गुरुवार, 11 सितंबर 2008

शेर ओ शायरी

मुन्न्वर के शेर दिल को छूने वाले होते हैं
पेश है कुछ चुने हुए शेर जो संबंधों को नए अर्थ दे रहे है

मुनव्वर’! माँ के आगे यूँ कभी खुल कर नहीं रोना
जहाँ बुनियाद हो इतनी नमीं अच्छी नहीं होती

अब देखिये कौम आए जनाज़े को उठाने

यूँ तार तो मेरे सभी बेटों को मिलेगा

मसायल नें हमें बूढ़ा किया है वक़्त से पहले

घरेलू उलझनें अक्सर जवानी छीन लेती हैं

हमारे कुछ गुनाहों की सज़ा भी साथ चलती है

हम अब तन्हा नहीं चलते दवा भी साथ चलती है

जहाँ पर गिन के रोटी भाइयों को भाई देते हों

सभी चीज़ें वहाँ देखीं मगर बरकत नहीं देखी

जो लोग कम हों तो काँधा ज़रूर दे देना

सरहाने आके मगर भाईभाई मत कहना

तुम्हारी आँखों की तौहीन है ज़रा सोचो

तुम्हारा चाहने वाला शराब पीता है

कुछ उम्दा शेर ----

उन घरों में जहाँ मिट्टी के घड़े रहते हैं

क़द में छोटे हों मगर लोग बड़े रहते हैं

किसी भी मोड़ पर तुमसे वफ़ादारी नहीं होगी

हमें मालूम है तुमको ये बीमारी नहीं होगी

वो ख़ुश है कि बाज़ार में गाली मुझे दे दी

मैं ख़ुश हूँ एहसान की क़ीमत निकल आई

( साभार माँ से )

1 टिप्पणी:

Arvind Mishra ने कहा…

बढियां है भाई !इन शायर को कभी सूना नहीं !