बुधवार, 10 सितंबर 2008

ईमानदार और बेईमान की परिभाषाएं

कुछ आधुनिक परिभाषाएं
बेईमानी और इमानदारी की बातें प्रायः हरि अनंत हरि कथा अनंता शैली में सदियों से चली आ रही हैं प्रत्येक युग में अलग अलग गुण धर्म रहे है इन शब्दों के , किंतु साधारण आदमी के लिए यह एक अबूझ पहेली बनी हुई है कि
हम किसे बेईमान कहें और किसे इमानदार | कुछ परिभाषाओं के मध्यम से आप अपने को या दूसरे को माप सकतें है कि वह कैसा है
हर व्यक्ती अपने को इमानदार दूसरे को बेईमान समझता है |
हम सब कहीं कहीं थोड़ी या ज्यादा बेईमानी करतें है | कुछ लोग अपवाद हो सकतें हैं |
एक चोरी करता है दूसरा चोरी में परोक्ष या अपरोक्ष रूप से मदद करता है और तीसरा चोरी का इरादा मन में रखता है |इस दृष्टि से सभी तीनो चोर है |
यह भी सत्य है कि चाहे जितनी भी चोरी करो , बेईमानी कारों इस पापी पेट के लिए किंतु यह पापी पेट दो रोटी में ही भर जाता है वह चाहे चुपडी हो या सादी ....
आज के युग में बेईमानी और बेईमान सब तरफ़ से सुरक्षित सरंक्षित है |
सरकारी नौकरी में सुधारवादियों की कोई जगह रिक्त नहीं है इसकी जरूरत ही है बस इतना ही कोई कर सकता है कि कोई हमारे नाम पर खाए , हमारे सामने खाए ,और हमारी शिकायत आए यही बचा कर चले तो समझो सफल हैं
चोर पकड़ने से अच्छा है अपना माल ही चोरी हो जाए इसी पर ज्यादा ध्यान दें वह माल अपनी मर्यादा इज्जत नाम कुछ भी हो सकता है क्यों कि बेईमानों के हाथ काफी लंबे है
अपने प्रति इमानदार रहना ही सफलता और आत्मसंतोष कि गारंटी है |
पहले यह कहा जाता था कि यह अफसर बेईमान है रिश्वत लेकर काम करता है | आज कल लोग ये कहते हैं कि यह अफसर भ्रष्ट है रिश्वत ले कर भी काम नहीं करता है |
हर आदमी दूसरे को बेईमानी के लिए प्रेरित करता है आपकी कीमत की टोह में है अगर आपने अपनी कोई कीमत का अंदाजा नहीं दिया तो आप जसा नाकारा और बेकार अफसर कोई नहीं आपको हटाने के लिए लोग कटिबद्ध हो जायेंगे
अधिकारी कि तरक्की में ईमानदारी ,व्यापारी की तरक्की में दुनियादारी तथा नेता कि तरक्की में समझदारी बाधक है |
जो अफसर ज्यादा ईमानदारी के भाषण देता है वह उसके उतने ही विपरीत है समझ लीजिये|जो बदसूरत है वही तो फेयर एंड लवली कि क्रीम हाथ में लेकर दिखायेगा |
भ्रष्टाचार की बात करते हुए कुछ लोग तो यहाँ तक कहते हुए सुना है कि फलां कि नैतिकता इतनी मर गई है कि उसने मेरे नाम का पैसा भी खा गया |
जय बोलो बेईमान की !!!!!!!!!

1 टिप्पणी:

Arvind Mishra ने कहा…

बहुत संतुलित - भोगे हुए यथार्थ से निकली बात सोलहो आने सच है .मैं आपकी इन सभी बातों से इत्तेफाक रखता हूँ !इमानदारी भी दीगर चीजों की तरह सापेक्षिक है .और इसकी नींव जन्म के साथ ही पड़ जाती है !
सरकारी नौकरी का आलम तो यह है की आपको प्रायः दूसरों के लिए बेईमान बनाना पङता है -अक्सर ऊपर वालों की खातिर !