शुक्रवार, 30 अक्टूबर 2009

सेमीनार आदि को सफल बनाने के नुस्खे एक शोध

सभा को सफ़ल करने के लिये तीन चीजो की आवश्यकता होती है अध्यक्ष मुख्य अतिथि तथा संचालक जब तक इन तीनो की खोज कोई आयोजक नही करता तब तक उसका आयोजन सफ़ल नही माना जा सकता
अध्यक्ष – प्रत्येक शहर मे कुछ स्थाई तथा कुछ अस्थायी अध्यक्ष होते है जिन्हे जनता जानती है तथा पह्चानती है ऐसे अध्यक्ष शहर की जान होते है लोक सभा हो शोकसभा हो राज सभा हो या खाज सभा हो ये अध्यक्ष इस भार को उठाने के लिये हमेशा तैयार रहते हैं
एक प्रोफेशनल अध्यक्ष वही होता है जो किसी आमन्त्रण को कुछ आनाकानी के बाद सन्कोच के साथ स्वीकारोक्ति दे जो नौसिखिये अध्यक्ष होते है वे आमन्त्रण पाते ही शेव बनाने मे लग जाते है तथा आयोजन स्थल पर पहुँचने के एक घंटे पूर्व तक शेव पर पाउडर सेंट से सुवासित हो कर लक्दक सफ़ेद कुर्ते शेरवानी मे तैयार हो कर आयोजकों की प्रतीक्षा करते है जिनकी दाढ़ी होती है वे अपनी दाढी मे उँगलियों को डाल डाल कर उसे उलझाऊँ बना देते है ताकि वे चिन्तक टाइप लगे यदि आयोजक वाहन के साथ आत है तो ये मूत्र विसर्जन आदि क्रिया करने के बाद वाहन मे बैठ जाते है अन्यथा की स्थिति मे ये किसी साधन से सभा मे पहुँच कर देरी से अग्रिम पन्क्ति मे तब पहुँचते है जब कोई देशभक्तिपूर्ण फ़िल्मी गाना बज रहा हो अग्रिम पन्क्ति मे पहुँचने क फ़ायदा यह होता है कि आयोजकों की नजर उन पर पड जाये
मन्च पर अध्यक्ष के बैठते ही माहौल गम्भीर हो जाता है सन्चालक जो अभी तक सियार की तरह हुआ हुआ कर रह होता है वे अचानक अमीन सयानी कि तरह आवाज निकाल कर अध्यक्ष की प्रन्शसा मे कुछ इश्किया शायरी के बल पर ऐसा समा बान्धते है जैसे अध्यक्ष न हुआ कोई फ़रिश्ता जमीन पर आ कर आमीन कर रहा है
आयोजनों मे सन्चालक की भूमिका महत्वपूर्ण होती है कुछ सन्चालक ऐसे कुचालक या कुपात्र होते है कि सम्वाद कि ऐसी तैसी कर डालते है इतिहास साक्षी है कि कई सन्चालको के चलते सभाओं मे जूते चप्पल चल जाते है आयोजन नही चल पाता
इस लिये आयोजको को कुशल सन्चालक की खोज ऐसे ही करना चाहिये जैसेकि लड्की का बाप इन दिनो वर ढूढ़ने निकलता है वैसे प्रत्येक शहर मे रेडीमेड सन्चालक आसानी से मिल जाते है जो प्राय: इश्क़ मे नाकाम शायर होते है जिन्हे कवि सम्मेलनों मे जगह नही मिलती
अब थोडी चर्चा मुख्य अतिथि की हो जाये वैसे इस प्रजाति के जीव हर नगर शहर मे बहुतायत मे होते है जैसे मन्डलायुक्त एस डी एम कुलपति कुलाधिपति ( राज्यपाल से इतर ) महपौर नगर पालिका अध्यक्ष आदि
मुख्य अतिथि जितना ही विषय से अनभिज्ञ हो उतना ही अच्छा होता है उसकी अनभिज्ञेय होना उसके भाषणबाजी मे जान डाल देता है श्रोता भावविभोर व भावशून्य दोनो स्थितियो के बीचोंबीच डोलता हुआ समझ नही पाता की वह किस लिये आया है तथा इस सभा से उसे कुछ लाभ होने वाला है कि नही यही तो आयोजन की सफ़लता का राज है कि श्रोता पूरीतरह से असमंजस मे पडा रहे तथा अन्त तक यह स्थिति बनी रहे इसमे मुख्य अतिथि के अज्ञानी