सोमवार, 31 अगस्त 2009

क्या कहूँ इस श्लोक पर

संस्कृत साहित्य में एक से एक गूढ़ उक्तियाँ भरी हुई हैं जिन्हें जानने के बाद किसी अन्य की सलाह बेकार लगानेलगती है संस्कृत की एक किताब हाथ में पढ़ने को आई तो भर्तृहरि का यह श्लोक मिला

तावन्महत्वं पांण्डित्यं कुलिनत्वं विवेकिता |
यावज्ज्वालितम नाङेषु हतः पंचेषुपावकः ||
अर्थात बड़प्पन , पांडित्य कुलीनता और विवेक मनुष्य में उसी समय तक रहते हैं जब तक शरीर में कामाग्नि प्रज्ज्वलित नही होती
इस अर्थ ने मुझे सभी प्रकार के हो रहे काम अनर्थो के प्रति गुण सूत्र दे दिया और एक सवाल छोड़ दिया क्यावास्तव में यह अग्नि ऐसी है जिसमे जल कर सभी गुण नष्ट हो जाते हैं व्य्वाहारविद क्या कहते हैं यह जिम्मा मैंअपने सुधी मित्रों पर छोडता हूँ जिनके पास इसका उत्तर अवश्य होगा

बुधवार, 26 अगस्त 2009

क्वचिदन्न्योपि पर चर्चा ?? सुंदरी का क्या करूँ ??

मेरे पुराने मित्र ने अपने क्वचिदन्न्योपि नामक चिट्ठे पर कुछ इस अंदाज से मेरी चर्चा की , कि मुझे भी कुछ दिनोंतक व्यामोह हुआ कि मैं रसिकप्रिय तथा आधुनिक सन्दर्भों में कुछ कुछ हृतिक रोशन जैसा हूँ लेकिन कुछ दिनों केचिंतन के बाद मुझे ऐसा लगा कि भाई अरविन्द जी को यह सब कुछ मेरे ब्लाग पर सुंदरी के लगे चित्र तथा गे आदिपर छपे लेख से ऐसा भ्रम हो गया
वैसे मैंने इस विषय पर अपनी टिप्पणी से अवगत करा दिया है रही बात सुंदरी के चित्र की तो निजी जीवन मेंअहिंसा का संदेश देने का इससे सबल क्या उदाहरण क्या होगा सुंदर चीजो के देखने मात्र से औरों में प्रेम अहिंसाका ही भाव जगता है इसी लिए तो स्त्री पुरूष अपने को सजाते संवारते हैं अब मैं तो यही चाहता हूँ कि चहुँ दिश् प्रेम फैले हो सकता है इसी बात पर मुझे शान्ति का कोई पुरस्कार ही मिलजाए
अब ये भी कोई बातहुई कि जीवन कि निस्सारता को लेकर मुंह लटकाए बैठे हैं बकौल अकबर इलाहाबादी
गुजर कि जब हो सूरत गुजर जाना ही बेहतर है
हुई जब जिंदगी दुश्वार , मर जाना ही बेहतर है

अब फ़िर इसी सुंदरी के चित्र पर फ़िर लौटता हूँ क्या ये जीवन में आशा का संचार नहीं भरती कि जीवन में इतनीनिराशा भरो जितनी वास्तव में है इस आभासी ब्लाग जगत के विचरण में कुछ पल तो सुख के बिता लिया जाएवरना जीवन क्या है बुद्ध ने दुखमय कह कर किनारा कर लिया लेकिन संस्कृत के एक श्लोक जो भर्तिहरि ने लिखा हैवास्तव में सही चित्रण करता है बानगी देखें
क्वचिद्विद्वदगोष्ठि क्वचिदपि सुरमात्तकलहः|
क्वाचिदवीणानादः क्वचिदपि हा हेति रुदितम |
क्वचिद्रम्या रामा
क्वचिदपि जराजर्जरतनु ...
नॄं जाने संसारः किममॄतमयः किं विषमयः || भर्तिहरि
अर्थात कहीं विद्वानों कि गोष्ठी होती है तो कहीं मदोन्म्मत लोगो का उधम दिखाई देता है कहीं वीणा का नाद सुनाई देरहा है , तो कहीं हाहाकार के साथ क्रंदन | कहीं सुंदरी रमणी और कहीं जरा जीर्ण शरीर वाले मिलते हैं | पता नहींयह संसार अमृतमय है या विषमय |
तो ये गूढ़ असार संसार में शोक या हर्ष दोनों सत्य नहीं है पर मित्र ,जब ईश्वर ही सद् चित आनंद है तो हम सब उसईश्वर के अंश अपने छोटे से जीवन में सुख आनंद को क्यों तलाश लें भले वह आनंद सुंदरी के चित्र से ही मिलजाए, हो सके तो यही दर्शन अपनाए सुखी रहे जहाँ से कोई छोटा सा भी सुख का कण मिले उठा ले दूसरो में बांटे उसको भी आनंदित करें
संस्कृत में लिपि कि त्रुटी हुई हो तो सुधिजन क्षमा करेंगे

