आज कल u.p. को 4भागो मे बँटवारे की बात चल रही है लेकिन मेरी सोच कुछ अलग तरीके की है जो अति दूरदर्शिता पूर्ण है यदि सभी 71 जिलो को ही राज्य का दर्जा मिल जाये तो आम आदमी के जीवन मे खुशियो की बहार आ जायेगी तथा विकास का रास्ता हाईवे की तरह से बन जायेगा सामाजिक राजनीतिक निम्न परिवर्तन होगे
1 राज्य समाप्त हो कर जब जिलो की इकाइयो मे प्रशासित होगा तो प्रान्तीय अस्मिता व व्यक्तित्व की लडाई स्वतः समाप्त हो जायेगी जब मराठी पन्जाबी बिहारी हैदराबादी मद्रासी का बिल्ला ही खत्म हो जायेगा तो रोज रोज के झगडे ट्न्टे स्वतः समाप्त ही हो जाने है
2- वैसे भी राज्य या राजधानी के नाम होने से किसी गाँववासी तह्सीलवासी या जिले के व्यक्ति के व्यक्तित्व भाषा संसकार विकास से कोई सीधा सादा संबन्ध कभी भी नही रहा है राज्यो के बनने से छात्रो का सामान्य ज्ञान जरूर प्रभावित हुआ है पिछड़ो व दलितों को कई बार ऐसे प्रश्नो मे उलझा कर कि फ़ला राज्य कब बना किसने अनशन किया कौन पहला सी एम या गवर्नर रहा राज्य बनने के बाद कौन सी सन्ख्या बडी है राज्य की वर्षगाँठ की सन्ख्या या मुख्य मन्त्रियो या आम चुनाव की अब भला बताईये गणित के प्रश्न इन्टरव्यू मे पूछने पर बच्चे क्या उस राज्य के प्रश्न से बर्बाद होने पर ये असफ़ल छात्र इस देश या उस राज्य के हितैषी कभी हो सकेगे ? यह यक्ष प्रश्न है जिसका हल सिर्फ़ मेरे पास है इन राज्यों को ही समाप्त कर देना
3 राज्यों को समाप्त कर जिलो को सीधे राज्येतर शक्ति देने से कई लाभ होंगे जो निम्न है
क – प्रान्तीय पार्टियाँ अपने औकात मे आ जायेन्गी जब इनकी जिला स्तर की इकाइया हो जायेन्गी तब राज्य के कद्दावर व सुप्रीमो नेता लोग जिले मे जा कर म्याउ म्यौउ करेगे
ख- राज्य स्तर पर भ्रष्टाचार समाप्त हो जायेगा जब राज्य ही नही रहेगा तो राज्यस्तर का कैसा भ्रष्टाचार ? देश के भ्रष्टाचार का सेन्सेक्स भी गिरेगा क्योकि केवल सान्सदो के भ्रष्टाचार पर ही सबकी निगाहे लगी रहेगी
ग- जिलो के भ्रष्टाचारी क्या खा कर राज्य के या देश के नेताओ की भ्रष्टता का मुकाबला करेंगे
घ—जिलो मे इमानदारी के पौधे उगेगे अब जब ट्रान्सफ़र पोस्टिंग का खेल ही नही होगा तो चन्दौली क्या खा कर गजियाबाद का मुकाबला भ्रष्टाचार मे करेगा हा वन विभाग के मामले मे तो चन्दौली ही टाप रहेगा खैर जब लखनऊ की डिमान्ड नही होगी तो बाल बच्चो की मिठाई के लिये कोई अधिकारी वह भी जिले की नई व्यवस्था मे टाप पर बैठ कर इत्ती सी बेइमानी क्यो करने लगा अब तक तो ये सब सचिवों मन्त्रियो निदेशकों के लिए ये पाप करते थे अब किनके लिये ये सब करेंगे
ग—इससे सभी अधिकारी सन्त की कोटि मे आ जायेंगे क्योकि सभी वाल्मिकी की श्रेणी मे हो जायेंगे
