सास बहू के सीरिअल बनाने वाले चाहे तो इस घटना से २० - २५ एपिसोड की कहानी तो आसानी से बना कर जोड़ ही सकते हैं जिसमे अंत में सास को विजय मिलती तथा बहू को शर्मिंदा होते तथा माफ़ी माँगते अंत में दिखाया जाए तथा सास उसे क्षमा करते हुए कहे कि बहू वो तो मेरा कर्तव्य था जो मैंने निभाया तुमको इसमे खामी लगी खैर अब सब कुछ ठीक हो गया जय श्री राधे कृष्ण की
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सुप्रीमकोर्ट ने कहा कि प्रतिवादी (बहू) को अपीलकर्ता सास द्वारा पैर से ठोकर मारने और उसकी माता को झूठी बताने पर उसे भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए के तहत दंडित नहीं किया जा सकता है बल्कि इसे अन्य अपराध की श्रेणी में रखा जाएगा।
पीठ ने कहा कि इसी प्रकार बहू द्वारा अपीलकर्ता सास पर अपने पुत्र का कान भरने, प्रयोग में लाए गए कपड़े और हमेशा नसीहत देने जैसे मामलों को भारतीय दंड संहिता की धारा 489ए तक दंडनीय अपराध नहीं माना जाएगा। पीठ ने कहा कि यहां तक की पुत्र की दूसरी शादी करने और तलाक की धमकी देने को भी आईपीसी की धारा 498ए के तहत अपराध नहीं माना जाएगा।
भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए के तहत किसी महिला के खिलाफ क्रूरता के मामले में उसके पति या पति के रिश्तेदार को दंडित किया जा सकता है और सजा की अवधि तीन वर्ष तक हो सकती है और उसे अर्थ दंड भी लगाई जा सकती है।
इस मामले में, बहू मोनिका ने दक्षिण अफ्रीका में रहने वाले अपने पति विकास शर्मा, उसके माता-पिता भास्कर लान एवं विमला के खिलाफ क्रूरता तथा विश्वास भंग करने का मामला दर्ज किया था। मोनिका विकास की दूसरी पत्नी है। विकास ने अपनी पहली पत्नी को तलाक दे दिया था जिससे उसके दो बच्चे हैं। शादी के कुछ समय बाद विकास और मोनिका के बीच मतभेद उत्पन्न हो गए और मेलमिलाप की तमाम कोशिशों के विफल होने के बाद मोनिका ने अपने पति और ससुराल पक्ष पर आईपीसी की धारा 498ए (क्रूरता) और धारा 406 (विश्वास भंग) के तहत मामला दर्ज किया।
पटियाला कोर्ट ने मोनिका के पति और ससुरात पक्ष के खिलाफ समन जारी कर दिया था। जबकि दिल्ली हाईकोर्ट ने निचली अदालत के खिलाफ पति और ससुराल पक्ष की अपील को खारिज कर दिया था। इसके बाद यह मामला सुप्रीमकोर्ट के समक्ष आया था।
एक बार फ़िर जय हो कहने का मन कर रहा है लेकिन क्यों कहूँ यदि कह दिया तो मेरी माँ ही खुश हो सकती है और तो नहीं
एक बार फ़िर जय हो कहने का मन कर रहा है लेकिन क्यों कहूँ यदि कह दिया तो मेरी माँ ही खुश हो सकती है और तो नहीं
2 टिप्पणियां:
मुझे कभी कभी निर्णय समझ में नहीं आते,, फिर यह मान लेता हूं कि वे लोग अधिक अनुभवी तथा समझदार हैं. बहरहाल अदालतों के बारे में कुछ न कहना ही बेहतर.
कहीं अदालत की अवमानना न हो जाये -वयंग का पैना जरा हौले हौले !
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