यह त्यागपत्र की घोषणा के बाद मान्यवर के विदाई समारोह का अध्यक्षीय भाषण है
“आज समाचारपत्रों के माध्यम से पता चला कि आन्ध्र प्रदेश के महामहिम राज्यपाल महोदय ने स्वास्थ्य कारणों से अपने पद से त्यागपत्र दे दिया बडे दुःखित मन से ये पोस्ट लिख रहा हूं जो राज्य अपने राज्यपाल को स्वास्थ्यकर दवायें ना उपलब्ध करा सके उस राज्य सरकार को भंग कर देना चाहिये
वैसे नारायणदत्त ज़ी वस्तुतः नारायणमूर्ति थे मोहिनी माया की जिसे योग माया भी कहा जाता है उसे पहचानने के बाद मान्यवर ने उस विषयगामी मायाविनी को समाप्त करने का मन बना ही लिया था लेकिन सत्यानाश हो स्टिन्ग आपरेशन चलाने वालो की जिसने इस पुण्यार्थ कार्य को इतना घिनौना प्रचार कर दिया
हमे कान्ग्रेस के प्रवक्ता के आज के वक्तव्य को नही भूलना चाहिये जिन्होने इस अवसर को राजनीतिक परंपरा का उच्च आदर्श बताया है कल जो घटनाचक्र घटा वह भी राजनीति का उच्च आदर्श था यह अवश्य है कि इस पर किसी पार्टी ने मुँह नही खोला
हमारे यहाँ आदि काल से राज प्रसादो मे कोई हवन व आध्यात्मविद्या का कार्यक्रम नही चलता रहा था इतिहास गवाह है कि राजभवनो मे रनिवास और भोगविलास की समानान्तर गौरवशाली परंपरा रही है मुझे इसमे तनिक भी सन्देह नही है कि यदि स्वास्थ्य ठीक ठाक रहता तो महोदय राजकाज के और उच्च प्रतिमान स्थापित करने मे सफ़ल होते
वैसे विषकन्याओ ने कइ राज्यो का विनाशन किया था इसी का शिकार आप भी हुए है विषकन्याओ के विष की काट के लिये आन्ध्र प्रदेश सरकार ने कोई उपाय नही किया था यह बडी खतरनाक बात है वास्तव मे यह सरकार अक्षम व कमजोर है नारायणी कोप व शाप तुम्हे खा जायेगा रोस्सैया !!!
भारतीय राजनीतिज्ञों की परंपराओं के वाहक नर शार्दूल पन्डित जी आपने सभी बुजुर्गो को सर उठा कर जीनेवाला बना दिया है केशरी व मकरध्वज खाने-पीने के शौकीनों को आपने हरा भरा कर डाला है बुजुर्गो मे एक नया कान्फ़िडेन्स जगा है लोग बाग इन जाडो के दिन मे भी उत्तराँचल की पहाड़ियॉ मे जा कर जडी बूटी सन्जीवनी की तलाश मे जाने की कामना कर रहे है कुछ लोग तो तत्काल आरक्षण भी करा लिये है इससे उत्तरान्चल मे पर्यटन को भी बढावा मिलेगा आम लोगो के चेहरे खिल रहे है
त्यागपत्र जेब मे लेकर राजभवनों मे घुटन व अस्वस्थकर माहौल मे बने रहना भी प्रजातन्त्र का गौरवशाली क्षण है आपका त्यागपत्र सभी नेताओं के लिये आदर्श व अनुकरणीय है विश्वसनीय साथियों की आवश्यकता , छोटी छोटी भूलो के प्रति गहरी सावधानी असत्य कथन पर अन्त तक टिके रहना फ़िर अपने स्वास्थ्य को पद से ऊपर मान कर अन्ततः पदत्याग व सन्यास का आत्मबल एक राजनेता के अनिवार्य गुण है आप इसके मूर्तिमान उदाहरणस्वरूप है आप दीर्घायु हो शतायु हो तथा स्वास्थ्यलाभ करके समाजसेवा तथा समाजोद्धार का कार्य पूर्व की ही भान्ति करते रहे यही भगवान से प्रार्थना है “
6 टिप्पणियां:
nice
शोध का विषय हैं श्रीमन. क्या खाते थे आखिर? सबको पता चल जाये तो मजा न आ जाये.
"जो राज्य अपने राज्यपाल को स्वास्थ्यकर दवायें ना उपलब्ध करा सके उस राज्य सरकार को भंग कर देना चाहियेवैसे नारायणदत्त ज़ी वस्तुतः नारायणमूर्ति थे मोहिनी माया की जिसे योग माया भी कहा जाता है उसे पहचानने के बाद मान्यवर ने उस विषयगामी मायाविनी को समाप्त करने का मन बना ही लिया था लेकिन त्यानाश हो स्टिन्ग आपरेशन चलाने वालो की जिसने इस पुण्यार्थ कार्य को इतना घिनौना प्रचार कर दिया"
इस ओर तो हमारा ध्यान ही नहीं गया था !
बेहद शानदार प्रविष्टि ! आभार ।
इस नए एंगल से लिखकर आपने जो गवेषणात्मक शोध पत्र तैयार किया है वह जन हितकारी है
आप सचमुच राज पद के अधिकारी हैं !
शत आभार श्रीमन्त का, जो सत्य वचन दर्शाय।
माया, मोहिनी, जगत त्रय सबका मन भरमाय।।
अच्छा लिखा है आपने । आगे भी आप के विचारों का इन्तज़ार रहेगा ।
साथ ही 'मरीचिका' पर आपके आने और टिप्पडी देने के लिए धन्यवाद ।
एक टिप्पणी भेजें