जब मैं जवान हुआ और बी.ए. करने के बाद एक फर्म में अफसर हो गया तो मेरा आज्ञाकारी व्यक्तित्व बॉस की आज्ञा के लिए बराबर ललायित रहता। 'यस सर', 'यस सर' हर बात पर कहने की ऐसी आदत लगी कि जब बॉस ने कहा कि एयर इँडिया की उड़ान बड़ी अच्छी होती है, तो मैने 'यस सर' कहकर एयर इँडिया का टिकट बॉस के साथ जाने के लिए मंगवा लिया, यद्यपि मैं इस टिकट का हकदार नहीं था, और मेरे पास उतने पैसे भी नहीं थे, जिसके कारण मुझे कर्ज लेना पड़ा। एक दिन बॉस न कहा "थम्स-अप बड़ा स्वादिष्ट होता है!" मैं 'यस सर' कहकर बिना दूसरे पेय को चखे ही थम्स-अप पीने लगा तथा बॉस को खुश करने के लिए दफ्तर के लोगों को भी इसे पीने की आदत लगवाई। मेरी दोस्ती उन लोगों से ज्यादा हुई जो 'यस सर' को पूरी तरह जीवन में साधे हुए थ और 'यस सर' कहने की दौड़ में जैसे लोगों से प्रतिस्पर्धा करते थे। 'यस सर' एक मंत्र है-विघ्नविनाशक, मंगलकारी मंत्र! जपते चलो।
कुछ लोगों को 'यस सर' से एलर्जी भी होती है। अतः ऐसे लोगों को फौरन भांपकर उनके लिए इस वाक्य का प्रयोग कदापि नहीं करना चाहिए, अन्यथा काम बिगड़ने का खतरा है। मेरे एक विद्वान मित्र को आकाशवासी मं रिकार्डिंग के लिए आमंत्रित किया गया। रिकार्डिंग के समय कार्यक्रम अदिशासी आदतन उनक प्रत्यक जवाब में 'यस सर' दोहराने लगा। वह उत्तेजित हो उठे और कार्यक्रम से उनका मन उचटने लगा। केन्द्र निर्देशक भी रिकार्डिंग रूम में ही खड़े थे। उन्होंने श्थिति को समझा और कार्यक्रम अधिशासी को 'यस सर' कहने से मना किया। इसके बाद ही मित्र का तनाव कम हुआ और रिकार्डिंग पूरी हुई। 'यस सर' का अत्यधिक प्रयोग सत् पुरुष सुनना पसंद नहीं करते। यह दोगर बात है कि सच का आतंक होता है, झूठ मित्र की तरह होता है।
कुछ लोग 'यस सर' का प्रयोग टरकाने के लिए भी करते हैं। बहुधा आफिस में यदि कोई अपने कार्य के बारे में दरयाफ्त करता है तो संबंधित लिपिक टरकाने के लिए कह देता है-" यस सर, आपका काम हो रहा है।" यदि आप अचानक किसी अवांछित जगह पर पहुंच गए हो तो स्वागतकर्ता 'यस सर' कहते हुए आपको इस तरह से घूर सकता है, मानो कह रहा हो-' मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है?' 'यस सर' के ऐसे आदरभाव में 'भाव' महत्वपूर्ण होता है।
'यस सर' से संबंधित एक घटना याद आती है, जो अपने में बड़ी शिक्षाप्रद है। एक दिग्गज सेनापति न अपने पुत्र के आपरेशन के लिए, जिसे हृदय रोग था, एक बड़ी रकम की सहायता मुख्यमंत्री से मांगी। मुख्यमंत्री ने तुरंत मुख्य सचिव को आर्थिक सहायता दिलवाने के लिए कहा। मुख्य सचिव ने मुख्यमंत्री से कहा-'यस सर!' मुख्य सचिव ने स्वास्थ्य सचिव से मुख्यमंत्री की बात कही। स्वास्थ्य सचिव ने कहा 'यस सर!' स्वास्थ्य सचिव ने स्वास्थ्य निर्दशक को वह आदेश पहुंचाया- उन्होंने कहा- 'यस सर!' स्वास्थ्य्य निर्देशक ने उसी तरह उप निर्देशक को कहा। उन्होंने भी कहा-'यस सर!' पूरा तंत्र जैसे सहायता के लिए बेचैन हो गया।
