अमेरिकी विदेश नीति पर केंद्रित पत्रिका 'फॉरेन अफेयर्स' को दिए गए इंटरव्यू में बराक ओबामा ने अपनी दक्षिण एशियाई नीति का खुलासा किया है। इसके मुताबिक पाकिस्तान सरकार अफगानिस्तान से सटी अपनी सीमा की निगरानी पर अपना पूरा ध्यान तभी दे पाएगी, जब वह भारत से सटी अपनी पूर्वी सीमा की सुरक्षा को लेकर आश्वस्त हो। ओबामा इसके लिए कश्मीर मसले का समाधान जरूरी मानते हैं और इस काम में अपनी तरफ से हर संभव सहायता के लिए तैयार हैं।
यह एक खतरनाक प्रस्थापना है और इसमें पाकिस्तान सरकार का प्रॉपेगैंडा ध्वनित होता है। दरअसल, कश्मीर समस्या की आड़ लेकर पाकिस्तान सरकार अभी तक आतंकवाद को दिए जाने वाले अपने खुले संरक्षण को जायज ठहराती आई है। 26 नवंबर को मुंबई पर हुआ आतंकवादी हमला यह साबित करने के लिए काफी है कि अमेरिका के डेमैक्रैटिक एस्टैब्लिशमंट को अब भारत-पाकिस्तान संबंधों को कश्मीर के लेंस से देखने की परंपरा छोड़नी होगी।
ओबामा को अमेरिकी इतिहास में सबसे ज्यादा ग्लोबलाइजेशन विरोधी राष्ट्रपति के रूप में देखा जा रहा है। बेरोजगारी की जैसी आंधी अमेरिका में चल रही है, उसमें नौकरियां बाहर न जाने देने की मजबूरी भी उनके सामने रहेगी। लेकिन अमेरिकी कंपनियों को अपनी चीजें और सेवाएं अगर ग्लोबल होड़ में टिकानी हैं, तो महंगे अमेरिकी श्रम का विकल्प उन्हें खोजना ही पड़ेगा।
ओबामा प्रशासन का रवैया आउटसोर्सिन्ग के बारे में चाहे जो भी हो, लेकिन तय है कि अगर अमेरिका ने बंद दरवाजे की नीति अपनानी शुरू की, तो यह प्रक्रिया पूरी दुनिया में चल पड़ेगी। विदेशी बाजारों पर निर्भरता दुनिया के और किसी भी देश से ज्यादा अमेरिका की समस्या है, लिहाजा रोजगार बचाने की उनकी मुहिम वहां बेरोजगारी के और भी बड़े खतरे का सबब बन सकती है।
संक्षेप में कहें तो अमेरिका का अगला प्रशासन भारत के लिए अभी एक बंद किताब की तरह है। किसी अच्छी या बुरी धारणा से शुरू करने की बजाय इसके पन्ने पलटकर ही इसके बारे में कोई राय बनाना ठीक रहेगा।
टाइम्स ऑफ़ इंडिया की ख़बर पर आधारित इस लेख से तो लगता है कि प्रणव बाबु को विक्स कि गोली खा खा कर अभी बोलना जारी रखना होगा
1 टिप्पणी:
सहमत ! अब अकेले विक्स से भी कुछ नहीं होने वाला है उन्हें वियाग्रा और विक्स का मिक्स चाह्हिये !
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