माखन लाल चतुर्वेदी की प्रसिद्द रचना पुष्प की अभिलाषा कों आज के सन्दर्भ में एक स्थान पर कुछ ऐसे लिखा पाया
चाह नही मैं मनमोहन की माला में गुथा जाऊ
चाह नहीं राहुल बाबा की वरमाला में गुथा जाऊ
चाह नही मैं अन्ना के सर चढ़ मैं सत्ता से बतियाऊ
चाह नहीं मैं रामदेव के संग पुलिस की लाठी खाऊ
मुझे तोड लेना दिग्गी तुम उस दफ्तर में देना फेक
बिना वजन फ़ाइल सरका दे जिसके अफसर बाबू नेक
7 टिप्पणियां:
किन्तु कोई पुष्प दिग्गी के हाथ क्यों छुआ जाना चाहेगा? शेष अभिलाषाएँ समझ आती हैं।
घुघूती बासूती
सटीक लिखा पाया
मन भाया।
मैने अपने पिछले पोस्ट में, आपके प्रश्न के उत्तर में एक कविता पोस्ट की थी। लगता है आपने देखा नहीं। कृपया पढ़ने के बाद इस कमेंट को मिटा दें।
अभिलाषाएं तो बढ़िया हैं - परन्तु दिग्गीजी के हाथों ????
एकदम सटीक, किन्तु हाँ बनमाली की जगह डिग्गी राजा तो खटक रहें हैं। गूगल+ और फेसबुक पर शेयर कर रहा हूँ।
बलि बलि जाऊं इस अभिलाषा पर मगर शिल्पा जी ने सही टोका है !
kabhi acha likhte ho aap sirf ye bata do ki aap ne ye font konsa istemal kiya hai .
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