बुधवार, 29 अप्रैल 2009

क्या हम नाकाम राष्ट्र नहीं है किन्ही अर्थो में ?????

इन दिनों लोकतंत्र को मजबूत करने के नाम पर चुनाव हो रहे हैं लोकतान्त्रिक या यूँ कहे खालिस तांत्रिक प्रक्रिया शुरू हो गई हैं दो दौर के चुनाव में दर्जन भर से अधिक जवान नक्सली हिंसा की बलि चढ़ चुके हैं संसद पर हमला करने वालों को तो राजनितिक दल गरिया कर अपनी भडास मिटा दे रहे हैं लेकिन इन शहीदों के बारे में कोई पार्टी दल सरकार और सारी मशीनरी यह कह कर ही खुश है की अबकी सुरक्षा में पहले के मुकाबले कम हिंसा हुई है
अर्थात लोकतंत्र के तंत्र में इन जवानों और मासूमो की बलि देना सामान्य घटना है
देश के सारे जिलों में से १३% जिले नक्सल प्रभावित हैं जहाँ कुछ दृष्टि से सामानांतर सस्र्कार ही चल रही है सामान्य प्रशासन लुंज पुंज है तभी तो लातेहार में रेल गाड़ी बंधक हो जाती है और अपनी मर्जी से छोड़ दी जाती है
क्या लोकतंत्र से नाराज देश के सीधे सादे लोग जिनकी कोई बड़ी राज नीतिक आकंक्षाये भी नहीं है इस कदर हमने अपनी नालायाकियों और शोषण से उन्हें हथियार उठाने को क्यों मजबूर कर दिया है ??
इस पर केन्द्र और राज्य सरकारों का नजरिया भिन्न भिन्न है लेकिन एक बात तय है और मैं १०० % दावे के साथ कह सकता हूँ कि प्रशाशनिक पुलिस और वन बिभाग कि ज्यादतियों तथा शोषण के शिकार ये जन जातियां यदि हथियार उठा रहीं है तो कोई ग़लत नहीं कर रहीं है
मेरे जनपद के आस पास का इलाका भी नक्सल प्रभावित है सरकारी योजनायें खास तौर से केन्द्रीय योजनायें चल रहीं है लेकिन इसे लागु करने वाले अधिकारी आकंठ भ्रष्टाचार में दुबे हुए हैं नक्सल हिंसा के नाम पर कोई अधिकारी जमीनी हकीकत को जानने के लिए इन क्षेत्रो में जाना नहीं चाहता कागज पर कुएं हैण्ड पम्प गड़ रहे हैं लोगो का जीवन स्तर सुधारा जा रहा है अधिकारी इन कामगारों के श्रम मूल्य को भी हड़प जा रहे हैं अंग्रेजों ने भी इतनी लूट खसोट इन आदिवासियों का नही किया जितने इन देशी पिल्लों ने कर डाला है
विदेशों में जमा काला धन कि चर्चा बहुत हो रही है लेकिन इन क्षेत्रो में काम कर रहे पाखण्ड विकास अधिकारीयों तथा अन्यान्य जन कल्याण कारी गतिविधियों में तल्लीन अधिकारीयों के बीबी बच्चों के नाम से अकूत संपत्ति कहाँ से जमा हो रही है इसकी सुधि कौन लेगा पोश इलाकों में जब इन पाखंडी अधिकारीयों विधायकों के घर साईं बाबा कि मूर्ति और बुद्ध और अम्बेदकर कि मूर्तिया देखता हूँ तो इच्छा यही होती है कि इन कमला विमला सदन कि कमला व विमला को इन नक्सलियों के अड्डे पर भेज दिया जाए तो पता चले कि जिंदगी क्या होती है
हम पाकिस्तान को नाकाम राष्ट्र घोषित करने पर खुश हो रहे है जब कि हमारे घर में लोकतंत्र कि हत्या दिन प्रति दिन हो रही है और आबादी कि इतनी बड़ी संख्या इस कदर नाराज है कि जवानों कि देश में इतनी निर्मम हत्या चुनाव के दिन हो रही है और हम खुश है कि इस बार हिंसा कम हुई है
इस कदर सम्वेन्हीनाता और संवादहीनता से कहीं इस देश की हालत नेपाल जैसी न हो जाए मुझे ये डर सताता है इस विषय पर तमाम राजनितिक दलों की कोई सकारात्मक पहल इसे और चिंता जनक बना रही है

1 टिप्पणी:

Arvind Mishra ने कहा…

सचमुच चिंतनीय !