रविवार, 13 दिसंबर 2009

अनशन की राजनीति में भेद क्यों ????



क्या अनशनो पर राजनीति करना ठीक है अभी 11 दिनो के अनशन पर भारत सरकार आन्ध्र सरकार तथा सम्पूर्ण विप्क्ष इस अनशन को समाप्त करने तथा एक अलग राज्य बनाने पर एकमत दिखाई दिये आड्वाणी जी की ्सदन मे चिन्तातुर मुख मुद्रा को देख कर मै खुद बडी चिन्ता मे पड गया इस उम्र मे इतनी चिन्ता ठीक नही है लेकिन एक अनशन जो गत गत दस वर्षो से एक महिला एक कानून के खिलाफ़ कर रही है उसके लिये कोई चिन्ता नही है और ना ही उस कानून मे आवश्यक सन्शोधन का ही आश्वासन ही सरकार कर रही है क्या व्यक्ति पर एक कानून इतना अधिक मह्त्वपूर्ण हो गया है कि सरकार इसे बद्लना नही चाह्ती
विगत दिनो मानवाधिकार दिवस , नोबल पुरस्कार तथा तेलन्गाना के लिये अनशन ये तीन घट्नाये हुई है लेकिन मणिपुर के इस अन्हिसक सत्याग्रह को कही भी ना तो मान्यता हि मिल रही है और ना ही विपक्ष चिन्तित दिख रहा है क्या इस लिये कि मणिपुर छोटा राज्य है तथा उसकी खबरो पर ज्यादा ध्यान दिया जाना लोग उचित नही समझते बात तभी समझ मे आती है जब आन््दोलन हिन्सक हो जाता है
. सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम 1958 (एएफएसपीए) भारतीय सशस्त्र बलों को विशेष अधिकार अनुदान के लिए गिरफ्तारी, हिरासत में, पूछताछ या दण्ड से मुक्ति से मात्र संदेह पर किसी भी व्यक्ति को मार डालते हैं. मणिपुर (जहां ki शर्मिला निवासी है) और उसके उत्तर के पड़ोसी राज्यों पूर्वी भारत इस अधिनियम के अधीन लगभग आधी सदी के लिए गुजर रहा है. 2 नवम्बर 2000 के दिन मणिपुर मे मोलाम के निकट आतंकवादियों ने सशस्त्र बलो पर बम फ़ेका जिसकी जबाबी कार्यवाही मे सशस्त्र बलो ने दस नागरिकों की गोली मार कर हत्या कर दी
ऐसा नही है कि यह कोई नयी घटना थी मणिपुरियों के लिये अतीत मे ऐसी कई घट्नाये हो चुकी थी शर्मिला इस घटना के विरुद्ध एक प्रदर्शन मे शामिल होने गयी थी लेकिन इस घट्ना ने इस कवियत्री के मानस पर ऐसा असर छोड़ा कि वह वहकओ नवम्बर 2000 को इस दमनकारी कानून को समाप्त करने के लिये अनशन पर बैठ गयी तब से उसे आत्महत्या करने के प्रयास मे गिरफ़्तार कर लिया गया तथा जेल मे डाल दिया गया जहाँ उसने जमानत लेने से भी इन्कार कर दिया तब से एक अन्तहीन सन्घर्ष शुरू हो गया अब उसके अनशन को तोडने के लिये उसे जबरदस्ती नाक के रास्ते से भोजन दिया जाता है अदालत रिहा करती है वह फ़िर अनशन पर बैठती है तथा फ़िर उसे गिरफ़्तार कर लिया जाता है उसके नाक के रास्ते एक पाइप लगा दिया गया है अस्पताल व जेल तथा यन्त्रणादायक इस प्रक्रिया लगातार 10वे वर्ष मे प्रवेश कर चुका है 30 वर्ष की आयु से जारी अनशन ने शर्मिला के शरीर को कमजोर कर दिया है उसका चेहरा देखने पर सलीब से लट्के ईसा मसीह की तस्वीर की याद आती है
उसका शरीर भले ही कमजोर हो गया है लेकिन उसके इरादे फ़ौलाद की तरह मजबू्त है इस सन्घर्ष मे उसकी मां ने भी अपना योग्दान दिया है यद्यपि वह पढी लिखी नही है लेकिन दमन के कानून के प्रतिकार को बखूबी समझती है उसने इन दस वर्षो मे वह इस भय से कि कही उसके आन्सू शर्मिला के सन्कल्प को कमजोर न कर दे इस लिये उसने यह फ़ैसला किया है कि जब तक उसका उद्देश्य पूरा नही हो जाता तब तक वह उसके सामने नही आयेगी गजब की सन्कल्प शक्ति माँ व बेटी दोनो की है इस जज्बे को शत शत नमन जो लोकहित के सन्घर्ष मे अपनी खुशियो की आहुति दे रही है
इरोम चारू शर्मिला इस लडाई को आध्यात्मिक मानती है उनके अनुसार मेरा aअनशन मणिपुर के लोगों की ओर से है. This is not a personal battle – this is symbolic. यह व्यक्तिगत लड़ाई नहीं है - यह प्रतीकात्मक है.”, यह सत्य, प्रेम और शांति का प्रतीक 'है, .
इस कानून के खिलाफ व्यापक विरोध के बाद केंद्र ने विशेषज्ञ के पूर्व न्यायाधीश जीवन रेड्डी की अध्यक्षता में 2004 में इस कानून की समीक्षा समिति गठित. किया था पैनल ने 2005 मे केंद्र को उसकी सिफारिशों पर कार्रवाई को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की.commission had recommended the law should be repealed (" The Armed Forces (Special Powers) Act, 1958, should be repealed ," it notes in its recommendations. " The Act is too sketchy, too bald and quite inadequate in several particulars "..)

इस अहिन्सक आन्दोलन के बारे मे इस लिन्क पर http://manipurfreedom.org और जानकारी पाई जा सकती है

6 टिप्‍पणियां:

Himanshu Pandey ने कहा…

सूचनाप्रद महत्वपूर्ण आलेख । आभार ।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

यहां कहने को ही लोकतन्त्र है, लेकिन वास्तव में लाठी तन्त्र है, जिसकी लाठी उसकी भैंस.

Arvind Mishra ने कहा…

जीवट की जिजीविषा -सलाम !

अर्कजेश ने कहा…

मुददे अच्‍छी तरह से उठाया है आपने ।

यही सब तो पिलपिली राजनीति है । अपना फायदा नुकसान देखकर सब काम किया जाता है । अनशन करने वाला मर गया तो कितना प्रभाव होगा यही देखकर कार्यवाही की जाती है ।

nomadvineet ने कहा…

2010 मे ये लगभग 10 सालो से उपवास कर रही है | मीडिया को भी अभिनेता लोगो से फ़ुर्सत ही नही है | जिसे जरुरत है ये उनकी मदद नही करते है |

nomadvineet ने कहा…
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