सोमवार, 2 अगस्त 2010
राधे राधे जाप बाप रे बाप
कथनी व करनी मे कितना अन्तर होता है वह सामने आने पर पता चलता है कुछ ऐसी ही मनोदशा मेरी है समझ मे नही आ रहा था कि बुड्ढे लोगो के साथ रहू या नवजवान पीढी के साथ रहू साप छ्छून्दर की स्थिति हो गइ थी अब निर्णय ले लिया है अपुन तो प्रेम के साथ रहूगा जहा प्रेम है वही ईश्वरानुभूती है बडी आलोचनायें मेरी भी हुई बुजुर्गो ने कहा कि जब अपने बच्चे प्रेम विवाह करेगे तो आदर्श देखा जायेगा वे मानो मन ही मन शापित कर रहे है कि जा तेरी भी सन्तान ऐसा ही करे जैसा आज मेरे पुत्र ने किया यानी विवाह के पूर्व प्रेम करे फ़िर उसी लडकी से विवाह भी कर ले जिससे प्रेम किया था मै तो इससे भी ज्यादा आशीर्वाद इन बुजुर्गो से चाहूँगा कि वे यह भी कह दे कि जा इन बच्चो को शादीशुदा जिन्दगी मे भी विवाहपूर्व का प्रेम बना रहे
वैसे एक राज की बात बता दू मेरे ताऊ जी बडे ही आध्यात्मिक है कृष्णलाल के दीवाने है मिलने पर राधे राधे का ही अभिवादन करते है जब देखो तब राधे राधे का ही गाना मोबाइल के रिन्गटोन मे बजता रहता है अपने ज्येष्ठ पुत्र का नाम भी उन्होने राधा रमण रखा ईश्वर की कृपा कुछ ऐसी हुई कि बेटा राधा रमण नाम के अनुरूप कुन्ज गलियो मे किसी बिन्दु के साथ प्रेम सीखते सीखते बिन्दुवार विन्दुगामी होते हुए रेखा के प्रेम मे ऐसा रमण किये कि पूर्णाकार रेखामय हो गये तथा यही अपने प्रेम का पूर्णविराम लगा कर गृहस्थ धर्म मे लीन होने की ठान लिये ताऊ जी को नागवार लगा कि चूमा चाटी तक तो ठीक था लेकिन विजातीय कन्या को बहू बनाना हे कृष्ण इस अधम पुत्र को सदबुद्धि दे लड्का कमाऊ था एम एन सी मे काम करता था उसने कोर्ट मैरिज कर ली आशीर्वादों के लिये सन्देश भेजे ताउ व ताई नही गये सो खाप तो नही लेकिन बाप पन्चायत ने एलान कर दिया कि अब इस लडके का हुक्का पानी बन्द जो इससे सम्बन्ध रखना चाहता हो उसका भी मेरे यहा आना जाना बन्द समझा जायेगा
प्यार का इतना विरोध ? खासकर उस देश में जहां प्रेम के देवता कृष्ण को घर-घर पूजा जाता है, जहां हर मूवी लव स्टोरी पर आधारित होती है और प्यार के गाने हर किसी की ज़बान पर हैं, वहां प्यार का इस कदर विरोध क्यों? शायद इसलिए कि राधा-कृष्ण के प्यार को अध्यात्म के रस में डुबो कर उसे दूसरे रूप में परोसा जा सकता है, फिल्मी प्यार से किसी के परिवार पर कोई अच्छा-बुरा असर नहीं होता, लेकिन घर में अगर लड़का या लड़की अपनी मर्जी से शादी का ऐलान कर दे तो उससे परिवार का सारा समीकरण ही बिगड़ जाता है। जिस समाज में अधिकतर लड़के आज भी अपनी शादी के बारे में कुछ नहीं बोलते और बड़े-बुजुर्गों द्वारा दहेज़ लेकर तय की गई दुल्हन को चुपचाप स्वीकार कर लेते हैं, वहां अगर कोई बागी यह कहे कि मैं अपना दूल्हा या दुल्हन खुद चुनूंगा या चुनूंगी तो घर के और समाज के बड़े-बुजुर्गों के लिए यह एक चुनौती के समान है और वे वैसे ही भड़क उठते हैं जैसे अकबर भड़क उठा था जब सलीम ने अनारकली को मलिका-ए-हिदुस्तान बनाने का ऐलान किया था।
हमारे यहां शादी को प्यार से कभी जोड़ा ही नहीं गया। हमारे यहां शादी इसलिए होती है ताकि जवान बेटे को अपनी शारीरिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए एक नारीदेह मिल जाए जो उसके बच्चे भी पैदा करे और घरबार भी देखे। साथ ही बिना शिकवा-शिकायत अपने पति के साथ-साथ पूरे ससुराल की सेवा भी करे। यानी ऐसी सेविका जो बिल्कुल दब्बू किस्म की हो और हर आज्ञा को माने। लेकिन जब कोई लड़का अपनी पसंद की लड़की से प्यार करता है तो मां-बापों-चाचा-ताउओं को डर लगता है कि इतनी हिम्मतवाली बहू शायद ससुराल में वैसी सेविका बनकर नहीं रहे और शायद बेटा भी उनके हाथ से निकल