गुरुवार, 3 जनवरी 2008

ज़माने की बात

तोड़ने से प्रण पितामह डर रहें हैं

इसलिए शकुनी सियासत कर रहे हैं
राज का खुशहाली का पूछा तो बताया
लोग निष्ठा की तिजारत कर रहें हैं
रोशनी पर तफसरा अन्धो के आगे
आप कैसी हिमाकत कर रहे है
जो छिपे बैठे थे कल तक बीहड़ों में,
आज जलसों की सदारत कर रहें हैं
इस कदर सच बोलना अच्छा नहीं हैं ,
क्यों जमानें से अदावत कर रहे हैं

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