होने से बडा लाभ होता है कभी कभी मुख्य अतिथि को बार बार बैनर देखना पड़ता है कि वे किस सभा मे आये हुए है सफ़ल मुख्य अतिथि वही है जो बार बार घडी देख कर एह्सास कराता रहे कि सन्चालक उसके अतिव्यस्त होने ka बखान कराके यह अहसास करात रहे कि सभी के सौभाग्य से वे आज हमे धन्य करने आ पधारे है वैसे मुख्य अतिथि व द्वार पूजा के हाथी मे कोई खास अन्तर नही होता दोनो शोभाकार ही होते है शान से धीरे धीरे आते है और काम हो जाने के बाद वन्दना पूजा कराने के बाद खिसक लेते है
आयोजक कभी कभी सरस्वती वन्दना करने वाली बालाओ को कनखी से देख कर अपने बालो पर हाथ फ़ेर लिया करते है जिस आयोजन मे सरस्वती वन्दना वाली बालाये नही होती वहाँ ये सन्स्कार की दुहाई देते है कि सन्स्कारो का पतन हो गया है दूसरे अर्थो मे आयोजक सन्स्कार विहीन है जो मुख्य अतिथि आयोजन व आतिथ्य से प्रसन्न हुआ रहता है वह आयोजकों को उनके समाज़ के प्रति उत्तरदायित्व की महत्ता बता कर सस्था की बडाई कर विशुद्ध आशीर्वाद दे कर फ़ूट लेते है लेकिन जो माइक देर तक पकड कर बोलना चाह्ते है उनकी विद्वता की पोल खुल ही जाती है लोकप्रिय अतिथि जल्दी से आशीष दे कर अगले कार्यक्रम की ओर बढ जाते है
रही बात अध्यक्षों की तो पूरे सभा मे सबसे निरीह प्राणी बन कर सबको सुनता है कभी विषयवस्तु तो कभी विषयासक्त होता रहता है बार बार गालो पर हाथ फ़ेर फ़ेर कर सोचता है शेव कैसी बनी है कभी फूल तो कभी फूलदान को देखता तकता है कभी उन मालाओ को देखता है फ़िर फ़ोटोग्राफ़रो को देख कर स्मित ओठ फ़ड्फ़डाता है
उसके भाषण की बारी नैराश्य पूर्ण होती है क्यो कि बोलने को कुछ बचता ही नही जो अनुभवी अध्यक्ष होते है वे तो पूर्व वक्ताओ मे से किसी से सहमत होते हुए सभा की सार्थकता का बखान करते हुए आने वाले किसी भी आयोजन मे बुलवाने पर अग्रिम स्वीकृति दे डालते है लेकिन कुछ अध्यक्ष पूरे सभा की विषय से अचानक असहमत हो जाते है ऐसा प्राय: नौसिखिये अध्यक्ष जो कब्ज के शिकार रहते है वही करते है वह असहज रूप से किसी वक्ता जिसने वाहवाही लूटी हो उससे असहमत हो कर कुछ भी कह जाते है जैसे वक्ता ने कहा हो कि आधी गिलास भरी है तथा आधी गिलास खाली है यह अपनी सोच है इस पर अध्यक्ष यह कहेगा “” जैसा कि पूर्व विद्वान वक्ता ने कहा कि आधी गिलास खाली है लेकिन जगत मे कुछ भी तो रिक्त नही जो रिक्तिमय है वह भी हवा से भरा है यदि आप हवा हटा कर निर्वात की बात करते है तो या तो उसमे प्रकाश होगा या अन्धेरा दोनो ही स्थितियाँ समाज के लिये चिन्तन की बात है इस पर हमे सोच-विचार करने की जरूरत है यदि समाज मे अन्धेरा बढ्ता है तो इस पर विचार करना होगा मै चाहूँगा कि इस दिशा मे संस्था और अधिक सोचे वैसे अन्धेरा बढ रहा है इस लिये मै अपनी वाणी को विराम दे कर आयोजको को धन्यवाद देता हू “ इस कथन पर सभा समाप्त होती है
भविष्य के आयोजकों के लिये यह लघु शोध पथप्रदर्शक बने यही कामना है
सेमीनार में सावधानी पूर्वक इन पात्रो के चयन से सेमीनार सभाए अवश्य सफल होंगी

