सन्त बनने की बात मैने अपने पुराने लेख मे कही थी यह व्यवसाय लाभप्रद भी है, इसमे भारत की जनसंख्या को देखते हुए संतो की बडी डिमाण्ड है यदि 10 लाख के औसत पीछे एक संत हो जाय तो भी डिंमान्ड व सप्लाई का गैप बना रहेगा समाज के जिम्मेदार नागरिक होने के कारण मेरा फ़र्ज बनता है कि इस सन्तस्फ़िति को कम करने का उपाय ढूढा जाय इधर कोई महान अवतार भी नही पैदा हुआ है जिसे उल्लेख्ननीय कहा जाय जो देश के लिये दुर्भाग्यपूर्ण है
गत दशकों मे कई भगवान परमेश्वर परमात्मा इस धरती पर पैदा हुए जिससे पाप पुण्य का लेखा धनात्मक बना रहा इन सन्तो का भी नश्वर लेखा जोखा भी धनागम से धनात्मक मे बना रहा वैसे इसमे बुराई भी कुछ नही है लोक कल्याण की भावना से यदि बाबा जी ने कई आश्रम बना लिये तो क्या हुआ बाबा जी रहते तो सादगी से एक साधारण धोती ही तो पहनते है एक 50 रूपये की खन्डाऊ जो पाँच वर्ष आसानी से चलती है आश्रम तो समाज का है
इन महापुरूषो के होने से समाज का बडा फ़ायदा है आम जन , अज्ञानी लोग पागलो के पीछे ऐसे भाग रही है जैसे शहर मे प्लेग फ़ैला हुआ हो |बाबा जी जो बोल दिये सो पत्थर की लकीर| यदि बाबा जी ने पागलपन मे कुछ हरकत कर दी तो लोग कहेंगे कि कितना पहुँचा हुआ फ़कीर है| बाबा जी आउटसोर्सिंग के स्रोत होते है चलता फ़िरता फ़ि्क्स डिपाजिट होते है कितने लोगो के परोक्ष अपरोक्ष रोजगार सर्जक होते है देश की जी एन पी बढाने मे इनके योगदान को धर्मनिरपेक्ष सरकारों ने कभी महत्वपूर्ण नही माना सो जब सरकारे सन्कट मे आती है तो ये भी निरपेक्षिक हो जाते है
महापुरूष समाज के पथ प्रदर्शक है यदि आज दन्गे फ़साद कम होते है तो इसका श्रेय सन्तो को ही है यदि यह बोले कि कोई भी धर्म हमे हिन्सा नही सिखाता तो लोग मान जाते है मौलवी लोग भी इसी प्रकार की तकरीरे देते है लेकिन ये आतन्कवादी पता नही किस एडिशन की धार्मिक किताब पढ्ते है यदि ये प्रकाशक व मुद्रक का पता भी दह्शतगर्दो को बता दे तो सभी प्रकार की मार काट तुरन्त बन्द हो जाय लेकिन मुझे शिकायत इन सन्तो से है कि ये धार्मिक पुस्तकों के मुद्रक का नाम नही बताते यदि मै सन्त हो गया तो यह जरूर बताउगा कि पुस्तक मिलने का पता कचौडी गली वाराणसी ही है
यदि मै सन्त हो गया तो महंगाई बढने की धार्मिक विवेचना शास्त्रोक्त विधि से कर सरकार की चिन्ता दूर करूँगा मै लोगो को बताऊँगा कि महँगाई इस लिये बढ रही है कि मेरे भक्तो के धार्मिक हो जाने के कारण अधर्मता नही बढ रही है इसलिये प्रभु अवतार लेने के लिये जमाखोरो को माया के वशीभूत करके उन्हे पापिष्ट बना रहे है ताकि अराजकता फ़ैले व लोग धर्मविमुख हो जाये लेकिन सच्चा गुरू होने के कारण इन सब बातो से घबराने की आवश्यकता नही है त्याग करने की बात हमारे धार्मिकता मे है ये महँगाई ससुरी क्या कर लेगी वैसे भी इसकी संज्ञा सुरसा से दी जाती है तो क्या हम राम भक्त हनुमान भक्त इस आसुरी शक्ति के आगे घुटने टेक देंगे लोग बोलेगे कदापि नही
