बुधवार, 9 दिसंबर 2009

मैं भी संत हो गया हू तलाश भक्तो की है

मेरे पडोसी जो भारत सरकार के एक ऐसे कमाऊ विभाग के पदधिकारी है जिससे सभी भय खाते है ये सब कुछ खाते है खातो को देख देख कर खाते है आप विभाग का नाम जान चुके होगे इनकी एक अदद पत्नी इन्हे इतना प्यार करती है कि यदि इनकी म्रृत्यु कमरे मे हो जाये तो भी ये लाश निकलने न दे नही प्रेमासक़्त हो कर नही लाभासक्त हो कर

आप गलत समझ रहे है जब तक लाश से दुर्गन्ध न उठ्ने लगे तब तक ये साहब के नाम पर बाबुओ को बुला बुला कर घूस व मधुर मोदक आदि खाती रहेगी देखने मे ये भारत के वित्त मन्त्रालय की वार्षिक समीक्षा पुस्तक की भान्ति है मेरा इनके घर आना जाना है एक दिन भाई साहिब ने अपने हनीमून के शैशव काल की तस्वीर दिखाई जो इन्होने सपत्नीक बीजापूर के गोल गुम्बद के समीप खिंचाई थी उन दिनो भाभी जी का व्यक़्तित्व इस कदर पाषाणवत था कि यह पता लगाना कठिन होता था कि भाभी जी कहाँ है व गोल गुम्बद कहाँ ? खैर मै उनकी कमनीयता की कम कमीनता का ज्यादा प्रशंसक हूँ मै अक्सर उनके इस तस्वीर को देख कर कहता हू कि आप ने कम उम्र मे विवाह का प्रस्ताव कैसे मान लिया

इनका हर काम विभागीय बजट से नही तो गैरविभागीय श्रोतो से हो जाता है जब भाभी जी को पुत्र पैदा हुआ पता नही उसका श्रोत क्या था क्यों कि भाई साहब के बारे मे लोकोक्ति आम है कि इन्होने बिना धन लिये अपनी कलम नही चलाई तो अपना पुत्र पैदा करने मे भाभी जी ने क्या प्रलोभन दिया होगा जब प्रसूति कक्ष मे भाभी जी भर्ती थी तो साहब परेशान थे कि काश प्रसव पीडा मुझे होती तो कम से कम विभाग वाले इस मौके पर मुझे घेरे रहते तथा प्रसव का खर्चा भी धनपशुओ से निकाला जाता खैर एक गज सदृश पुत्र की प्राप्ति हुइ ,लोगो ने साहब को बधाइया देनी शुरू कर दी वैसे बधाई तो मैने भी दी लेकिन यह रत्न का चक्कर समझ मे नही आया ,पता नही यह पुत्र भविष्य मे कौडी लायक भी ना हो सके लेकिन लोग है की अभी से रत्न रत्न चिल्ला रहे है क्योकि इतिहास गवाह है कि बडे बडे सम्राट साम्राज्यों का पतन अयोग्य उत्तराधिकारियो के चलते ही तो हुआ है लेकिन जन्म के समय तो ये उत्तराधिकारी लख्तेजिगर रत्न ही कहलाते होगे खैर साहब की किस्मत भी मुझे लगता है कि बहादुर शाह जफ़र से अधिक नही होने वाली

लोगो का क्या है कुछ भी कह डालते है राज की बात है कि भाभी जी भी साहब की धर्मपत्नी कहलाती है यदि यह धर्मभीरू नही होते तो ऐसा हरगिज नही कहते भाभी जी अक्सर साहब की दैहिक समीक्षा भी करती है उन्हे गालिया वग़ैरह भी सुनाती रहती है लेकिन करवाचौथ का व्रत बडी श्रध्दा से करती है ये पति को बहले ही पीटती हो लेकिन पराये मर्द से आँखे मिला कर बात नही करती आखिर किस एन्गिल से इन्हे पतिव्रता ना कहा जाये पति के लिये व्रत तो करती ही है

इनके घर से अक्सर सत्यनारायण की कथा मे शामिल होने का निमन्त्रण मिलता है तो मै ऐसे अवसर पर सौ काम छोड कर जाता हू ऐसा नही कि मै बहुत धार्मिक हू इसका खुलासा मै आज करता चलू दरअसल बात यू है कि ऐसे मौके पर गाई जाने वाली आरती की एक लाइन श्रध्दा भक्ति बढाओ सन्तन की सेवा से मेरा उत्साह बढ्ता है कि जिस दिन ये सन्त की सेवा करने निकलेगे उस दिन मुझ जैसा सरयूपाणी सन्त कहा पायेगे वैसे इसी कारण मैने कई उपनिषद आदि मगा कर शेल्फ़ मे सजा रखा है ताकि कभी तो इसका ख्याल करके ये मुझ जैसे सन्त की सेवा का व्रत ले ले मै अक्सर इन्हे बताता रहता हू कि इन कथावाचको को केवल दक्षिणा देनी चाहिये दान तो सर्वदा उच्च कुल के सन्सकारी वेदो को जानने वालो को ही देना चाहिये ऐरे गैरे उदरपोषक पन्डितो को नही ये सन्त सेवा नही अब देखे, कब इनकी नजर मुझ पर इस द्रिष्टिकोण से पडती है

