राज को खाज हो गयी है राज की राजनीती पर करारा व्यंग्य अशोक चक्रधर ने किया है
ठीक-ठाक रेशे गुंथें, रस्सी हो मज़बूत,
पत्थर को भी रेत दे, ताकत बने अकूत।
ताकत बने अकूत, मगर हम लोग अभागे,
अलग-अलग कर लेते हैं, प्रांतों के धागे।
चक्र सुदर्शन, 'राज'-नीति अलगाव ना करे,
रस्सी हो कमज़ोर, नहीं यह ठीक, ठाकरे!
अशोक चक्रधर
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