रविवार, 27 सितंबर 2009

राखी सावंत से समाजशास्त्रीय सवाल जबाब

साधो एक दिन रात में टी वी का कार्यक्रम देखते देखते सो गया तो मुझे ऐसा आभास हुआ कीमैं राखी जी से सामाजिक मूल्यों पर उनका साक्षात्कार ले रहा हूँ इस साक्षात्कार से मेरे शरीर केहर ज्ञान चक्षु मानो खुल गए तथा सारी थकावट दूर हो गई उस सवाल जबाब का सिलसिला शुरूकरते हैं ( राखी जी से क्षमा याचना सहित कि इनकी यह फोटो फोटो राखी जी के सामाजिकप्रतिमानों के विपरीत लगे हैं )
प्रश्न --- क्या आप यह मानेंगी कि आपका अंग प्रदशन नई पीढ़ी पर दूषित प्रभाव डाल रहा है ?
राखी- (खिलखिलाते हुए) देखिए हमारे अंग प्रदर्शन का समाज के सभी वर्गों पर बडासकारात्मक असर डाल रहा है पहले बच्चों को लेते हैं- बच्चे पेड़ पर नहीं उगाए जाते, फैक्ट्री मेंनहीं ढाले जाते, बिस्तर पर बनाए जाते हैं, भोले बच्चों में स्वाभाविक जिज्ञासाएं होती हैं, वे छोटेक्यों हैं, बड़े बड़े क्यों हैं, वे इस दुनिया में कहां से आए, मां बाप , कुटुम्बी, टीचर उन्हें सही उत्तरदेना गन्दी बात समझते हैं-हमारे अंग प्रदर्शन से उन्हें काफी जानकारी मिल जाती है, जो उनके मानसिक विकासमें बहुत काम आती है। जहां तक यंग लड़के लड़कियों का प्रश्न है तो उनके लिए हमारा अंग प्रदर्शन एक वरदान है।इससे उनमें साहस और आत्मविश्वास, खासतौर से लड़कियों को तो अपनी बाडी की ताकत और कीमत का अन्दाजलग जाता है।

अब लीजिए काम धंधे में फंसे और पिसते वर्ग को तो हमारा अंग प्रदर्शन पल-भर की चैन देता है प्रदर्शन उनकेघुटन भरे जीवन में ठंडी हवा का झोंका है, तपते रेगिस्तान में शीतल छांव है। मैं एक ट्रेड सीक्रेट बताती हूं, खर्चकरने की पावर के चलते यह वर्ग हमारी इंडस्ट्री का मेन टारगेट है। मुझे इस वर्ग से बहुत ही उम्मीद रहती है जबएक मध्य वर्ग का व्यक्ति मेरे शो को ऐसे ध्यान से देखता है जैसे सत्य नारायण की व्रत कथा मे सन्कलप ले करकथा सुन रहा हो तो मुझे लगता है कि मेरा जीवन कला के प्रति समर्पण सफ़ल हो गया

अब बात करें स्त्री की, हम उन्हें पुरुष की गुलामी से छुटकारा पाने का आसान मंत्र दे रहे हैं, शरीर के सटीक प्रयोगसे, वे जो चाहें जहां चाहें, हर चीज़ हासिल कर सकती हैं। आशिकी से लेकर नौकरी तक , ग्लैमर की दुनिया से लेकरपालिटिक्स हर जगह यह मन्त्र अमोघ बाण का काम करता है।

रही बात बुजुर्ग पीढ़ी की, उनकी छोड़िए। जब से दुनिया बनी है तभी से नई पीढ़ी के रहन-सहन, पहनने-ओढ़ने, उठने-बैठने, चलने-फिरने हर बात में माथा पीटते हैं। खुद अपने टाइम में मजे मार लिए और हमें उस मजे सेरोकते हैं। हम जानते हैं कि उम्र के चलते अंगूर खट्टे हैं वरना क्या-क्या नहीं करते। दरअसल यह जनरेशन गैप है, इसलिए हम उनकी बातों पर ध्यान नहीं देते। तरस आती है उनकी सोच पर

