सोमवार, 11 जनवरी 2010

कलेक्टर के सीने पर पत्थर और निर्देश का पालन

सुबह से ही आफ़िस का माहौल उखडा हुआ था राजधानी से आदेश आया था कि सभी सरकारी दफ़्तरो मे नीले रंग के पर्दे लगने चाहिये मुख्य सचिव ने जिलाधिकारियो को निर्देशित करते हुए कहा था कि नीला रंग आकाश का है जिसके नीली चादर के नीचे सभी धर्मानुयाई हिन्दू मुस्लिम पिछ्डे कुचले अगडे बिगडे सभी समान तरीके से दैनिक नित्य क्रियाये कर रहे है
इस समानता का भाव आफ़िसो मे भी प्रतीकात्मक तरीके से दर्शाने हेतु अमुक नेता की पुण्य तिथि पर सभीआफ़िसो मे नीले पर्दे लगा कर सूचित करे यदि किसी विभाग मे बजट की समस्या हो तो वह वित्त विभाग को अपनीमांग बता कर बजट ले सकता है जिलाधिकारी प्रत्येक विभाग की जरूरतो के अनुसार आकस्मिक निधि ( दैवीआपदा फ़न्ड ) से धन आहरित कर सकते है
पर्दे सप्लाई करने के लिये राजधानी की कुछ फ़र्मो के नाम सुझाये गये थे जो एप्रूव्ड रेट पर सप्लाई कर सकते थेवैसे जिलाधिकारियो को यह भी सलाह दी गइ थी कि वे चाहे तो स्थानीय बाजार से भी इन्ही दर पर सप्लाई लेसकते है पेमेन्ट के पूर्व फ़र्मो को मुख्यालय से स्वीकृति लेनी होगी
जिलाधीश युवा थे उनका मन बार बार भडासी हो रहा था नीतिया पारदर्शी होनी चाहिये और जनता से पर्दा भी होनाचाहिये खाक हो मुए नेता जी कि पता नही क्यो इनकी म्रृत्यु तिथि पुण्य तिथि मे कैसे बदल जाती है जिन्दगी भरपाप किये और मरे तो पुण्य तिथि मे कन्वर्ट कर दिये यदि इनकी म्रृत्यु तिथि पुण्यपरक थी तो जन्म तिथि तो जरूरपाप तिथि मे गिनी जानी चाहिये
तभी फ़ैक्स की शू शू और उसके बाद हाई कमान की कड्कती आवाज ने जिलाधीश को इतना विक्षिप्त सा कर दियाकि उन्होने अर्दली को बुला कर कहा जाओ एक बडा सा पत्थर ले आओ
हुजूर पत्थरअर्दली ने फ़र्शी सलाम ठोंकते हुए पूछा
क्यो सुनाई नही दिया क्या बेवकूफ़”?
जी हुजूर अभी लाया भागते हुए स्टेनो बाबू से कहा हाकिम बडा सा पत्थर माँग रहे है स्टेनो ने पहले तो दिमागलगाया फ़िर जब कुछ नही समझ मे आया तो कागज खोजने के बहाने पता लगाया कि साहब कौन सी फ़ाइल देखरहे थे मामला वही पर्दे की आपूर्ति का था | स्टेनो ने अपनी लियाकत का फ़ायदा उठाते हुए फ़ौरन सप्लायर को फ़ोनलगाया साहब से जल्द आकर मिल लो वर्ना देख़ते रह जाओगे मामला बिगड़ रहा है
सेठ मुकुन्दी लाल जिन्हे सप्लाई का ठेका मिला था वे डी एम वित्त को साथ लेते हुए बन्गले पर पहुँचने ही वालाथा कि कलेक्टर साहब कोर्ट चले गये वैसे कोर्ट मे बैठ्ना इन्हे रास नही आता था क्योकि यहाँ तो वही होता जोवकील चाहते थे
डी एम साहब ने जासूसी पूछ ताछ करनी शुरू कर दी यदि साहब को पत्थर चाहिये तो कितना बडा चाहियेंसरकारी चाहिये कि गैर सरकारी कितनी मात्रा मे चाहिये आदि आदि
प्रश्न मन मे गून्ज रहे थे जिलाधीशो को पत्थर देनेयोग्य कोई शासनपत्र तो जारी नही हुआ है यदि साहब ने पूछ हीलिया कि केवट राम आप बताओ शासनादेश क्या कहता है तो वे तो निरुत्तर हो जायेंगे आज तक डीएम साहिब नेकभी के राम कह कर नही पुकारा था पूरा नाम या तो उनके बाबू जी लेते थे या फ़िर डी एम साहब
कोई भी मसला होता था तो वे ही बुलाये जाते और डीएम साहब के द्वारा कोई व्यवस्था दी जाती तो वे तपाक सेबोलतेसर आप जो कह रहे है उसके लिये तो 1959 ,60 या (कोई भी वर्ष जो डीएम के जन्मवर्ष से पहले का होताउसी का ) से ही गवर्नर्मेन्ट के स्टैन्डिन्ग आर्डर है बात बन जाती डीएम साहब का आत्मविश्वास बढ जाता
लेकिन ये पत्थर का क्या चक्कर है ?
फ़िर उन्होने सिर खुजाते हुए अर्दली से पूछा कि जब साहब पत्थर मँगवाए थे तो उनकी मुखमुद्रा कैसी थी वे क्याकर रहे थे ?
अर्दली बोलाहुजूर उन्गलिया चट्का रहे थे उसे खुजा रहे थे
अरे मिल गया क्लू ऐसी खुशी तो आर्कमीडीज को भी नही हुई थी यूरेका बुदबुदाते हुए वे सप्लायर से बोले ये सबक्या खा कर समझेंगे साहब लोगो की भाषारत्नो को साहब लोग पत्थर बोलते है
आप फ़ौरन खुनखुन जी जौहरी को बुलवा लीजिये साहब को कोई कीमती रत्नजटित अंग़ूठी चाहिये गिफ़्ट करदीजीये
अभी बुलवा लेते है
डीएम साहब की गाडी आते ही के राम डी एम साहब से मिलने चले गये
सर आपने पत्थर मँगवाया था मैने कह दिया है अभी खुनखुन जी आता होगा हुजूर को कौन सा पथ्थर चाहियेहीरा या पन्ना वैसे आपसे पहले वाले साहब को हीरा बडा ही सूट किया लगातार फ़ील्ड मे ही पोस्टिंग रही है
अरे केवट राम मैने तो सर्कुलर के खिलाफ़ कहा था कि लाओ बडा सा पत्थर सीने पर रख लिया जाय फ़िर ये पर्देवाला आर्डर को ना कह दिया जाय कि ये आदेश फ़िज़ूलखर्ची है फ़िर जो होगा देखा जायेगा पत्थरयुक्त सीने से सहलिया जायेगा लेकिन इतना अपव्यय मै नही देख सकता

