सोमवार, 1 सितंबर 2008

मत जाओ चाँद पर

" जिंदगी जब भी तेरे बज्म में लाती है हमें
ये जमीं चाँद से बेहतर नजर आती है हमें "
ये खूबसूरत नज्म जब जब मैं सुनता हूँ तो वाकई रश्क होने लगता है कि क्या वाकई किसी प्रेमी को ये जमीं चाँद से बेहतर नजर आ सकती है | शायद हाँ क्यों कि सावन के अंधे को हरा ही हरा दिखता है
हमें तो यारो ये जमीं चाँद सी ही नजर आने लगी है बस फर्क इतना है कि चाँद पर प्लास्टिक की थैलियाँ तथा नेताओं के पार्टी झंडे की प्लास्टिक टुकड़े व नारे देखने को ना मिले | लेकिन अपना चाँद तो भारत के किसी कसबे या महानगर से ही मिलता जुलता नजर आता है विस्वास न हो तो अपने यू पी के किसी महानगर से जुड़ने वाली सड़क पर बसों की यात्रा करें माँ कसम आपको इतना ही मजा आयेगा जो नील आर्मस्ट्रांग को चाँद पर बघी पर आयेगी | यह बात अलग है की अपने प्रदेश में ये सड़कें चाँद को देख कर ही अभियंताओं ने बड़े ही परिश्रम से मंत्रियों के आशीर्वाद से बनाई है | अगर मुग़ल राज होता तो शायद इन अभियन्ताओं और ठेकेदार महा प्रभुओं के हाथ अवश्य काट लिए जाते |
आप कहेंगे की चाँद और आपके शहर में कौन सी समानता है मजाक कर रहे है नहीं हुजूर हमारा शहर चाँद से बेहतर ही है | आप यही खोज करने जा रहे हो ना की चाँद पर पानी है या जिंदगानी है या नहीं धत तेरे की
बस इत्ती सी बात के लिए भारत सरकार चन्द्र यान छोड़ रही है आओ हमारे नगरों की दूर से तसवीरें खीच कर उसमे से पेड़ आदि वैसे मिलने मुस्किल ही होंगे उसको डिलीट कर भेज दो नासा के पास वो उसे पास कर देगा शीर्षक दे देना चाँद का वोह भाग जिसकी और कभी कोई यान नहीं गया | यही तो खोजने जा रहा है हमारा चंद्र यान
आप चाँद पर जल खोजने जा रहे हो हमारे शहर में शुद्ध जल खोज कर दिखा दो जल में जीवन के गुण और प्राणी दिखा दो आप जीवन की तलाश में चाँद पर क्यों जा रहे हो |हमारे शहर में जीवन की संभावनाएं दिखा दो ना ...
आप गैसों की खोज में चाँद के अभियान पर क्यों जा रहे हो हमारे यहाँ गोबर गैसों और सीवर गैसों के आलावा आक्सीजन खोज कर दिखाओ ना की पृथ्वी पर जीवन कैसे चल रहा है | हाँ चाँद पर जमीनों के क्या रेट है रियल इस्टेट की क्या संभावनाओं की तलाश हो तो जाओ पर इतना अवश्य जान लो की शायद तुम्हे वहां अच्छी जमीं मिल जाए लेकिन हमारे शहर में तो आपको न जमीं मिलेगी न जमीर | तो भारत सरकार को पहले अपने देश में ही जगह जगह चाँद जो नक्शे में भी चाँद की खोपडी जैसे लगते है इन्ही पर शोध करना चाहिए की अचानक भारत खंडे इन छंदों का क्या किया जाए | हमने पढ़ा है की कोई बूढी औरत चाँद पर चरखा कातती नजर आती है | यहाँ भारत में तो बहुत पहले एक बूढा व्यक्ति वास्तव में चरखा काटता था जो मर गया तो उसके चेले आज कर हर जगह चाँदी काटते नजर आ रहे हैं |उस बूढे के पास एक लाठी और एक लंगोटी भी थी जिसे सरकार ने बाँट दिया पुलिस को लाठी दे दी तथा पब्लिक को लंगोटी | दोनों इसका भली प्रकार से निर्वाह कर रहे है और इसको छोड़ नहीं पा रहे है ना पुलिस न पब्लिक | मत जाओं चाँद पर यहीं चंद लोगों के चाँद को निहारों तथा चाँदी को देखो
तो बंधुओं ये जमीं चाँद सी ही नजर आती है मुझे |क्या रखा है उस चाँद पर .....
किससे करूँ शिकायत किससे कहूँ फसाना
एक तरफ़ तुम्ही तुम हो इक तरफ़ है जमाना |

2 टिप्‍पणियां:

Smart Indian ने कहा…

बहुत खूब लिखा है गुरु!

Arvind Mishra ने कहा…

अब लेखन की धार नजर आ रही है -जब से साईब्लाग की कसौटी पर आपके लेखन के उस्तरे की शान चढी है ,रौनक आ गयी है गुरु .अब देखिये स्मार्ट इंडियन भ्राता को भी खींच ही लाये .अब जिम्मेदारी से इस और लगें .विभाग में तो बचत ठीक है यहाँ नहीं !