शुक्रवार, 21 अगस्त 2009

परदेसियों से न ओठवा मिलाना



पुरानी फ़िल्म का ये गाना कुछ संशोधन के साथ गाने से स्वाइन फ्लू से बचाव संभव है विदेशियों से ज्यादा प्रेम चूमा चाटी से अपुन को ही खतरा ही खतरा है मुझे तो मनमोहन सिंह तक ये बात किसी तरह से पहुंचानी है की विदेशियों से थोडी दूरी बना कर ही रहने में सदा फायदा है आपने कहा था कि बुश को पूरा भारत प्यार करता है प्यार करे पर अपने देश को देश के नेता से यदि विदेशी नेता या नेत्री के चक्कर में पडोगे तो वही हाल होगा जो जसवंत सिंह को हुआ
जिन्ना फ्लू ने जान तो बख्श दी किंतु रातोरात योनि परिवर्तन कर जसवंत को हनुमान (वानर योनि ) से रावण (राक्षस योनि ) में बदल डाला मैं तो इस बयान को पढ़ कर चकित हो गया आख़िर ये हनुमान थे तो जामवंत की ताजपोशी में क्यों जुटे हुए थे जामवंत की देखा -देखी जिन्नाह जैसे यक्ष की प्रशंशा करोगे तो यही सब होगा न
भा जा पा में सीता के पास हनुमान क्यों नही जाते इसलिए की राम नाथ क्षमा करें स्वयं राज नाथ की यह राजाज्ञा थी लेकिन सीता कहाँ है तथा हनुमान क्यों नहीं सीता को लेकर भीष्म पितामह के पास क्यों नही जाते या क्यों नहीं घोषणा कर देते कि वे राज चरित मानस भी लिखने वाले हैं पर ये सीता कौन हैं ?? ये सवाल अनुत्तरित ही है कहीं ऐसा तो नहीं कि सीता को भी निकाल कर शूपर्ण नखा कि सत्ता चल रही हो शुपर्ण नखा से स्वाइन फ्लू कि फ़िर याद आ गई
फ़िर विदेशियों से किस न करने कि बात पर लौटें वास्तव में इनसे दूर रह कर आँख लड़ाया तो जा सकता है लेकिन विना किसी मास्क या साधन प्रयोग किए इनसे अंतरंगता दिखाना खतरनाक ही है बल्कि आत्म घातक ही है
ये विष कन्याये या पुरूष तो वाइरस पुरूष व कन्या निकली देखें चित्र व विश्वास करे मानवों में ऐसे ही स्वाइन फ्लू के वाइरस सुवरों से आते हैं सो विदेशियों से ओठ मिलाना छोडिए देशी अपनाइए एन आर आई से भी दूरी बना कर रहिये भले ही वो कितना ही सजीला गठीला सुवर कि तरह हृष्ट पुष्ट क्यों न हो उससे विवाह की बात तो सोचना ही पाप है हे शिव इस नगरी में पर्यटकों से आयातित इस गिफ्ट आइटम व गर्ल्स से सभी को बचाना तेरा ही सहारा है

गुरुवार, 13 अगस्त 2009

स्वाइन फ्लु की ऐसी की तैसी (ऐसे निपटे इस बीमारी से )