4 टिप्‍पणियां:

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने कहा…

मैं समझ रहा हूँ कि आप शोध बताकर जिसकी मार्केटिंग करना चाह रहे हैं वह आपके लम्बे अनुभव से जुटायी पूँजी का माल है। लगता है काफी दिनों से सेमिनार में शिरकत करने का तजुर्बा रहा है आपको।

कहीं इसीलिए तो आपने इलाहाबाद आकर भी माइक पर बोलने का काम टाले रखा? आज अपने कैमरे की मेमोरी चिप को कई बार चेक किया लेकिन आपकी कोई बोलती तस्वीर नहीं मिली।

मुझे लगता है कि आप पक्के तौर पर ऐसे धुरन्धर लिक्खाड़ हैं जो बोलने से परहेज करता है। अनुरोध है कि अपना सेमिनार वाला आलेख मुझे भेंज दीजिए, स्मारिका में छापना होगा।

Arvind Mishra ने कहा…

आप महान ही नहीं महानतम हैं! चिरकुटई पर आपका शोध कालजयीपन लिए हैं !

गिरिजेश राव, Girijesh Rao ने कहा…

प्रयाग संगोष्ठी के दौरान हुई तमाम स्फुट चर्चाओं में से एक पर आलेख देकर आप ने वादा निभाया है। आभार।

सिद्धार्थ की बात पर ध्यान दें। अध्यक्षों और संचालकों की गरिमा को ध्यान में रखते हुए आप ने अपना जो आलेख छिपाए रखा और नहीं पढ़ा, उसे भेज दीजिए। अब मुझे समझ में आया कि आप तकिया को हमेशा क्यों दबाए रखे! आलेख छिपाने की उससे अच्छी जगह तो हो ही नहीं सकती।

बाकी चर्चाओं पर भी लेखों की प्रतीक्षा है। इलाहाबाद डॉकुमेण्ट जो बनाना है। जब इतने मूर्धन्य विद्वान एक जगह इकठ्ठे होते हैं तो जटिल विमर्श होते हैं। सरलीकरण के आदी निम्न सोच वालों को सब हंसी ठठ्ठा,मौज, मस्ती वगैरह जैसा लगता है। यहाँ तक तो ठीक था लेकिन हुआँ हुआँ कर समूचे ब्लॉग जगत में हल्ला काटना हद है! मुझे उम्मीद है कि आप की लेखमाला उनकी बेहूदगियों को आइना दिखाएगी - देखो, तुम लोग कितने बुद्धिहीन लुच्चे हो !

