कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है कि देश कि राज नीति से तो हमारे गों कि राजनीति लाख गुने अच्छी है
कम से कम हर अच्छे बुरे काम कि प्रतिक्रिया पुराना प्रधान करता तो रहता है
पर बेडा गर्क हो देश कि राजनीति का यहाँ तो पुराना प्रधान मंत्री कुछ बोलता ही नहीं ,एक अरसा हो गया किसी पुराने प्रधान मंत्री का किसी भी विषय पर अपनी टिप्पणी दिए हुए वो तो भला हो यमराज का जो कुछ पुराने नेताओं का यमलोक का टिकेट कंफिर्म करतें रहतें है तो फार्मेलिटी के तौर पर कोई कोई भूतपूर्व प्रधानमंत्री दिख जाता है बोलते हुए सुन लिया जाता है कि अमुक जनसेवक नेता जी के चले जाने से राष्ट्र कि हानि हुई है इतना कहने के बाद वे पुराने लोगों के सामने ऐसे खरे रहतें है जैसे कह रहे हों "कभी तनहाइयों में भी हमारी याद आयेगी " कभी कभी किसी दिवंगत नेता की मूर्ती अनावरण या पुण्य तिथि को समाधिस्थल पर ये भूतपूर्व प्रधानमंत्री दिख जाते हैं तो ऐसा लगता है कि ये अपनी समाधी स्थल का ले आउट कल्पना में बना रहे हैं
ऐसा लोक तंत्र मुझे कहीं नहीं दिखता जहाँ भूतपूर्व प्रधान मंत्री जो अपने कार्य काल में इतनी बहुमुखी प्रतिभा को हो इतना सक्रिय हो कि १५-२० घंटे तक काम करता रहता हो फ़िर भी उसके गाल गुलाबी हों आँख शराबी हों ( अपवाद मनमोहन सिंह जी ही हैं जो प्रधान मंत्री बनने के बाद केवल मारीगोल्ड बिस्किट खा खा कर अपनी सेहत का और प्रोस्टेट ग्लैंड दोनों का सत्यानाश करा बैठे हैं पता नहीं भूतपूर्व हो जाने पर कसे दिखेगें और क्या बयां देंगे ,भविष्य ही जानता है )
अचानक भूतपूर्व होते ही राजनीति से थका हारा एक कोने पर पड़ा रहता है न तो कोई जिंदाबाद न कोई मुर्दाबाद ही सुने कैसे जिंदगी कटती है शोध का विषय है परमाणू डील के मुद्दे पर आदरणीय मनमोहन जी ने अटल जी को भीष्म पितामह कि संज्ञा देते हुए यह अपील कर डाली कि वही कुछ करें और पार्टी को समर्थन करें किंतु माननीय अटल जी ने भीष्म पितामह कि उपाधि पाते ही ऐसी चुप्पी साध ली है कि असली भीष्म भी शर्मा जाएँ जिन्होंने कौरवों का साथ दे कर शर सैया पर लेटना मुनासिब समझा ,यह भी नहीं कहा कि "मनमोहनजी ये अच्छी ... बात ... नहीं माना कि मैं कुंवारा हूँ लेकिन भीष्म कहना ये अच्छी ......बात नहीं
देवेगौडा , गुजराल अटलजी सभी मौन साधे बैठे विधवा ब्राह्मणी कि तरह चुप चाप बैठे हैं एक भूतपूर्व प्रधान मंत्री हैं जो बयान दे सकतें है लेकिन उनको कोई पूछता ही नही वो वी पी सिंह जी है जो अपना और अपने परिवार समेत किसी भी सरकार के समर्थन में रहतें है लेकिन उन्हें जीते जी लोगों ने जिन्दा फकीर ही बना डाला , राजा नहीं फ़कीर है , देश कि तकदीर है , इन मीडिया के लोगों ने उन्हें फ़कीर ही बना डाला तलाश है उन्हें अपने मकबरे की ....
चाहे चंद्रयान जाए या अश्वयान इन भूतपूर्व प्रधानमंत्रियों का इस तरह से अचानक मौन हो जाना लोकतंत्र के लिए अच्छी बात नहीं है इसके लिए जनादेश लाना ही होगा अटल जी ...कुल मिला कर आत्म निर्वासन का दंश भोग रहे इन बहादुर शाह जाफरों को चिरायु और जटायु होने की प्राथना इश्वर से करता हूँ की जैसे जटायु राज ने अपनी भूमिका निभाई इसी तरह से ये भी अपने पुराने मेधा का उपयोग राष्ट्र की आगामी पीढ़ी को मार्गदर्शन देनें में करें नहीं तो ये माना जाएगा की ये लोग केवल प्लेबैक सिंगर की तरह दूसरे के लिखे बयानों से ही अपने को सर्वज्ञानी के रूप में पेश करते रहे इसमे देवेगौडा जी अपवाद हैं .....
1 टिप्पणी:
सभी जटायु नहीं एक दो ठू सम्पाती हैं -जामवंत की देर है !
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