घ -- जिलो को राज्य का दर्जा दिये जाने पर केन्द्र को कोई खास वित्तीय बोझ नही पडेगा जो जैसा है जहॉ है की तर्ज पर घोषणा कर दी जाय सन्साधनो का वही उपयोग हो जो उपलब्ध हो मानव श्रम का विभाजन नही होगा ऐसी दशा मे विभागो के ईमानदार निदेशको सचिवो प्रमुखो को सरप्लस अधिकारी कर्मचारी घोषित होगे लेकिन वे आसानी से अपने विशेषज्ञताओं वाले विभागो के खोमचे लखनऊ मे लगा कर जीविका चला सकते है जैसे दुग्ध सचिव डेयरी की दूकान फ़िशरी वाले सचिव तसले मे मत्स्य अन्गुलिका उद्यान सचिव मलिहाबादी आम का व्यापार कर सकते है भाषा सचिव प्रिन्टरों पर प्रूफ़ रीडिग का काम कर सकते है इसके अलावा अधिकाश सचिव प्रमुख सचिव किचेन गार्डेन मे सब्जिया उगा सकते है जो ये प्राय: गोष्ठियो मे बताया करते है इससे राजधानी लखनऊ जो तब मात्र लखनऊ राज्य कहा जायेगा उसकी आय बढाने मे सहायक होगे तथा वैराग्य व धर्म की स्थापना मे भी ये सभी वाल्मिकि तुल्य अधिकारी मन्त्री सचिव यू डी ए आदि सन्त हो जायेन्गे इसमे से कुछ लोग अपने प्लाटो पर आश्रम भी खोल सकते है
लखनऊ की धौन्स पहले से कम नही होगी क्योन्कि सचिवालव विधानसभा आदि को सहारा आदि कम्पनियो को लीज पर दे कर उससे अच्छी आय बनाई जा सकती है जो इस जिले के विकास मे सहायक होगी
च --जिले का गवर्नर जिला कलेक्टर होगा वैसे भी आज कल कलेक्टर कलेक्ट कम रिफ़्लेक्ट ज्यादा कर रहे है गवर्नरी भी इसी तरह हो जायेगी फ़र्क केवल केन्द्र का होगा वैसे भी यू पी के आई ए एस इतने गरीब हो गये है कि बेचारो को अपनी आय घोषित करने मे भी शर्म आ रही है आखिर अन्गोछा व कछ्छा तो नही दिखा सकते जो तह्सीलो से उन्हे गिफ़्ट मिले थे इसी पशोपेश मे ये दिन काट रहे है गवर्नरों की तरह काम करने मे कम से कम बच्चो की फ़्यूचर तो बन जायेगी इसी बहाने गाव गाव घूमना तो नही पडेगा लाट साह्ब बन कर नौकरी होगी जिलाधिकारी के रूप मे पार्टी के जिलाअध्य्क्षो की जी हजूरी करने की आदत तो छूट जायेगी
छ –इसमे कोई अधिक खर्च नही आने वाला केन्द्रीय विभागों का काम पूर्ववत उनके कार्यलयाध्यक्ष देखते रहेंगें कलेक्रेट सचिवालय बन जायेगा क्लर्को का नाम बदल कर सचिवालय सहायक हो जायेगा कमिश्नर का पद सरप्लस हो जायेगा गवर्नर के रूप मे कलेक्टर चाहेगा तो ऐसे लोगो को मानद पदो पर मानदेय पर नियुक्त कर सकेगा
ज-राजधानी से फ़ोन आदि न आने के कारण खर्चा बचेगा साथ ही दबाब ना पड्ने से जनता का काम भी हो सकेगा प्रशासन दुःशासन की भाँति अब काम नही कर सकेगा लखनऊ आने जाने के टी ए डी ए के ख़र्चे भी बचेगे