प्रवीण त्रिवेदी ने कहा…

2009/11/9 हिन्दुस्तानी एकेडेमी

आदरणीय महोदय,

इलाहाबाद में २३-२४ अक्टूबर २००९ को आयोजित संगोष्ठी में आपका आना हमारे लिए बहुत सुखद रहा। प्रबन्धन संबन्धी कुछ न्यूनताओं के बावजूद यह संगोष्ठी अपने उद्देश्यों को पूरा करने में सफल रही। इसमें आपके योगदान के लिए हिन्दुस्तानी एकेडेमी आभारी है। इस सहयोग हेतु आपको बहुत-बहुत धन्यवाद।

इस संगोष्ठी में तमाम लोगों ने खुलकर अपने विचार व्यक्त किए और आभासी दुनिया का सच मूर्त रूप में हमारे प्रत्यक्ष घटित हुआ। गोष्ठी के बाद भी इसपर घनघोर चर्चा अन्तर्जाल पर छायी रही। जो यहाँ से लौटकर गये उन्होंने बेबाकी से अपनी पोस्टों में अपने अनुभव साझा किए। जो न आ सके उन्होंने भी बढ़-चढ़कर ‘आँखो-देखा हाल’ लिखने से लेकर अन्दर की बात तक छाप डाली। आपत्तियों और समर्थन के स्वर बराबर शक्ति से मुखरित हुए। हम सभी चर्चाकारों के प्रति भी कृतज्ञ हैं। किसी एक आयोजन की इतने व्यापक स्तर पर चर्चा हुई है कि इसका एक रिकॉर्ड बन गया हो तो आश्चर्य नहीं।

हिन्दुस्तानी एकेडेमी ने वर्धा वि.वि. के सौजन्य से इस कार्यक्रम का आयोजन किया था। इस संगोष्ठी में जो बातें उभर कर आयी हैं, अब उनका एक समुचित रिकार्ड तैयार करने की योजना है। सभी प्रतिभागियों द्वारा व्यक्त विचारों को संकलित करके उनका एक स्मारिका के रूप में प्रकाशन किया जाना प्रस्तावित है। यद्यपि हमारे पास अधिकांश वार्ताएं रिकार्ड करके रखी गयी हैं लेकिन यह उचित जान पड़ता है कि प्रिण्ट माध्यम में प्रकाशन के लिए सामग्री तैयार करने में स्वयं वार्ताकार ही अपने वक्तव्य के परिमार्जन और संपादन का कार्य करे। इससे पूरी बात सम्यक रूप से प्रकट भी हो जाएगी, कुछ जरुरी और अनकहे अंश जोड़े भी जा सकेंगे और मूल आशय में किसी प्रकार के परिवर्तन की गुन्जाइश भी नहीं रहेगी।

अतः आपसे अनुरोध है कि यह संदेश प्राप्त करने के तत्काल बाद आप अपनी वार्ता का आलेख मेल के माध्यम से एकेडेमी को उपलब्ध कराने का कष्ट करें ताकि एक संग्रहणीय स्मारिका का प्रकाशन शीघ्र किया जा सके। यदि आप चाहें तो आपकी वार्ता के बाद जो प्रश्नोत्तर हुए उनका संक्षिप्त विवरण और अपना मन्तव्य भी अलग से दे सकते हैं। इसका प्रयोग सम्पादक द्वारा यथास्थान किया जा सकता है।

आशा है आप इस प्रकाशन योजना को पूरा करने में सक्रिय सहयोग प्रदान करेंगे। सधन्यवाद।

(राम केवल)

सचिव, हिन्दुस्तानी एकेडेमी
१२-डी, कमला नेहरू मार्ग, इलाहाबाद-२

नोट: निम्न प्रतिभागियों का ई-मेल पता कहीं खो गया है। खोजने पर नहीं मिला। कृपया इस संदेश को इनके पते पर फ़ॉरवर्ड कर दें।

1. आभा मिश्रा- मुम्बई
2. अरुण प्रकाश द्विवेदी- वाराणसी
3. संजय तिवारी-दिल्ली (विस्फ़ोट)
4. हेमन्त कुमार- वाराणसी
5. ओम- लखनऊ