गुरुवार, 10 सितंबर 2009

श्राध्ध कैसे कैसे ????



इस समय पितृपक्ष चल रहा है मान्यता है कि इस माह में पितरि लोक का द्वार खुल जाता है जिसमे पितृ लोग मृत्यु लोक में आते हैं तथा अपने पुत्रों प्रपौत्रों से श्राद्ध के रूप में पिंड दान स्वीकार करते हैं तथा ब्राहमणों को किया हुआ दान उन्हें प्राप्त होता है सभी धर्मों में अपने पूर्वजों को याद कराने के लिए उन्हें श्रद्धा देने के लिए कोई न कोई तिथि निर्धारित कि गई है हिंदू धर्म में इसके लिए एक पक्ष १५ दिनों कि व्यवस्था कि गई है
समय बदल रहा है शहरों में जिनके पिता जीवित नहीं है उसमे से कुछ लोग प्रतीकात्मक रूप से मूछ मुड़वा कर इस पक्ष कि इति श्री कर लेते हैं लेकिन वे तो हमेशा ही clean shaved सफाचट रहतें है तो पता ही नहीं चलता कि वास्तव में वे अपने पूर्वजो के सम्मान में मुछों का वलिदान किए हैं या सुंदर व पके हुए बाल छिपाने के लिए
वाराणसी हिन्दुओं का एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है पिशाच मोचन नामक जगह पर इन दिनों देश के दूर दराज से आए श्रद्धालु श्राद्ध कराने के लिए आ रहे हैं तथा पंडा लोग अपने अपने मायाजाल में इन श्रद्धालुओं को मुड़ने का भी काम करते रहते हैं अब जो इतनी दूर से वाराणसी आया है कुछ तो लिहाज करेगा ही लेकिन सत्यानाश हो इन लालची पंडो का जो यजमान कि जेब देखे विना ही नाना प्रकार के अलभ्य वस्तुओं कादान का संकल्प करा कर बाद में रुपये ऐंठते हैं
अब जब दाल के भावः सराफा बाजार कालम के निकट ही दिखाते हों विश्वास न हो तो अखबार का पन्ना देखे पीली धातु के निकट ही इस पीली चीज का भावः लिखा रहता है ऐसे में यजमान दाल घी व चीनी आदि का वार्षिक खपत जो पितरों के नाम पर संकल्प कराई जा रही है उस्केव नाम पर सौ , सवा सौ दे कर अपना पिंड छुड़ाना चाहता है लेकिन ये मरदूद यजमान को भय दिखा कर इन सब चीजो के नाम पर पितरों के अशंतुष्ट होने तथा शाप देने कि बात कह कर शोषण कराने पर लगे हुए हैं
१५ दिन के लिए पुरातन काल से खाद्यान कि गारंटी प्राप्त इन पंडों को कौन समझाए कि ज़माने के हिसाब से ख़ुद को बदलिए पंडा जी अब यजमान को भी कहना पड़ रहा है कि बाबु जी को दाल घी से एलर्जी थी तथा वे तो सुखी घास कि रोटी करेला खाते रहे सो दाल घी का दान तो उनकी आत्मा को कष्ट ही पहुँचायेगा यजमान जनता है कि वो झूठ बोल रहा है लेकिन वो अच्छी तरह से जनता है कि पितर लोग इस लोक में कर महंगाई को जान चुके होंगे सो समझौता कर ही लेंगे \ और स्वर्ग हो चाहे नरक वहां तो खाद्यान का कोई संकट होगा ही नही आख़िर हमारे पूर्व खाद्य कृषि मंत्री घास तो खोद नहीं रहे होंगे
जब एक शरद पवार हमें निराश न होने कि सलाह दे रहे हैं तो आजादी के बाद दिवंगत हुए कई मंत्री समूह स्वर्ग / नरक में अच्छी व्यवस्था तो किए ही होंगे मुझे तो लगता है कि पितर लोग इस पक्ष में खाने के लिए नहीं बल्कि हालीवुड बालीवुड में मुहूर्त में भाग लेते होंगे कि बनारस के ट्रेफिक जाम में फंस कर धुंवा के बीच कच्चे जौ का आटा लेने आते होंगे
अरे जिन बच्चो ने जीते जी पानी नहीं पिलाया भले मरते समय डाक्टर से पानी कि बोतल चढवा दी हो उसका क्या लेना क्या लादना | बच्चे भी समझ रहे हैं इस लिए थोड़े में ही श्राद्ध निपटाना चाहते हैं अब ऐसी विकट परिस्थितियों में नीचे की कविता ही सबका मार्ग दर्शन करेगी जो बहुत पहले रीती काल में लिखी गई थी आशा है पंडा व यजमान दोनों इससे लाभान्वित होंगे तभी दोनों की व धर्म की लाज बचेगी
दाम की दाल छदाम के चाउर घी अँगुरीन लैँ दूरि दिखायो
दोनो सो नोन धयो कछु आनि सबै तरकारी को नाम गनायो
विप्र बुलाय पुरोहित को अपनी बिपता सब भाँति सुनायो
साहजी आज सराध कियो सो भली बिधि सोँ पुरखा फुसलायो

1 टिप्पणी:

Arvind Mishra ने कहा…

वाह भाई खूब श्राद्ध कए हो -अरहर की दाल याद आ गयी !