वैसे मै इस लेख के माध्यम से बताता चलू वैसे मै आत्मप्रचार नही करता लेकिन मुझमे अनेक गुण सन्तो वाले है परद्र्व्येषु लोष्ठ्वत को मै अधिक महत्व देता हू जिससे उधार लेता हू उसे कभी लौटाने का पाप नही करता क्योन्कि सन्तो का काम ही है मानव मन से आसुरी प्रव्रितियो क नाश करना मैने जिन लोगो से भी उधार लिए है उनके मन से धन की आसक्ति को समापनीय ही कर दिया है जिन लोगो से भी मैने उधार खाये है उन्हे लौटाने का कभी भि गन्दा विचार मेरे मन मे कभी भी नही आया

सच्चे सन्त का यही तो काम होता है कि भक्तो के मन से काम क्रोध लोभ मोह की भावनायें समाप्त करना मेरे एजेन्डे मे प्राथमिकता सदैव लोभ मोह को समाप्त करने की रही है पैसे ना लौटाने से खिन्न मित्र क्रोधित तो होते है लेकिन इनका क्रोध कुछ दिनो के बाद स्वंय एक्स्पायरी डेट के बाद खत्म हो जाता है इस प्रकार लोभ मोह को समाप्त करने के मेरे प्रयास से मैने मित्रो का जिनसे मैने कर्ज लिया था उनका मन निर्मल कर दो बुराइयो को समाप्त कर दिया है अभी इन मित्रो के मन से काम को समाप्त करने का भी प्रयास कर रहा हू यह कार्य गुह्यातिगुह्य है सो इसका खुलासा बाद मे करूगा जब कुछ शिष्याये समर्पित नही हो जाती

कथा विषयान्तर हो गयी है मै सन्त बना पडोसी के पास बना हुआ हू देखे वह सपत्नीक कब सेवा भाव से जुटता है वैसे मैने उसे प्रोमोशन मे विलम्ब उचचतर जाच आदि का भय मुखाक्रिति के आधार पर बता दी है

वैसे मै एक बात का कायल हो चुक हू कि हिन्दूधर्म के बडे आयोजन बडे बेइमानों घूसखोरो पर ही टिके हुए है जिस दिन से इनकी आस्था यज्ञ हवन रामायण अखण्ड पाठ अभिषेक से उठ जायेगा | उस दिन के बाद हमारी सनातन स्कार की रक्षा कौन करेगा , आज जिन आयोजित कार्यक्रमों मे मै जाता हू उसके पीछैं यही धर्मपरायण घूसखोरो बेइमानों को ही पाता हू जिनके दान से पन्जीरिया व फ़ल प्रसाद के रूप मे प्रभु व हम जैसे भक्त पाते है यदि ये सन्सार मे नही रहे या इनकी आस्था प्रभु से उठ गयी उस दिन हमारे हिन्दु धर्म का क्षय हो जायेगा हे प्रभु इन्हे फ़लने फ़ूलने दो क्योकि य तो आपके कथनानुसार अपना उपार्जित धन तो आपकी सेवा-सुश्रुशा मे य सन्त की सेवा-सुश्रुशा मे लगा कर धर्मरक्षा मे लगे हुए है इनका कल्याण करो मेरे पडोसी अधिकारी को भी मुझे सन्त मानने व सेवा करने की सद्भावना दो

5 टिप्‍पणियां:

Himanshu Pandey ने कहा…

हर पंक्ति विस्मयकारी ।
पंक्ति-पंक्ति पर टिप्पणी लिखने का मन कर रहा है ।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

बेहद खूब ! ये जिन जनाव का आप जिक्र कर रहे है वे सरकारी टप्पा लगे हफ्ता बसूलने वाले लोग है !

Arvind Mishra ने कहा…

vaah khubai likhe hain !

निर्मला कपिला ने कहा…

बहुत बडिया व्यंग है सन्त जी सन्त बनने से पहले मेरी पोस्ट जरूर पढें जब पोल खुलेगी तो हमे कम से कम एक और पोस्ट लिखने क मसाला तो मिल ही जायेगा। वैसे व्यंग लाजवाब है लोगों के अन्दर तक झाँकेने की अद्भुत दृ्ष्टी भी शुभकामनायें

अर्कजेश ने कहा…

बहुत ही रोचक शैली में लिखा गया व्‍यंग । क्‍या बात है !