शुक्रवार, 7 अगस्त 2009

हस्तिनापुर में बूटा सिंह की जय हो

सत्ता व सुंदरी का सुख उठाने की कला कोई बूटा सिंह जी से सीखे वैसे मई उनके पूरे जीवन की घटनाओ को जब देखता हूँ तो यही पता हूँ कि उन्होंने अपने सत्य को कभी नहीं छोड़ा उनका सत्य था कुर्सी चाहे वो राज्यपाल की हो गृह मंत्री की , या वर्तमान संबैधानिक पद की | इस सत्य के लिए आपने सब कुछ का त्याग किया इमान ,धर्म शर्म सभी का | सत्य का रास्ता कठिन अवश्य होता है किंतु बड़ा ही फलदाई होता है सत्य को ऐसे ही पकड़ा जाता है आज की युवा पीढी को आपके आदर्शो पर चलना चाहिए वर्तमान में जार्ज भाई साहिब भी इसी प्रकार सत्य को पकड़ कर राज्य सभा में पहुँच गए है भले ही वहां शपथ भी नहीं बोल पाए लेकिन मरते मरते भी देश की सेवा का जो व्रत लिया है उसे वो छोडेगे नहीं दोनों बुजुर्गों में सत्य को पकड़ने का फेविकोल बहुत ही मजबूत है बूटा सिंह उम्र से बुजुर्ग हो गए तो क्या हुआ, दिल से वह जवान हैं, तभी तो वह भरपूर सत्ता सुख प्राप्त करना चाहते हैं। सत्ता और सुविधा से उन्हें इतना लगाव है कि उनके बगैर जीवन को ही व्यर्थ मानते हैं। वैसे भी पद और सुविधाओं के बगैर जीने का मतलब ही क्या है।

भइया उमर अब्दुल्लाह को देखो जरा सा आरोप क्या लगा, तुरंत पद छोड़कर जाने लगे। वह तो गनीमत रही कि राज्यपाल ने इस्तीफा स्वीकार नहीं किया वरना बेवजह सत्ता और सुविधाओं से वंचित हो जाते। बूटा सिंह इस उम्र में भी नैतिक जिम्मेदारी वगैरह के थोथे आदर्शों में नहीं पड़ते, फिर क्या जरूरत थी उमर को यह सब सिर पर लादने की। पीडीपी के मुजफ्फर बेग चिल्लाते रहते, उमर को भी कहना चाहिए था कि कुछ भी हो जाए, पर इस्तीफा नहीं दूंगा। खैर अब तो जो हो गया सो हो गया।

बूटा सिंह कांग्रेस के युवा नेताओं को बहुत कुछ सिखा सकते हैं। वह उन्हें बता सकते हैं कि कुर्सी से लगन कैसे लगाई जाए। पद और सुविधा के लिए मर-मिटने का जज्बा कैसे पैदा किया जाए। कैसे आरोपों की बौछारों के बीच भी अविचल रहा जाए। बूटा सिंह ने कुर्सी के लिए जान देने की बात कहकर कुर्सी की गरिमा बढाई है हस्तिनापुर की परम्परा अभी भी जीवित है मुझे तो इसी बात पर गर्व है कि कांग्रेसी होने के बावजूद उन्हें देश की प्राचीन सत्ता - संस्कृति का इतना ख्याल है जय हो बूटा सिंह जी

4 टिप्‍पणियां:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

बूटा जी कांग्रेसी परम्परा का ही निर्वाह कर रहे हैं.

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने कहा…

वाह, करारा तमाचा दिया है आपने इस सत्तालोलुप दुरात्मा को। जय हो।

Arvind Mishra ने कहा…

आपका मूल कथोपकथन हमेशा व्यंग का ही रूप धारण करता है -यहाँ तक की प्रेमातुर प्रकरणों में भी आप व्यंगात्मक हो जाते हैं -रस की यह कौन सी निष्पत्ति है राम !

अनूप शुक्ल ने कहा…

झकास लेखन! जय हो!