शरद पवार भी कहेगे कदापि नही सभी धर्मभीरू लोगो का समर्थन सरकार को मिलेगा ।
वैसे सन्तो की सारी बात मानने मे कुछ कठिनाइयाँ भी है जैसे मैने सन्त बन कर औरो को यह उपदेश दे दिया कि ‘भक्तो सदा सत्य बोलो और प्रेम करो “ अब जरा आप जैसे विचारशील ब्लागर लोगो ने उसको अपना लिया तो मुसीबत होगी ना इस लिये थोडा स झूठ बोलना पडेगा विचार करे क्या सच सच बोल कर किसी से प्यार हो सकता है नही ना अरे प्रेम करने के लिये कुछ कुछ तो झूठ बोलना ही पडेगा आप हिम्मत वाले है तो जिस पत्नी से प्रेम करने का दावा करते है उससे से यह सच बोल कर दिखादे कि ब्यूटी पार्लर मे मेकअप करा कर तुम अपने सौन्दर्य व मेरे धन दोनो का कबाडा ख़ाड़ आई हो तो क्या इस सच पर आपकी पत्नी आपको अपना प्रेमी मानेगी
मित्रो मै तो इन ब्यूटी पार्लर की मालकिनो को भी देख कर यह बात नही कह सका कि हे शूपर्णाख़ाओ मै राम नही हू सो किस जन्म का बदला मेरी अर्धांश से इसे कुरूप बना कर ले रही हो वैसे मुझे इन ब्यूटी पार्लरो की स्वामिनियो की तलाश रहती है जो ब्यूटीफ़ुल हो लेकिन हा हत मुझे आज तक ऐसी कोई नही मिली वरना मै स्वंय ऐसे महिला को भाभीवत बना चुका होता
बहरहाल ये ट्रेंड सीक्रेट है जब लोग असमन्जस मे रहेंगें तभी तो मेरे आश्रम मे भीड़भाड़ होगी क्योकि जितने ग्लानि मे डूबे लोग रहेगे उतना ही मुझे उन्हे कोसने मे आनन्द आयेगा एक बार सन्त हो जाये तो रोब दाब से जीवन चलेगा मै एक तथाकथित सन्त मर्मज्ञ का प्रवचन सुन रहा था तो वे राम की कथा सुनाते हुए इन्ही लोगो ने ले लीना दुपट्टा मेरा गुनगुनाने लगे भक्त झूमने लगे एक बार लगा कि लाइन गड्बडा गई लेकिन सन्त तो सन्त थे तो उन्होने इन पन्क्तियो के भाव को इस तरह समझाया आत्मा व जीव को पन्च मकार लोभ मोह रूपी तत्वो ने भक्तिसूचक दुपट्टा को छीन रहे है लेकिन जिस भक्त को हनु्मान जी का आशीर्वाद मिला हो व इस सन्सार रूपी बाजार मे भक्ति रूपी दुपट्टा को अक्षुण्ण रख लेगा सो फ़िल्मी गानो की भी आत्मा ब्रह्म जीव सनकादिक जन्म मरण कर्म सुकर्म अकर्म आदि गूढार्थ तथ्यो से व्याख्यायित किया जा सकता है
7 टिप्पणियां:
धाँसू।
आप ने तो हर धान पांच पसेरी का भाव लगा दिया.
जय हो!
हम क्या कहें, मूक ही रहें !
जबर्दस्त ! सन्तस्फीति शब्द ने तो खूब गुदगुदाया ।
बढ़िया लिखते हो ...शुभकामनायें !
सत्य वचन महाराज
रोजगार के नये अवसर खोलने वाला आपका आलेख बहुत सी भटकी हुई अतृप्त आत्माओं को राह दिखाने वाला भी है। ‘साधु’वाद :)
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