क्या आपके पास ये सब है ????
सुलगता जिस्म
नशीली आँखें
कंपकंपाते गुलाबी होंठ
थरथराता बदन
कंपकंपाती सीटी सी आवाज

अगर ये सब आपके पास है .......... तो
घबराए नहीं
आपको स्वाइन फ्लू है !!
इलाज की अपेक्षा प्यार बेहतर है जिंदगी ऐसे खुल कर जियें ,वायरस इसे देख कर ख़ुद ही शरीर से भागजाएगा

शुक्रवार, 7 अगस्त 2009

हस्तिनापुर में बूटा सिंह की जय हो

सत्ता व सुंदरी का सुख उठाने की कला कोई बूटा सिंह जी से सीखे वैसे मई उनके पूरे जीवन की घटनाओ को जब देखता हूँ तो यही पता हूँ कि उन्होंने अपने सत्य को कभी नहीं छोड़ा उनका सत्य था कुर्सी चाहे वो राज्यपाल की हो गृह मंत्री की , या वर्तमान संबैधानिक पद की | इस सत्य के लिए आपने सब कुछ का त्याग किया इमान ,धर्म शर्म सभी का | सत्य का रास्ता कठिन अवश्य होता है किंतु बड़ा ही फलदाई होता है सत्य को ऐसे ही पकड़ा जाता है आज की युवा पीढी को आपके आदर्शो पर चलना चाहिए वर्तमान में जार्ज भाई साहिब भी इसी प्रकार सत्य को पकड़ कर राज्य सभा में पहुँच गए है भले ही वहां शपथ भी नहीं बोल पाए लेकिन मरते मरते भी देश की सेवा का जो व्रत लिया है उसे वो छोडेगे नहीं दोनों बुजुर्गों में सत्य को पकड़ने का फेविकोल बहुत ही मजबूत है बूटा सिंह उम्र से बुजुर्ग हो गए तो क्या हुआ, दिल से वह जवान हैं, तभी तो वह भरपूर सत्ता सुख प्राप्त करना चाहते हैं। सत्ता और सुविधा से उन्हें इतना लगाव है कि उनके बगैर जीवन को ही व्यर्थ मानते हैं। वैसे भी पद और सुविधाओं के बगैर जीने का मतलब ही क्या है।

भइया उमर अब्दुल्लाह को देखो जरा सा आरोप क्या लगा, तुरंत पद छोड़कर जाने लगे। वह तो गनीमत रही कि राज्यपाल ने इस्तीफा स्वीकार नहीं किया वरना बेवजह सत्ता और सुविधाओं से वंचित हो जाते। बूटा सिंह इस उम्र में भी नैतिक जिम्मेदारी वगैरह के थोथे आदर्शों में नहीं पड़ते, फिर क्या जरूरत थी उमर को यह सब सिर पर लादने की। पीडीपी के मुजफ्फर बेग चिल्लाते रहते, उमर को भी कहना चाहिए था कि कुछ भी हो जाए, पर इस्तीफा नहीं दूंगा। खैर अब तो जो हो गया सो हो गया।

बूटा सिंह कांग्रेस के युवा नेताओं को बहुत कुछ सिखा सकते हैं। वह उन्हें बता सकते हैं कि कुर्सी से लगन कैसे लगाई जाए। पद और सुविधा के लिए मर-मिटने का जज्बा कैसे पैदा किया जाए। कैसे आरोपों की बौछारों के बीच भी अविचल रहा जाए। बूटा सिंह ने कुर्सी के लिए जान देने की बात कहकर कुर्सी की गरिमा बढाई है हस्तिनापुर की परम्परा अभी भी जीवित है मुझे तो इसी बात पर गर्व है कि कांग्रेसी होने के बावजूद उन्हें देश की प्राचीन सत्ता - संस्कृति का इतना ख्याल है जय हो बूटा सिंह जी

