो को जानने वालो को ही देना चाहिये ऐरे गैरे उदरपोषक पन्डितो को नही ये सन्त सेवा नही अब देखे, कब इनकी नजर मुझ पर इस द्रिष्टिकोण से पडती है
वैसे मै इस लेख के माध्यम से बताता चलू वैसे मै आत्मप्रचार नही करता लेकिन मुझमे अनेक गुण सन्तो वाले है परद्र्व्येषु लोष्ठ्वत को मै अधिक महत्व देता हू जिससे उधार लेता हू उसे कभी लौटाने का पाप नही करता क्योन्कि सन्तो का काम ही है मानव मन से आसुरी प्रव्रितियो क नाश करना मैने जिन लोगो से भी उधार लिए है उनके मन से धन की आसक्ति को समापनीय ही कर दिया है जिन लोगो से भी मैने उधार खाये है उन्हे लौटाने का कभी भि गन्दा विचार मेरे मन मे कभी भी नही आया
सच्चे सन्त का यही तो काम होता है कि भक्तो के मन से काम क्रोध लोभ मोह की भावनायें समाप्त करना मेरे एजेन्डे मे प्राथमिकता सदैव लोभ मोह को समाप्त करने की रही है पैसे ना लौटाने से खिन्न मित्र क्रोधित तो होते है लेकिन इनका क्रोध कुछ दिनो के बाद स्वंय एक्स्पायरी डेट के बाद खत्म हो जाता है इस प्रकार लोभ मोह को समाप्त करने के मेरे प्रयास से मैने मित्रो का जिनसे मैने कर्ज लिया था उनका मन निर्मल कर दो बुराइयो को समाप्त कर दिया है अभी इन मित्रो के मन से काम को समाप्त करने का भी प्रयास कर रहा हू यह कार्य गुह्यातिगुह्य है सो इसका खुलासा बाद मे करूगा जब कुछ शिष्याये समर्पित नही हो जाती
कथा विषयान्तर हो गयी है मै सन्त बना पडोसी के पास बना हुआ हू देखे वह सपत्नीक कब सेवा भाव से जुटता है वैसे मैने उसे प्रोमोशन मे विलम्ब उचचतर जाच आदि का भय मुखाक्रिति के आधार पर बता दी है
वैसे मै एक बात का कायल हो चुक हू कि हिन्दूधर्म के बडे आयोजन बडे बेइमानों घूसखोरो पर ही टिके हुए है जिस दिन से इनकी आस्था यज्ञ हवन रामायण अखण्ड पाठ अभिषेक से उठ जायेगा | उस दिन के बाद हमारी सनातन सस्कार की रक्षा कौन करेगा , आज जिन आयोजित कार्यक्रमों मे मै जाता हू उसके पीछैं यही धर्मपरायण घूसखोरो बेइमानों को ही पाता हू जिनके दान से पन्जीरिया व फ़ल प्रसाद के रूप मे प्रभु व हम जैसे भक्त पाते है यदि ये सन्सार मे नही रहे या इनकी आस्था प्रभु से उठ गयी उस दिन हमारे हिन्दु धर्म का क्षय हो जायेगा हे प्रभु इन्हे फ़लने फ़ूलने दो क्योकि य तो आपके कथनानुसार अपना उपार्जित धन तो आपकी सेवा-सुश्रुशा मे य सन्त की सेवा-सुश्रुशा मे लगा कर धर्मरक्षा मे लगे हुए है इनका कल्याण करो मेरे पडोसी अधिकारी को भी मुझे सन्त मानने व सेवा करने की सद्भावना दो