शनिवार, 31 मई 2008

क्या जमाना ख़राब है (गजल)

क्यों कह रहे हो तुम कि जमाना ख़राब है
आदमी भी क्या यहाँ पे कम ख़राब है

हमसे ही जमाना , ज़माने से हम नहीं
अच्छे कहाँ है हम कि जमाना ख़राब है

सर आदमी का आदमी ही काटता है यहाँ
फ़िर आदमी ही कहता है जमाना ख़राब है

दुनिया संवारने को क्या तुमने कुछ किया
जो कह रहे हो कि जमाना ख़राब है

औरो के मुंह की रोटी , आंखो के ख्वाब को
जो छिनते कहते वही , जमाना ख़राब है

क्या तुमने कभी ख़ुद के गरिबां मे है झाँका
जो हमसे कह रहे हो कि जमाना ख़राब है

क्या फैसलाकुं नजरें हाकिम ने पाई है
हर फैसले पे कहतें है जमाना ख़राब है

माना ख़राब है ये जमाना मगर कहो
किसकी वजह से ये सारा जमाना ख़राब है

फैसलाकुं -- फैसला करने वाली

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