ये पोस्ट तो सामयिक नहीं है क्योंकि वेलेन्ताईन डे बीत चुका है हल्ला गुल्ला समाप्त हो चुका है मेरे मत से वेलेंटाइन डे का विरोध कर कर के लोगो ने इसे और मशहूर कर दिया है संस्कृति और अपसंस्कृति के चक्कर में वाद संवाद से लेकर चड्ढी प्रेषण तक की क्रियाएं हुई , देख और सुन कर ऐसा लगता है कि इसका नाम विलेन टाइट डे ही कर देना चाहिए
जहाँ तक संस्कृति के ठीकेदारों का प्रश्न है ये तो प्रेम के पीछे ऐसे पड़े हैं मानो भारत वर्ष में चमत्कारों के द्वारा ही बच्चे पैदा होते रहे हैं जैसे कान से कर्ण , घडे से अगस्त्य , खंभे से नृसिंह , मैल से गणेश आदि सांस्कृत अवतार पैदा हुए संभवतः इसी कारण से जनसँख्या वृद्धि होती रही है क्यों कि यहाँ और विकल्प भी खुले हुए हैं
वेलेंटाइन डे के पक्षधर व विरोधी दोनों की मानसिकता पर हँसी आती है जिस समाज में पूरा एक माह फागुन मदनोत्सव के लिए जाना जाता हो वहां एक दिन के लिए इतना बवाल , ...........
फागुन में बुढ़वा देवर लगे कि परम्परा के सामने यह एक दिन, घोषित प्रेमियों की लुकाछिपी और गिफ्ट और फूल देने के नाम पर इतना मारा, मारी | क्यां कहूँ इन मूर्खों को जो इसे अपनी अस्मिता और गौरव या स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति से इसे जोड़ कर देखते हैं
सही पूछे तो अब प्यार करना जितना आसान हो गया है उतना पहले कभी नहीं था अब ख़त लिखने भेजने उसका उत्तर पाने का इन्तेजार की जहमत नहीं है फ़ोन से s.m.s भेजो पढो डिलीट करो m.m.s भेजो चैट करो
बस जरूरत है एक अदद मोबाइल या कंप्युटर की काम इतना आसान है फ़िर लव का इजहार करने देने और लात खाने की क्या जरूरत है
अतः सभी प्रेमी जनों को सलाह है कि सारा वर्ष ही वेलेंटाइन डे के रूप में मनाया करें एक दिन के लिए हल्ला गुल्ला करने कि जरूरत नहीं है कुछ दिनों के बाद ही होली आ रही है सारी दमित व कुत्सित वासना को शांत करने का एक सांस्कृतिक उपाय उस दिन इन राम सेना और बजरंग दल के घरों पर धावा बोल कर भाभियों से रंग खेले और मिठाई खाएं
ये चड्ढी भेजना तो इन बेहूदा बैलों को लाल कपड़े दिखने के बराबर है
1 टिप्पणी:
आरपार गुरू !
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