शुक्रवार, 5 सितंबर 2008

वसीयत में ठेंगा

अभी कुछ दिन पूर्व एक अखबार में यह ख़बर पढी की अहमदाबाद की एक स्त्री ने अपनी वसीयत में अपने दो जीवित पुत्रों के नाम अपना ठेंगा (अंगूठा ) कर दिया इस ख़बर के अनुसार इस महिला के दो पुत्र थे बड़ा पुत्र अमेरिका में तथा छोटा पुत्र मुम्बई में सेटल थे तथा मान की परवाह नहीं करते थे माँ एक हास्पिटल में नर्स का काम करती थीं तथा retirement के बाद एक नौकरानी के साथ रहतीं थी| ७० वर्ष की आयु में अपनों से दूर निराशा पूर्ण स्थिति में उन्होंने अपनी वसीयत में अपनी सारी समप्ति , मकान आदि उस नौकरानी के नाम कर दिया तथा अपने आँख गुर्दे के साथ अपना शरीर मेडिकल कालेज को दान कर दिया ताकि छात्र छात्रा उनके शरीर को अपने प्रक्टिकल हेतु प्रयोग कर सकें

अपने पुत्रों के लिए अपनी अन्तिम क्रिया के संस्कारों के निमित्त उन्होंने अपने दोनों हाथों के अंगूठे काट कर देने हेतु लिखा था जो मेडिकल कालेज के लोगों ने सुरक्षित रखा था जो वसीयत के अनुसार उनके पुत्रों को दे दिया गया

इस ख़बर को पढ़ कर अंदाजा लगाया जा सकता है उस माँ की पीडा तथा आज की पुत्रों की संवेदनशीलता को

उस अंगूठे का क्रिया कर्म हुआ या नहीं लेकिन इतना स्पष्ट है की इनकी संतानें ऐसे माता पिताओं को कीडो मकोडों के द्वारा ही अन्तिम क्रिया कराएंगी इसमे कोई शक नहीं क्यों की भौतिकता के नाम पर जो संस्कार ये अपने बच्चों को दे रहे है उसका फल क्या होगा

कभी कभी मुझे लगता है की पुराने ज़माने की जो कहावत है कि भलाई का बदला भलाई मिलेगा ये सब बातें outdated हो गयीं है ये उन दिनों के लिए गाधी गयीं थी जब वास्तव में भले लोग संसार में ज्यादा थे तथा आए दिन भला आदमी भले आदमी से ही टकराता रहता था इस लिए उसे भलाई मिल जाती रही होगी ऐसे भले लोगों ने अपने अनुभवों से ये मुहावरा बना दिया

अन्यथा आज के ज़माने में एक भले आदमी को इतनी जिल्लत सहनी पड़ेगी कि उसे फ़िर इसी निष्कर्ष पर पहुँच कर इस दोहे को संसोधित करना पडेगा कि "जो टोके काँटा बोए ताहि बोए टू भाला , वो भी साला याद करेगा पड़ा किसी से पाला " मूल दोहे में काँटा के बदले फूल बोने की बात कही गयी है

फ़िर उस घटना से व्यथित हो कर मई उस दुखात्मा को अपनी तरफ़ से श्रधांजलि देते हुए इश्वर से उनजैसी माताओं के पुत्रों को सद्बुधी देने की प्रार्थना करता हूँ कि फ़िर किसी माँ को ऐसा कठिन निर्णय लेना पड़े और किसी पुत्र को ठेंगा मिले

2 टिप्‍पणियां:

Arvind Mishra ने कहा…

अरुण भाई ,यह उन लोगों के लिए आँख खोलने वाला दृष्टांत होना चाहिये जो दिन रात अपने बच्चों को अमेरिका या एनी पश्चिमी देशों और संस्कृतियों में पलने बढ़ने के लिए दिन रात एक किए हुए रहते हैं और समाज में दम्भपूर्ण आचरण करतें हैं !

संगीता पुरी ने कहा…

उनकी दुखद आत्मा को सचमुच बहुत बहुत श्रद्धांजलि। बच्चों के बच्चे भी देख ही रहे होंगे कि माता पिता से कैसा व्यवहार किया जाता है। वे भी वैसा ही करेंगे।