गुरुवार, 22 नवंबर 2007

आज पुनः आपसे बात करने , संप्रेषण करने कि इच्छा हुई तो यह लिखने बैठ गया जिसका विषय गंभीर भी है और यदि आप विचार करें तो साधारण भी क्यों कि हम लोगो कि प्रवित्ति बन गयी है हकीकत से बचना या आलोच्नाओ से अपने को दूर ही रखना कोऊ नृप होई हमे क्या हानि .... यही प्रवित्ति हमारे सामजिक मूल्यों को निरंतर बदल रही हैं हूँ परम्परावादी भी हैं और आधुनिकतावादी भी , जाने क्या- क्या कुछ उदाहरण जब मिस वर्ल्ड और मिस युनिवर्ष का खिताब भारत में आया तो ऐसा लगा कि इन सुंदरियों ने पूरा विश्व ही जीत लिया हो अपनी बुद्धि से ॥ किन्तु जब भारत में यही प्रतियोगिता होने लगी तो हमारी संस्कृती के तथाकथित पुरोधा हल्ला मचाने लगे कि नग्नता का प्रदर्शन भारत में नही चलेगा तथा नारी का सम्मान और पूजा ही हमारी सभ्यता है किसी नें यह नही पूछा कि हमारी सुंदरियों ने जो खिताब हासिल किये थे वह किस योग्यता और मापदंड पर ,क्या उन्होने संस्कृति या धर्मं पर व्य्याखान के लिये यह खिताब मिलें या अपने तन को साड़ी या अन्य परिधान से ढक कर रखने के लिये
यही विरोधाभास हमारी
दुहरी मानसीकता को प्रगट करता है

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