कुछ दिन बाद स्वंत्रता सेनानी की पुनः मुख्यमंत्री से मुलाकात हुई। मुख्यमंत्री ने कहा "आपरेशन सफल हुआ न, बच्चा तो अब स्वस्थ होगा? किंतु एक बात, प्राप्त हुए रुपयों के खर्चे का ब्यौरा, रसीद के साथ सरकार को भज दें, जिससे हिसाब-किताब ठीक रहे।" स्वतंत्रता सेनानी ने दुखी होकर कहा-" रुपये कहां मिले, ऊपर से नीचे तक 'यस सर' हो गया।" मुख्यमंत्री ने आश्चर्य व्यक्त किया-"नहीं मिले? मैं तुरंत मुख्य सचिव को बताता हूँ।" मुख्यमंत्री ने मुख्य सचिव स रौब से पूछा-" इन्हें लड़के के आपरेशन के लिए रकम क्यों नहीं मिली?" मुख्य सचिव ने कहा- " सॉरी सर, मैं स्वास्थ्य सचिव से पूछता हूँ।" स्वास्थ्य सचिव ने कहा- "सॉरी सर, मैं स्वास्थ्य निदेशक से पूछता हूँ।" निदेशक ने कहा- " सॉरी सर, मैं उप निदेशक से पूछता हूँ।" उप निदेशक ने कहा-"सॉरी सर, मैं आफिस में पता लगाता हूँ।" इतना सुनकर बचारे स्वतंत्रता सेनानी ने मुख्यमंत्री से कहा-" महाशय! पहले 'यस सर' था, अब 'सॉरी सर' ऊपर से नीचे तक है। कृपा करके इन्हें ज्यादा तकलीफ न दें, इस बीच मेरा बच्चा नीचे से ऊपर चला गया।...यस सर।"
गुलामी के समय की शासन प्रणाली, संचिका परिचालन विधि तथा डेस्क सिस्टम की लीक पर चलने वाली मानसिकता की उपज है - 'यस सर', और 'सॉरी सर'। ये दोनों मौसेरे भाई, नौकरशाही में एलीटिज्म को कायम रखते हुए नौकरशाही का, व्यवस्था के प्रति बिकने का व्यापार चालू रखते हैं। आज के प्रशासन तंत्र की संरचना इन मुहावरों से इस तरह प्रभावित है कि दफ्तरों में इनके प्रयोग की अनावश्यक प्रवृत्ति पर अंकुश लगाना मुश्किल हो गया है। एक तीसरा शब्द युग्म है-'एक्सक्यूज मी', जो प्रेम-त्रिकोण बनाने के लिए 'यस सर' ' सॉरी सर' के साथ जुट जाता है तथा सूखे पांव वैतरणी पार करवाने में लोगों का सहायक होता है। इस शार्टकट के जमाने में इन तीनों से बनी त्रिवेणी में स्नान कर 'हर-हर गंगे' कहते हुए कोई भी अपना अभिष्ट सिद्ध करने में सफल होगा। यह जान जाइये कि इन तीनों में कहीं कोई अकड़ नहीं, अहंकार नहीं, अनास्था नहीं, वरन् विनय, करुणा और सेवा के भाव हैं, जो पत्थर को भी मोम बना देते हैं।
आज के इस बहुरंगे युग में 'यस सर' जैसा बहुरंगा संक्षिप्त वाक्य शायद ही मिले। 'यस सर' आज के युग की एक आत्मिक नहीं, यांत्रिक अभिव्यंजना है, जिसका प्रयोग अत्यंत भ्रामक और छलपूर्ण सिद्ध हो सकता है। इसके अर्थ के सत्यापन के लिए आपको अपने मन को टटोलना होगा, व्यक्ति की परख करनी होगी तथा परिस्थितियों को भांपना पड़ेगा। व्यवहार में 'यस सर' का न तो कोई निश्चित अर्थ है, न ही उपयोग; फिर भी हमारी जिह्वा से यह चासनी की तरह टपकता है। विनम्रता प्रदर्शन के लिए यह सबसे फुर्तीला मुहावरा बन गया है। भले ही हमारी आवाज में दम न हो, हमारा शब्द-ज्ञान काफी कमजोर हो, किंतु सफलता तलवे चाटेगी, यदि 'यस सर' के सार्थक प्रयोग से हम भिज्ञ हो, क्योंकि 'यस सर' कहना सामाजिक शिष्टाचार का एक अंग बन गया है। यदि भरोसा न हो तो आप इस 'यस सर' को भूलकर देखें, मेरा दावा है कि यह दुनिया भी आपको बिसार देगी। इस 'यस सर' में जादू है। इसका प्रयोग करके कई अफसरों ने अपने मंत्री को अपनी मुठ्ठी में कर रखा है और राजनीतिक दबाव के बावजूद इस 'यस सर वादी' अफसर की ' अवसरवादिता' चलती रहती है। 'यस सर' वह सोने की तलवार है, जिसमें धार नही होती, केवल चमक होती है।
