मित्र या दोस्त जब तक आस्तीन के सौंप नहीं हो जाते तब तक बड़े ही प्यारे व हरदिल अजीज होते हैं कतिपय लाइनें जो मुझे गद्दार व बेवफा दोस्तों की याद दिला देती है उन लफ्जों का आनंद लें
मैंने पूछा सौंप से दोस्त बनोगे आप,
नहीं महाशय जहर में आप हमारे बाप|
हजारों मुश्किलें है दोस्तों से दूर रहने में ,
मगर एक फायदा है पीठ में खंजर नहीं लगता |
कहीं कच्चे फलों को संगबारी तोड़ लेतें है ,
कहीं फल सूख जातें है , कोई पत्थर नहीं लगता |
1 टिप्पणी:
वाह !
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