शुक्रवार, 3 अक्तूबर 2008

मोटी मलाई पतली कर दी सरकार ने


सरकार ने आज क्रीमी लेयर की वार्षिक आय -सीमा २.५० लाख रु से बढ़ा कर ४.५० लाख रु कर दिया ओ बी सी के एक बड़े प्रभावशाली वर्ग को खुश कर वोट बैंक बढ़ने की इस कवायद में असली गरीब शोषित पिछडे जातियों का कितना नुक्सान होगा इसकी गणना शायद ऊँची पहुँच वाले ओ बी सी ने नहीं की होगी और न ही इस पर कोई पार्टी बयान ही देने वाली क्यों कि सामाजिक न्याय की बात करने वाले धृतराष्ट्र अपने सगे सम्बन्धियों का हित पहले देखेंगे | तथा शकुनी ही सियासत कर रहे हैं
सुप्रीम कोर्ट के द्वारा क्रीमी लेयर को आरक्षण की सुविधा न दिए जाने से वंचित लोगों को पीछे के रास्ते से आजीवन लाभ दिलाने के नापाक इरादों की
नाजायज औलाद है यह आय सीमा में वृद्धि ...
यह तर्क दिया जा सकता है की छठे वेतनमान के कारन हुई वृद्धि के फलस्वरूप इसमे वृद्धि होनी थी लेकिन सरकार को समझाना होगा की ४.५ लाख वार्षिक की सीमा में कितने वास्तविक जरूरतमंद (needy ) लोग हैं और कितने लालची (greedy ) ४.५ लाख वाली सीमा का व्यक्ति जो शायद अपनी जाति सूचक विशेषण या उपमान को भी अपने नाम के साथ प्रयुक्त न कर रहा हो लेकिन क्रीमी लेअर का लाभ उस गंगू तेली के लड़के से अवश्य छीनना चाहेगा क्योंकि वह क्रीमी लेअर का नहीं है कोई मुकाबला है गंगू तेली के लड़के तथा सरोज और भारद्वाज (राजभर जाति ) के उपमानों वाले इन तथाकथित ओ बी सी महाजनों से .....
एक कहावत है बिल्ली कभी गाय भैंस नहीं पालती लेकिन खाती मलाई ही है सरकार की इस घोषणा ने उसी तरह इन पिज्जा बर्गर परजीवी मलाईदार ओ बी सी ने मलाई की परत को ही पतला कर दिया है और शोषितों वंचितों के हिस्से का दूध डकारने का काम कर रहें है यह सामाजिक न्याय नहीं, मत्स्य न्याय है
आख़िर क्यों नहीं सरकार एग्जिट पालिसी बनाती है जिसके द्वारा तथाकथित पिछडों दलितों को आरक्षण की एक बार सुविधा ले लेने के बाद बाहर का रास्ता दिखाया जाय ताकि लाइन में लगा पप्पू और गंगू भी पास हो जायें और इन चेहरों पर भी मुस्कराहट आ सके

1 टिप्पणी:

Arvind Mishra ने कहा…

फोटू का जुगाड़ तो बढियां किए हो गुरु -लिखे भी धाँसू हैं !