झ –केन्द्रीय बजट सीधे जिलो तक आने के कारण अब बीच का लास 15% रहेगा इससे 85 पैसे जनता के विकास मे खर्च होने लगेगे इससे विकास की गंगा नाली के रूप मे अपने प्रदूषित हो कर बहने लगेगी जिससे विकास का हैजा गावो मे ना फ़ैल जाये इस के लिये खन्ड विकास अधिकारी होगे जिन्हे नयी व्यवस्थाओं मे पाख्नड विकास अधिकारीवर्ग कहा जायेगा इनका काम कुछ दिनो तक विकास की बाढ से जनता को उसी प्रकारों से बचाना है जैसे कि आज कल ये करते आ रहे है म्रृत्यु उपरान्त मुर्दो के पेन्शन भी जारी करने का वितरण करने का सम्वेदनशील काम भी ये करते रहेगे
आखिरी समस्या बिजली की होगी चूँकि प्रत्येक जिलो मे पावर प्लांट नही है इसका हल भी कलुआ के फ़ार्मूले से हल हो जायेगा कलुआ कहता है कि अन्ग्रेजो व रायबहादुरो के पेशाब से दिये जलने की कहानियां उसने अपने दादा जी से सुनी है इसी तर्ज पर इन नये गवर्नरों के बाथरूमो से निकलने वाले मूत्राशयों को पावरप्वाइंट बना कर पचास तथा अन्य अधिकारियो के द्वारा इसी प्रकार पचास मेगावाट के पावर प्लान्ट लगाये जायेंगे यदि कोई कमी पडेगी तो ये भूतपूर्व मन्त्री मुख्यमंत्रियों की सेवाये जिले ले सकेगे इनका समय समय पर मूत्रदान के द्वारा बिजली पैदा कर के वैसे भी इन्होने समाज व अपने राज्य को मल मूत्र के सिवा कुछ तो नही दिया है इस लिए यह सेवा तो ये आसानी से कम से कम अपने जिलो के विकास के लिये बिजली के लिये तो दे सकते है धरती पुत्र ,जाट पुत्र हो चाहे दलित पुत्र इतनी सेवा तो करनी होगी नही तो इनकी पेन्शन बन्द कर दी जायेगी |
मैने एक पत्र प्रधानमन्त्री को लिख दिया है इस योजना के बारे मे पत्र पर सही पता व टिकट भी लगा दिया है अब गेन्द केन्द्र के पाले मे है क्यो मै चिट्ठी नही लिख सकता ???
मेरे एक अभिन्न मित्र ने इस योजना का विरोध किया और कहा कि आपके सोचते रहने से कुछ नही होनेवाला मैने उत्तर दिया कि यदि जनता के सोचने से कुछ नही होने वाला तो जनता के इस दिशा मे ना सोचने से कौन सा अभिनव होने वाला इस पालिटिक्स से तो क्या सोचना छोड दिया जाये अब फ़ैसला आप पर है मै सही हू या मित्र
4 टिप्पणियां:
वाह महराज -जवाब आये तो भी छाप दीजियेगा !
मैं भी आपके साथ हूं. मुझे भी शामिल समझिये हां यदि धरना-प्रदर्शन-आमरण अनशन पर बैठ रहे हों तो बता दीजियेगा. हमारा भी फोटू छप जायेगा.
अद्भुत दूर दृष्टि एवं सरल क्रियान्वन. काश सरकारी महकमों में तथ्यों को परखने की इतनी ही सरल प्रक्रिया होती! लेकिन ऐसा हुआ तो उन समितियों का क्या होगा जिनसे सरकार का कार्य चल रहा है या सरकार की वजह से इन समितियों का दाना पानी चल रहा है विचारनीय प्रश्न है . इस लिए इस तरह के निर्णय समितियां ले या ब्लॉग के जरिये हल करा लिए जाएँ इस मुद्दे पैर एक समिति की जरूरत है
झकास लिखे हैं जी। लेकिन पता ‘१० जनपथ’ का डालना था। खामखा रीडायरेक्ट होकर वहाँ जाने में टाइम खोटी होगा।
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