बुधवार, 5 अगस्त 2009

सास द्वारा लात मारना बहू के प्रति क्रूरता नहीं

सास- बहू के जगत्व्यापी शाश्वत झगडो के मामले में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने सास के बहू को लात मारने को क्रूरता की श्रेणी में नहीं माना है बल्कि इसे अन्य अपराधों की श्रेणी में माना जा सकता है वैसे भी भारतीय संस्कृति में माता ,पिता गुरु व पति के चरण रज स्वर्ग दिलाने का मध्यम है इस्लाम में भी माँ के पैर तलों जन्नत की बात कही गई है फ़िर उस चरण से पिटाई तो आत्मकारक मोक्षदायिनी है तथा संस्कृति की पोषक है उसे क्रूर कैसे माना जा सकता है यही सन्दर्भ सासू माता के मामले में भी लागू होता है
सास बहू के सीरिअल बनाने वाले चाहे तो इस घटना से २० - २५ एपिसोड की कहानी तो आसानी से बना कर जोड़ ही सकते हैं जिसमे अंत में सास को विजय मिलती तथा बहू को शर्मिंदा होते तथा माफ़ी माँगते अंत में दिखाया जाए तथा सास उसे क्षमा करते हुए कहे कि बहू वो तो मेरा कर्तव्य था जो मैंने निभाया तुमको इसमे खामी लगी खैर अब सब कुछ ठीक हो गया जय श्री राधे कृष्ण की

पूरी ख़बर नीचे सन्दर्भों के साथ पढ़ें


सुप्रीमकोर्ट ने कहा कि प्रतिवादी (बहू) को अपीलकर्ता सास द्वारा पैर से ठोकर मारने और उसकी माता को झूठी बताने पर उसे भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए के तहत दंडित नहीं किया जा सकता है बल्कि इसे अन्य अपराध की श्रेणी में रखा जाएगा।

पीठ ने कहा कि इसी प्रकार बहू द्वारा अपीलकर्ता सास पर अपने पुत्र का कान भरने, प्रयोग में लाए गए कपड़े और हमेशा नसीहत देने जैसे मामलों को भारतीय दंड संहिता की धारा 489ए तक दंडनीय अपराध नहीं माना जाएगा। पीठ ने कहा कि यहां तक की पुत्र की दूसरी शादी करने और तलाक की धमकी देने को भी आईपीसी की धारा 498ए के तहत अपराध नहीं माना जाएगा।

भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए के तहत किसी महिला के खिलाफ क्रूरता के मामले में उसके पति या पति के रिश्तेदार को दंडित किया जा सकता है और सजा की अवधि तीन वर्ष तक हो सकती है और उसे अर्थ दंड भी लगाई जा सकती है।

इस मामले में, बहू मोनिका ने दक्षिण अफ्रीका में रहने वाले अपने पति विकास शर्मा, उसके माता-पिता भास्कर लान एवं विमला के खिलाफ क्रूरता तथा विश्वास भंग करने का मामला दर्ज किया था। मोनिका विकास की दूसरी पत्नी है। विकास ने अपनी पहली पत्नी को तलाक दे दिया था जिससे उसके दो बच्चे हैं। शादी के कुछ समय बाद विकास और मोनिका के बीच मतभेद उत्पन्न हो गए और मेलमिलाप की तमाम कोशिशों के विफल होने के बाद मोनिका ने अपने पति और ससुराल पक्ष पर आईपीसी की धारा 498ए (क्रूरता) और धारा 406 (विश्वास भंग) के तहत मामला दर्ज किया।

पटियाला कोर्ट ने मोनिका के पति और ससुरात पक्ष के खिलाफ समन जारी कर दिया था। जबकि दिल्ली हाईकोर्ट ने निचली अदालत के खिलाफ पति और ससुराल पक्ष की अपील को खारिज कर दिया था। इसके बाद यह मामला सुप्रीमकोर्ट के समक्ष आया था।
एक बार फ़िर जय हो कहने का मन कर रहा है लेकिन क्यों कहूँ यदि कह दिया तो मेरी माँ ही खुश हो सकती है और तो नहीं