जाए। तो ऐसे में प्यार का विरोध तो होगा ही। खासकर वे लोग तो करेंगे ही जो अभी मां-बाप या चाचा-ताऊ की जगह पर बैठे हुए हैं। और वे भी करेंगे जो उन्हीं की मानसिकता में जी रहे हैं। प्यार के प्रति इस विरोध की आग में घी का काम करता है जातीय और धार्मिक विद्वेष। और तब यह किसी परिवार का व्यक्तिगत मसला न रहकर जातीय या धार्मिक मसला बन जाता है। जब अपनी जाति या धर्म का लड़का (या लड़की) किसी और जाति या धर्म के लड़के (या लड़की) से प्यार करता पाया जाता है तो छोटों-बड़ों सबकी पहली प्रतिक्रिया यही होती है - क्या अपने यहां लड़के (या लड़की) मर गए थे? यानी सबको लगता है कि किसी और जाति-धर्म के बंदे या बंदी से शादी करके इसने सारी जाति की इंसल्ट कर दी है। और इस इंसल्ट का बदला लेने के लिए समाज के ताकतवर लोग परिवार का हुक्का-पानी बंद कर देते हैं या फिर लड़के-लड़की को जान से मारने का फरमान जारी कर देते हैं।
लेकिन अच्छी बात यह है कि इन सब के बावजूद न प्यार कम हो रहा है न प्रेम विवाह। कम ही संख्या में सही, आज गांवों-देहातों से भी ऐसे युवक-युवतियां सामने आ रहे हैं जो सारे खतरे उठाकर अपनी ज़िंदगी के फैसले खुद कर रहे हैं। कोई भी बदलाव शुरुआत में कुछ प्राणों की आहुति लेता है। कोई भी क्रांति शहादत के बिना पूरी नहीं होती। रिज़वान हो या कटारा, कुलदीप हो या शुभा – ये वे लोग हैं जिन्होंने जीवनसाथी चुनने के दकियानूसी तरीके को चुनौती दी थी, जिन्होंने जाति और धर्म के भेदभाव को मानने से इनकार कर दिया था। यही वे लोग हैं जो जाति और धर्म में बंटे इस देश के लिए उम्मीद की किरण बनकर आए थे। मैं इन सबको नमन करता हूं और उम्मीद करता हूं कि देश में खाप मानसिकता वाले लोगों के बहुमत के बावजूद आखिरी जीत प्यार की ही होगी।
भारत में कितने अपराध होते हैं – बलात्कार, चोरी, लूट, आतंकवादी घटनाएं, सांप्रदायिक दंगे। लेकिन आज तक मैंने कहीं नहीं पढ़ा या सुना कि किसी बाप ने अपने बलात्कारी बेटे को मार डाला या किसी खाप या बाप पंचायत ने उन्हें मौत की सज़ा सुनाई। उल्टे वे पुलिस पर आरोप लगाते हैं कि लड़के को गलत फंसाया गया है। भारत में आतंकवाद की कितनी वारदातें हुईं और कई लोग पकड़े गए लेकिन आज तक किसी आतंकवादी के पिता या भाई ने उसकी हत्या का प्रयास नहीं किया न ही किसी समाज ने फतवा जारी किया कि ऐसे आतंकवादी को गोली से उड़ा दिया जाए। देश भर में दंगों में कितने ही बेगुनाहों की जानें गईं, बापों ने देखा, खापों ने देखा, लेकिन वह समाज कभी यह कहने नहीं आया कि इन दंगाइयों को सरेआम फांसी पर चढ़ा दिया जाए, बल्कि वह समाज और उसके पंच ही उनको बचाने पर जुटे हुए हैं। दंगाई हीरो हो गए, एमएलए और एमपी हो गए। बेटा जुआ खेले, लड़कियों को छेड़े, शराब पीकर हंगामा करे, उसको कोई सज़ा नहीं है लेकिन कोई प्यार करे तो वह इतना बड़ा गुनाह कि उनकी हत्या कर दी जाए।
हे इश्वर इन्हे क्षमा करना जो तेरे ही नाम का कर्म का गुण गान रात दिन करते है और प्रेम मार्ग पर चलने वालो को जाति धर्म के नाम पर यमराज बन कर मार डालते है
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7 टिप्पणियां:
बाप रे बाप राधे राधे जाप --नहीं तो क्या बुलाऊँ खाप
bahut sanvednapurn aur ghambhir baate kahi...shat-pratishat wajib aur sahi
बस तोड़ दिया है गुरु ..राधे राधे .....
बस तोड़ दिया है गुरु ..राधे राधे .....
kafi jwalant mudde par gambir vichar....
सचमुच राधे राधे ही कहा जा सकता है।
………….
जिनके आने से बढ़ गई रौनक..
...एक बार फिरसे आभार व्यक्त करता हूँ।
बढ़िया है। लेकिन एक वर्ष से प्रेम की वंशी खामोश क्यों है?
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