रविवार, 2 अगस्त 2009

जय हो सुप्रीम कोर्ट की

इन दिनों मै जब भी ब्लॉग पर कुछ लिखने बैठता हूँ तो उसी समय कुछ ऐसे एतिहासिक फैसले हो जाते हैं कि न चाहते हुए भी उसकी ख़बर पर ही लिखने को बाध्य होना पड़ जाता है बहुत पहले एक सरकारी मीटिंग में एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा था कि कोर्ट का चले तो वह इस बात पर भी स्टे लगा सकती है कि किसी बच्चे का जन्म हो अथवा न हो हमें तो हर हाल में स्टे आदेशों का पालन करना है तब यह बात हँसी में उडा दी गई लेकिन रेप कि हुई शिकार लड़की को माँ बनाना /बनना चाहिए इस पर न्यायालय के फैसले से हतप्रभ अवश्य हूँ न्यायालय का सम्मान करते हुए इस न्यूज़ पर नजर डालें तो वकीलों के तर्क व उस पर फसलों कि एक बानगी मिलाती है कि किस प्रकार वकील गण इन फसलों में अहम् भूमिका निभाते हैं
सौरभ द्विवेदी से साभार
सुप्रीम कोर्ट के तीन जज
वकील की दलीलों के कायल हो गए और फैसला दे दिया कि रेप की शिकार हुई लड़की को भी मा

ं बनने का हक है। हक शब्द सुनते ही भावनाएं उमड़ने लगती हैं
, रक्षकों के कान चौकन्मगर अहम सवाल यह है कि क्या मानसिक अस्थिरता की शिकार उस लड़की ने यह हक मांगा है ! क्या वह अपनी इच्छा से मां बनी है ?

किसी वहशी ने नारी निकेतन चंडीगढ़ में उसके साथ रेप किया , गर्भ ठहर गया और अब वकील साहिबा दलील दे रही हैं कि मां बनना उसका हक है और अदालत को उससे यह हक नहीं छीनना चाहिए। हम भी इस दलील के कायल हैं कि निजी मामलों में स्टेट या अदालत का कम से कम हस्तक्षेप हो। मगर अहम सवाल यह है कि यहां उस लड़की की बात हो रही है , जो समाज और स्टेट की जिम्मेदारी है। वह लड़की अपना अच्छा-बुरा नहीं सोच सकती और की निकेतन में रहकर जीवन गुजार रही है। रेप के मामले पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने भी माना था कि इस स्थिति में अबॉर्शन ही एकमात्र विकल्प है , मगर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला पलट दिया।

महिला के अबॉर्शन का विरोध कर रहीं वकील साहिबा ने तर्क दिया कि वह पहले से ही इस दुनिया में अकेली है और इस बच्चे के पैदा होने से उसे खालिस अपना कोई मिल जाएगा। बहुत ही अच्छा तर्क है। वैसे भी मां सुनते ही हमारी भावुकता हिलोरे लेने लगती है। सही बात है , आखिर उस बेचारी औरत का कोई तो अपना होगा। मगर , इस सवाल का जवाब कौन देगा कि मानसिक रुप से अस्थिर इस औरत के बच्चे को पालेगा कौन , स्टेट , अदालत या दूसरी कोई सरकारी संस्था ?

अगर बच्चा बेटी हुआ तो उसे नारी निकेतन में सक्रिय वहशियों से कौन बचाएगा ? कहीं उसका भी रेप हो गया तो ? हो सकता है कि आपको मेरा तर्क अतिवादी लगे मगर क्या यह सच नहीं है कि बच्चा अनाथों की तरह , दूसरों की दया बटोरता पलेगा ? और जब डॉक्टरों के तर्क से सहमत होकर अदालत भी यह मान रही है कि यह महिला अपना अच्छा-बुरा नहीं सोच सकती , तो वह बच्चे की परवरिश कैसे करेगी ? कैसे उसे अपनी ममता की छांह में लेगी और दुनिया की धूप से बचाएगी ?

राखी सावंत और राहुल गांधी पर बहस करने वाले हम भारतीयों को यह मसला गैरजरूरी लगता है ? मां दुनिया का सबसे सुंदर और पवित्र शब्द है और जन्म देना प्रकृति को विस्तार देने जैसा। मगर तभी जब यह अपनी इच्छा से किया गया हो , दुर्घटनावश या बिना सहमति के नहीं। अगर लड़की मानसिक रूप से स्वस्थ होती और किन्हीं परिस्थितियों में हुए रेप के चलते उसे गर्भ ठहरता , तो यह पूरी तरह से उसका अपना फैसला होता कि उसे बच्चे को जन्म देना है या नहीं।


1 टिप्पणी:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

आपसे पूरी तरह सहमत, कई दफा तो कुछ फैसलों पर आश्चर्य होता है.