प्र्श्न------ लेकिन आप यह जरूर मानेंगी कि सेक्स के भौंडे प्रदर्शन से समाज में सांस्कृतिक, धार्मिक और नैतिकमूल्यों में गिरावट रही है।
राखी -- प्लीज माइंड योर लैंगवेज। अंग प्रदर्शन एक कला है, भौंडा वह होता है जिसके मूल में मूर्खता हो, फूहड़ताहो, अव्यवस्था हो। हमारा हर मिनि प्रदर्शन योजनानुसार आकर्षक और शानदार होता है। उसको भौंडा कहनाअपनी नासमझी ज़ाहिर करना है। मैने अभी आपको अँग प्रदर्शन के लाभ गिनाए हैं।
जहां तक आपके इन सोकाल्ड मूल्यों का सवाल है तो मेरी राय है कि आप लोग पहले अपने इन मूल्यों को मजबूतबनाइये। एक आँख मिचकाने या जरा सा बाडी हिला देने से जो मूल्य भरभरा कर गिर पड़ें, उन्हें कोई नहीं बचासकता। आप धर्म की बात कर रहे हैं, लाखों की भीड़ के बीच से नागा साधु त्रिवेणी नहाने जाते हैं। नैतिकता कादोहरापन देखिए, खजुराहो और कोणार्क की मिथुनरत मूर्तियां और पैरिस के चित्रों की तारीफ में जिनकी जुबाननहीं थकती, वही हमारी अर्धनग्नता पर नाक भौं सिकोड़ते हैं। पतन-पतन कर छाती पीटते हैं। अरे नग्नता तोनग्नता है, चाहे पत्थर में हो, कागज पर हो या सशरीर सामने हो! यदि उन्हें आपने कला का दर्जा दिया है तोआपको हमारे अंग प्रदर्शन को कला मानना ही होगा जीवित कला हा हा हा -----
प्रश्न.- मैडम बुरा मानें आप लोगों पर नंगई इतना हाबी है कि कला जैसे पवित्र शब्द को गन्दगी में घसीट रही हैं?
राखी-(टोकते हुए) ...मैं कला में गन्दगी नहीं घसीट रही हूं, थोथी कूपमंडूकता को झिंझोड़ रही हूं। दोहरेपन कीनकाब उघाड़ रही हूं जो औरत को देखते ही बिस्तर पर बिछाने की कल्पना में डूबने उतराने लगते हैं। और ऊपर सेकला पारखी, समाज सुधारक जैसे मुखौटे लगा लेते हैं। यह दोहरा माप दन्ड नही चलेगा
प्रश्न.- आप अंग प्रदर्शन को आप किस सीमातक जायज समझती हैं ?
राखी.- जिस सीमा तक लोगों को अच्छा लगे...आप अपनी सीमा बताइये
प्रश्न. -यानी लोगों के चाहने पर आप और छोटी साईज के कपडे पहनने मे विश्वास करती है ?.
राखी- मैं समझ गयी आप अंग प्रदर्शन की सीमा को क्वांटिफाई करना चाहते हैं। देखिए यह तो आप जानते ही होंगेकि वेश्या की नग्नता कौड़ियों में बिक जाती है, जबकि हमारी अर्धनग्नता हमें लाखों-करोड़ों दिला देती है।लुकाछिपी के इस खेल में कपड़ों की सीमा जरूरत के हिसाब से घटती-बढ़ती रहती है। दरअसल यह अर्थशास्त्र काप्रश्न है, आप जितना इसको समझने की कोशिश करेंगे उतना उलझते जाएंगे। चलिए एक सूत्र देती हूं विश्व भर कीविग्यापन-दुनिया का बजट करोड़ों नहीं अरबों में है और वह समूची दुनिया औरत के कपड़े पहनने, उतारने कीबैसाखी पर टिकी है, ड्रेस का साइज उसी के मुताबिक तय होता है।
प्रश्न- लोग आपकी आलोचना करते हैं आपको इसका बुरा नहीं लगता ?
राखी- (हल्की मुस्कुराहट) बुरा लगने का तो प्रश्न ही नहीं होता, बल्कि यह तो हमारी सफलता की निशानी है।जितनी अधिक चर्चा होगी, उतनी पब्लिसिटी मिलेगी। नाम ना हुआ तो क्या बदनाम तो हुए पब्लिसिटी आगे बड़ेबड़े काम दिलाती है और फिर तरक्की की राह में रोड़े अटकाना, बढ़ते की टांग खींचना लोगों की
कठमुल्लों की पूछिए, हर चेंज और तरक्की पर हाय-तौबा मचाना उनकी फ़ितरत है, उनका बस चलता तोइन्सान को गुफा-युग से बाहर नहीं निकलने देते, उनकी बकवास का हम कतई परवाह नहीं करते
सवाल जबाब की यह कडी बीच मे ही रह गयी क्यो कि मेरी नीद टूट गयी थी सवेरा हो चुका था और बर्तन मान्जनेवाली राखी (राख) चहिये थी सो वह राखी कहा है चिल्ला रही थी मै उस राखी की तलाश मे बाहर निकल गया था

2 टिप्‍पणियां:

गिरिजेश राव, Girijesh Rao ने कहा…

हाएँ ! इतनी अच्छी पोस्ट पर कउनो नहीं टिपियाया !!
हिन्दी जगत माँ इ का हो रहा है ! चवन्नी छाप पोस्टों पर डॉलर-यूरो-दिनार के भाव कमेंट और इस विशुद्ध भारतीय लेख से इतनी दहशत !
रुपया बौत मज़बूत हो चला है।
....
लिखते रहिए। हम आते रहेंगे।

Arvind Mishra ने कहा…

की बोर्ड की कोई की जरूर छटक गयी होगी -लाजवाब ! जुग जुग जियो माटी के लाल !क्या कलमतोड़ लेखनी और पलंगतोड़ पोस्ट है !