अरे साहब ऐसा कैसे सोच लिया डी एम साहब बोलेसरकार हम लोग तो पर्दे टांगने दरी बिछाने का ढोल बजानेमुनादी करने की ही तो तनख्वाह लेते है सरकारी पर्दे बहरे होते है गोपनीयताओं का खुलासा कभी नही करेंगे दीवालेदोगली होती है पर्दे नही पर्दो के कान नही होते और सर नीला रंग तो गहराई का द्योतक है
सर एक बात मान ले जौहरी को बुला लिया है तो कोई कीमती पत्थर ले लीजिये पता नही सरकार के ग्रह दशा दिशा बदल ले
ठीक कह रहे हो डी एम साहबडी एम् साहिब ने कुछ देर सोचा इतनी संवेदना भी ठीक नही
पैसा सरकारी ,
आदेश सरकारी
तब क्या हमारी तुम्हारी ,
हम तो रहेगे अधिकारी
सर पर्दो के आर्डर का क्या होगामिमियाते हुए डी एम ने कहा
आज ही आदेश कर दिया जाये एक समीक्षा बैठक रविवार को बुला कर सभी को टाईट करे साहब ने मुस्कुराते हुएआदेश किया
बैठके हुई पर्दे आये दरवाजे फ़ीटो मे मापे गये सप्लाई मीटरों मे हुई वैसे भी यही होना
था सरकारी पर्दे इतनी लम्बाई चौड़ाई मे लगे कि जैसे आफ़िसो मे आम आदमी को नही हाथियों को गुजरना हो हाथी गुजरने भी लगे चहु दिशा नीलवर्ण नीलमणि की तरह कान्तिमान हो गई मुख्यसचिव से लोग कहते “व्हाट एन आइडिया सर जी “

खैर हाथी चलता जाये कुत्ते भूकते रहे ये तो पुरानी राजधर्म नीति भी कहती है कलेक्टरसाहब को पत्थर बडा सूट किया अब तो वह कोई बडा आर्डर देने के पहले पत्थरो की ही मांग करते है उन्हे नुस्खा जो मिल गया है

6 टिप्‍पणियां:

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने कहा…

शानदार व्यंग्य लिखा है जी, मजा आ गया।

ये पत्थर भी अजीब आइटम है। कैसे-कैसे प्रयोग होते हैं इसके। लेकिन कल्पना में नीले पर्दों के आर-पार हाथियों का आने-जाने का दृश्य देखकर आँखें ही पथरा गयीं।

उफ़्‌ :(

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

यही तो परेशानी है कि अफसर संवेदनहीन हो चुके हैं. इनमें थोड़ी सी बाकी होगी.

Admin ने कहा…

अच्छा व्यंग है।
कृपया दुर्लभ हिंदी साहित्य पढने के लिए ब्लॉग देखें:
http://HindiKiBindi.tk

Arvind Mishra ने कहा…

कुछ तो रियायत कर दिया करिए कभी ...ठंड ज्यादा है हल्की सी चोट भी मारक है भैये ....

Satyendra Kumar ने कहा…

शानदार व्यंग्य है , वैसे सरकारी मुलाजिम ही इसे सही सही समझ सकता है कि व्यंग्य किस कोटि का है काश परसाइ जी देखते इसे

वैसे अपना प्रचार करते अच्छा तो नही लग रहा है लेकिन हमारे ब्लाग गुरु ने बताया है कि ये करना पड़्ता है तो कृ0 इसे भी देखें ...
http://kumarsatyendra.blogspot.com

देश अपरिमेय ने कहा…

शानदार लेख एकदम ज्वलंत विषय , सटीक लेखनी, और अंत एकदम स्वाभाविक.


हम अपनी विवशता पर ऐसे ही हँसते रहेंगे. क्यूंकि भ्रष्टता हमारे तंत्र में इस स्तर तक है की सामान्य रहने के लिए इसे हंसी में टालने के अलावा कुछ और सूझता नहीं और हँसते हँसते हम कब भ्रष्ट हो जाते हैं हम जान भी नहीं पाते. और इस देश में शायद यही हमारी नियति रह गयी है