रविवार, 2 अगस्त 2009

जय हो सुप्रीम कोर्ट की

इन दिनों मै जब भी ब्लॉग पर कुछ लिखने बैठता हूँ तो उसी समय कुछ ऐसे एतिहासिक फैसले हो जाते हैं कि न चाहते हुए भी उसकी ख़बर पर ही लिखने को बाध्य होना पड़ जाता है बहुत पहले एक सरकारी मीटिंग में एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा था कि कोर्ट का चले तो वह इस बात पर भी स्टे लगा सकती है कि किसी बच्चे का जन्म हो अथवा न हो हमें तो हर हाल में स्टे आदेशों का पालन करना है तब यह बात हँसी में उडा दी गई लेकिन रेप कि हुई शिकार लड़की को माँ बनाना /बनना चाहिए इस पर न्यायालय के फैसले से हतप्रभ अवश्य हूँ न्यायालय का सम्मान करते हुए इस न्यूज़ पर नजर डालें तो वकीलों के तर्क व उस पर फसलों कि एक बानगी मिलाती है कि किस प्रकार वकील गण इन फसलों में अहम् भूमिका निभाते हैं
सौरभ द्विवेदी से साभार
सुप्रीम कोर्ट के तीन जज
वकील की दलीलों के कायल हो गए और फैसला दे दिया कि रेप की शिकार हुई लड़की को भी मा

ं बनने का हक है। हक शब्द सुनते ही भावनाएं उमड़ने लगती हैं
, रक्षकों के कान चौकन्मगर अहम सवाल यह है कि क्या मानसिक अस्थिरता की शिकार उस लड़की ने यह हक मांगा है ! क्या वह अपनी इच्छा से मां बनी है ?

किसी वहशी ने नारी निकेतन चंडीगढ़ में उसके साथ रेप किया , गर्भ ठहर गया और अब वकील साहिबा दलील दे रही हैं कि मां बनना उसका हक है और अदालत को उससे यह हक नहीं छीनना चाहिए। हम भी इस दलील के कायल हैं कि निजी मामलों में स्टेट या अदालत का कम से कम हस्तक्षेप हो। मगर अहम सवाल यह है कि यहां उस लड़की की बात हो रही है , जो समाज और स्टेट की जिम्मेदारी है। वह लड़की अपना अच्छा-बुरा नहीं सोच सकती और की निकेतन में रहकर जीवन गुजार रही है। रेप के मामले पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने भी माना था कि इस स्थिति में अबॉर्शन ही एकमात्र विकल्प है , मगर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला पलट दिया।

महिला के अबॉर्शन का विरोध कर रहीं वकील साहिबा ने तर्क दिया कि वह पहले से ही इस दुनिया में अकेली है और इस बच्चे के पैदा होने से उसे खालिस अपना कोई मिल जाएगा। बहुत ही अच्छा तर्क है। वैसे भी मां सुनते ही हमारी भावुकता हिलोरे लेने लगती है। सही बात है , आखिर उस बेचारी औरत का कोई तो अपना होगा। मगर , इस सवाल का जवाब कौन देगा कि मानसिक रुप से अस्थिर इस औरत के बच्चे को पालेगा कौन , स्टेट , अदालत या दूसरी कोई सरकारी संस्था ?

अगर बच्चा बेटी हुआ तो उसे नारी निकेतन में सक्रिय वहशियों से कौन बचाएगा ? कहीं उसका भी रेप हो गया तो ? हो सकता है कि आपको मेरा तर्क अतिवादी लगे मगर क्या यह सच नहीं है कि बच्चा अनाथों की तरह , दूसरों की दया बटोरता पलेगा ? और जब डॉक्टरों के तर्क से सहमत होकर अदालत भी यह मान रही है कि यह महिला अपना अच्छा-बुरा नहीं सोच सकती , तो वह बच्चे की परवरिश कैसे करेगी ? कैसे उसे अपनी ममता की छांह में लेगी और दुनिया की धूप से बचाएगी ?

राखी सावंत और राहुल गांधी पर बहस करने वाले हम भारतीयों को यह मसला गैरजरूरी लगता है ? मां दुनिया का सबसे सुंदर और पवित्र शब्द है और जन्म देना प्रकृति को विस्तार देने जैसा। मगर तभी जब यह अपनी इच्छा से किया गया हो , दुर्घटनावश या बिना सहमति के नहीं। अगर लड़की मानसिक रूप से स्वस्थ होती और किन्हीं परिस्थितियों में हुए रेप के चलते उसे गर्भ ठहरता , तो यह पूरी तरह से उसका अपना फैसला होता कि उसे बच्चे को जन्म देना है या नहीं।