शीर्षक पढ़ कर चौंकिए नहीं , सही बात बता रहा हूँ हमारे देश में ऐसी गलतिया हो जाती हैं कि बाद में पछतावा होता है अभी अभी जब स्पेस अभियानों का इतिहास पढ़ रहा था तो पता चला कि रूस ने स्पेस कि शुरुवात की थी तो लाइका नामक कुतिया को भेजा था पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिए
इतना बड़ा देश , इतना बड़ा अभियान , ४०० करोड़ का बजट , चाँद की यात्रा और एक कुत्ता भी नहीं मिला इन वैगयानिकों को यही तो फर्क हो जाता है देश व विदेश का , इतना सुनहरा मौका था एक कुत्ता जो बॉम्बे में अपने साथियों के साथ भौंक रहा है लोगो पर भूंक रहा है दौडा रहा है सरकार सोच रही है कि अपनी गली का आमची मुम्बई का कुत्ता है खुल्ला घुमण दो कार्तिक में तो कुत्ते ऐसे भी भूंकते और काट लेते हैं किंतु अब तो हद हो गयी कुत्ते ने चैलेन्ज कर दिया चेन में बाँधोगे तो चैन से रहने नहीं दूँगा
क्या इस चंद्र अभियान में मुंबई के इस कुत्ते को सरकार नहीं भेज सकती थी बाद में कहना मत कि याद नहीं दिलाया था इतिहास कभी इस ग़लती को माफ़ नहीं करेगा
2 टिप्पणियां:
दोस्त, उसका नंबर तो काफी बाद में आता है, यहां भी लाइन लम्बी है। हां यह जरूर है कि इसका भौंकना आजकल काफी दूर तक सुनाई दे रहा है, पर सरकार के कान में तो रूई है। उसे छोड़कर बाकी सब सुन रहे हैं।
वाह भाई ! कैसी भूल याद दिलाई -बाँध देना था साले उस कुत्ते को उसी चंद्रयान के ही साथ -शहीदी का तमगा मिल ही जाता अभी तो साले को चारो और से दुत्कार ही मिल रही है -दुत दुत...धोबी का कुत्ता कही का --
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