'यस सर' के संबंध में अब तक जो मैं कह रहा था, वह समाज के वर्तमान और प्रत्यक्ष रूप का विश्लेषण करता है, किंतु बात यहीं समाप्त नहीं होती। जरा इसकी परंपरा दर्शन और मनोविज्ञान पर विचार किया जाए तो अनेक तथ्य उपलब्ध होंगे। फिर आप खुद भी 'यस सर', 'नो सर ' का अर्थ पटल खोलने में समर्थ हो सकेंगे। 'यस सर' अथवा ' जी हां' एक स्वीकृति सूचक अभिव्यंजना है। चाहे-अनचाहे इस व्यंजना के प्रयोग में 'जी हां' का अर्थ ' जी नहीं' हो जाता है। अलंकार शास्त्र में कभी-कभी प्रयुक्त शब्द का अर्थ उल्टा हो जाता है, जैसे पंडित का अर्थ मूर्ख और पहलवान का अर्थ दुर्बल हो जाता है। कभी-कभी मौन भाषा का प्रयोग भी आवश्यक हो जाता है। कहा गया- 'मौनं स्वीकृति लक्षणम्'। अर्थात 'नो सर'। बड़ा मुश्किल है समझना। शब्दों के पीछे अर्थछाया की जो रेखा बनती है, वही महत्वपूर्ण है। यह रेखा एक अबूझ पहेली-सी है।
बुद्ध से अनेक प्रश्न पूछे गए थे। जैसे 'ईश्वर है?', 'ईश्वर नहीं है?' 'आत्मा है?', ' आत्मा नहीं है?' ' पुनर्जन्म होता है?', 'पुनर्जन्म नहीं होता है?' इन सभी प्रश्नों के उत्तर में बुद्ध मौन रहे। शिष्यों ने इस मौन की व्याख्या की। कहा-' बुद्ध के मौन का अर्थ है-' हां' (यस सर)। दूसरे पक्ष ने कहा- बुद्ध के मौन का अर्थ है-'नहीं' (नो सर)। मौनं स्वीकृति लक्षणम्। मौनं अस्वीकृति लक्षणम्। इसी आधार पर बुद्ध को एक पक्ष ने अऩीश्वरवादी, अनात्मवादी, पुनर्जन्म- विरोधी माना, तो दूसरे पक्ष ने इसी मौन के आधार पर ईश्वरवादी, आत्मवादी और पुनर्जन्मवादी मान लिया। शताब्दियों तक विवाद बना रहा।
बहुत बाद में नागार्जुन ने इसका समाधान प्रस्तुत किया। कहा-' सारे प्रश्न ही गलत थे। अतः गलत प्रश्न (फैलेसस क्वेश्चन) का उत्तर हां या ना में नहीं हो सकता।' प्राश्चिकों ने पूछा ' जैसे?' नागार्जुन ने कहा-' यदि मैं आपसे एक प्रश्न करूँ और आप हां या ना में जवाब देकर देखिए। प्रश्न है-क्या आपने अपनी मां को झाड़ू से पीटना बन्द कर दिया? आप हां और ना कुछ नहीं कह सकते। दोनों गलत होंगे, क्योंकि प्रश्न ही गलत है। इसलिए ईश्वर, आत्मा, पुनर्जन्म जैसे गढ़े हुए शब्द अननुभूत तथा अदृष्टपूर्व हैं।' जैसे कोई कहे-आपने आपने नदेज्दा फ्योदोरीसना को देखा है? कोई क्या उत्तर देगा? रूसी भाषा का यह शब्द उत्तरदाता के लिए अपरिचित है। अतः'यस सर', ' नो सर' दोनों बेमानी हैं। वैस कहा भी जाता है कि विकल्पहीन सच, आपको कहीं का नहीं छोड़ता। और आज तमाम दुनिया निर्मूल और भ्रांत प्रश्नों पर बिना समझे-बूझे 'यस सर', 'नो सर' कहे जा रही है। झूठे प्रश्न, झूठे उत्तर। लेकिन मलुष्य तो विवक्षु प्राणी है। वह बोलना चाहता है। दूसरे वह किसी-न-किसी के अधीनस्थ है। अधीनस्थता ना नहीं जानती । वह हां कहलवाती है। 'यस सर' एक विवश सरेंडर है, यही ठकुरसुहाती और आत्मप्रवंचित खुशामद-भरी वाणी है। हम 'यस सर' की दासता में फंसे हैं। सभी दास हैं। ये दास भक्तिकाल के सूरदास, तुलसीदास, कबीरदास, केशवदास, मलूकदास, रविदास नहीं, वरन् बॉस-दास हैं। (jeetendra sahay creation on lekhni)
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